अग्रिम आधिपत्य पर ही बिल्डिंग खड़ी हो गई...
छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित कहे जाने वाले दैनिक अखबार नवभारत ने अग्रिम आधिपत्य मिलते ही बिल्डिंग तान दी और शासन प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। यहां तक कि लोग बोलते रहे लेकिन अवैध निर्माण पर कोई कुछ नहीं बोला। इस बीच शहर में कितनी ही अवैध निर्माण उजाड़ दिया गया लेकिन इस बिल्डिंग का बाल बांका भी नहीं हुआ।राजधानी में चल रहे इस गोरखधंधे पर किसी का लगाम नहीं है। अखबारी जमीनों का व्यवसायिक उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है और शासन-प्रशासन तमाशबीन बने हुए हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश शासन राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग मंत्रालय का पत्र क्रमांक 4-117/साल-1/06 रायपुर दिनांक 25.7.2008 के अनुसार नवभारत प्रेस रायपुर को रजबंधा मैदान स्थित भूमि ब्लाक नं. 9 प्लाट नं. 1 में से रकबा 60750 वर्गफीट भूमि को प्रेस स्थापना हेतु स्थाई पट्टे पर प्रावधानों के अनुरूप प्रब्याजि एवं भूभाटक लेकर आबंटन की स्वीकृति प्रदान की गई है।
उक्त आदेश के परिलब्धन के अनुसार 24.8.2008 के अनुसार 4 करोड़ 47 लाख 12 हजार का प्रब्याजि तथा 33 लाख 53 हजार 400 रूपये वार्षिक भू-भाटक जमा करने नवभारत को सूचित किया गया लेकिन 6 माह बीत जाने के बाद भी नवभारत ने उक्त राशि जमा नहीं कराई। उल्टा शासन को रूपये कम करने के लिए आवेदन दे दिया।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि नियमानुसार राशि जमा नहीं करने पर पट्टा नहीं दिया जा सकता और स्थाई पट्टा प्राप्त किये बिना भवन निर्माण नहीं किया जा सकता लेकिन पूरा शहर गवाह है कि राज्य बनने के पहले ही नवभारत ने बिल्डिंग तान दी और बिल्डिंग के एक हिस्से को एक सरकारी विभाग को किराये पर भी दे दिया। इतना सब कुछ होने के बाद भी शासन-प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की । ये वहीं प्रशासन-शासन है जो अवैध निर्माण करने वालों के खिलाफ कितनी बार ही बुलडोजर चला चुका है। लेकिन नवभारत के खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पाये। जबकि ये वहीं निगम प्रशासन है जो तरूण छत्तीसगढ़ जब बन रहा था और अग्रिम आधिपत्य पर बिल्डिंग बना रहा था तो बुलडोजर चला चुका है। बताया जाता है कि ऐसा भी नहीं है कि नवभारत के खिलाफ कार्रवाई की कोशिश नहीं हुई है लेकिन चर्चा है कि ऐसी सोच रखने वाले अधिकारी ही दूसरे दिन हकाल दिये गये। ट्रांसफर कर दिया गया।
स्वच्छ शासन का दावा करने वाले डॉ.रमन सिंह को भी नवभारत के कारनामों की शिकायत की गई है लेकिन कहा जाता है कि ऐसी शिकायतें रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया।
बहरहाल नवभारत की बिल्डिंग अवैध निर्माण के लिए आम लोगों को चिढ़ा रही है तो एप्रोच वालों का हौसला अफजाई कर रही है देखना है कि शासन कबतक इस ओर से आंख मूंदे रहेगा।