रविवार, 13 अक्तूबर 2024

सरदार पटेल के संघ को लेकर विचार…

 


सौ वी स्थापना वर्ष की ओर बढ़ रहे संघ को लेकर यदि किसी के मन में कोई दुविधा हो तो उन्हें पंडित नेहरू की भविष्यवाणी के अलावा उस सरदार पटेल का महात्मा गांधी की हत्या के बाद आयोजित शोक सभा में दिये वक्तव्य को ज़रूर पढ़ लेना चाहिये, जिसमें उन्होंने न केवल संघ को खूब गरियाया बल्कि बाद में संघ पर प्रतिबंध लगाया।

यदि आप सोच रहे हों कि जब पटेल के संघ के प्रति यह विचार था तो फिर संघ पटेल की तारीफ़ क्यों करता है, मोदी ने उनका सबसे बड़ी प्रतिमा क्यों बनाई ? दरअसल संघ का यही खेल है, झूठ और अफ़वाह का खेल, 

नेहरू-गांधी के आकर्षण को धूमिल करने के इस खेल में वह अपने उन कर्मों को जायज़ ठहराने या छुपा लेने की कोशिश करता है जो इस के लिए ख़तरनाक माना जाता है 

इसलिए आप यदि संघ के इस खेल पर नज़र डाले तो आप पायेंगे कि वह कभी पटेल के पीछे छुपता है तो कभी सुभाष बाबू या भगतसिंह के पीछे ( आगे बतायेंगे कि संघ और हिन्दुवादियो का भगत सिंह और सुभाष बाबू के प्रति रवैया)

भ्रम पैदा कर अपनी राजनीति में माहिर संघ को लेकर सरदार पटेल ने क्या कहा , आज ये जान लें…

गांधी  की हत्या के बाद 2 फरवरी 1948 को आयोजित शोकसभा में सरदार पटेल जब भाषण देने खड़े हुए तो उनकी आंखों में आंसू थे. वह बोलने की हालत में नहीं थे. लेकिन जवाहरलाल नेहरू के बाद देश के दूसरे बड़े नेता के रूप में बोलना उनकी मजबूरी थी और वे बोले भी.

उन्होंने कहा, ‘जब दिल दर्द से भरा होता है, तब जबान खुलती नहीं है और कुछ कहने का दिल नहीं होता है. इस मौके पर जो कुछ कहने को था, भाई जवाहरलाल नेहरू ने कह दिया, मैं क्या कहूं?’

पटेल ने कहा था, ‘हां, हम यह कह सकते हैं कि यह काम एक पागल आदमी ने किया. लेकिन मैं यह काम किसी अकेले पागल आदमी का नहीं मानता. इसके पीछे कितने पागल हैं? और उनको पागल कहा जाए कि शैतान कहा जाए, यह कहना भी मुश्किल है. जब तक आप लोग अपने दिल साफ कर हिम्मत से इसका मुकाबला नहीं करेंगे, तब तक काम नहीं चलेगा. अगर हमारे घर में ऐसे छोटे बच्चे हों, घर में ऐसे नौजवान हों, जो उस रास्ते पर जाना पसंद करते हों तो उनको कहना चाहिए कि यह बुरा रास्ता है और तुम हमारे साथ नहीं रह सकते.’ (भारत की एकता का निर्माण, पृष्ठ 158)

सरदार ने अपने व्यक्तिगत जीवन में बदलाव और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने में भी गांधी को प्रेरणा का प्रमुख स्रोत बताया और कहा था कि अगर गांधी न होते तो मेरा कोई अस्तित्व नहीं होता. उन्होंने कहा था, ‘जब मैंने सार्वजनिक जीवन शुरू किया, तब से मैं उनके साथ रहा हूं. अगर वे हिंदुस्तान न आए होते तो मैं कहां जाता और क्या करता, उसका जब मैं ख़्याल करता हूं तो एक हैरानी सी होती है. तीन दिन से मैं सोच रहा हूं कि गांधी जी ने मेरे जीवन में कितना परिवर्तन किया? इसी तरह से लाखों आदमियों के जीवन में उन्होंने किस तरह से बदला? सारे भारतवर्ष के जीवन में उन्होंने कितना बदला. यदि वह हिंदुस्तान में न आए होते तो राष्ट्र कहां जाता? हिंदुस्तान कहां होता? सदियों हम गिरे हुए थे. वह हमें उठाकर कहां तक ले आए? उन्होंने हमें आजाद बनाया.’ (भारत की एकता का निर्माण, पृष्ठ 157)

उस समय सांप्रदायिक दंगों की आग में जल रहे भारत में सरदार पटेल और खून खराबा नहीं चाहते थे. लोगों में आक्रोश था. उन्होंने अपने भाषण में ज़िक्र किया कि कम्युनिस्टों का गांधी की हत्या के विरोध में एक जुलूस निकला, उस जुलूस में वे कहते थे कि हम बदला लेंगे. सरदार ने इसका जिक्र करते हुए बदला लेने की भावना को गांधी की विचारधारा के विरुद्ध करार देते हुए कहा, ‘बदला लेना हमारा काम नहीं है. अगर आपको कोई चीज मालूम हो तो तुरंत हुकूमत को बता देना चाहिए कि इस प्रकार के लोग काम करते हैं.’ पटेल का संदेश साफ था कि हत्यारी और पागलपन वाली विचारधारा से सरकार को निपटना है और किसी भी हालत में खून खराबा नहीं होना चाहिए.

गांधी की हत्या के बाद देश भर में गोडसे के विचारधारा के लोगों ने जश्न मनाया था. गोडसे भले ही मर गया है, लेकिन उसकी विचारधारा आज भी नहीं मरी है. अभी भी भारत में तमाम ऐसे लोग हैं, जो उस हत्यारे को महान मानते हैं और उसका महिमामंडन करते हैं. उसे वैचारिक और देशभक्त करार देते हैं. तमाम तरह की कहानियां भी बनाई गई हैं कि एक हिंदूवादी महंत ने गोडसे को रिवाल्वर मुहैया कराई थी.

इस समय भाजपा और आरएसएस से जुड़े युवा सरदार पटेल को लेकर दिग्भ्रमित हैं. प्रधानमंत्री मोदी बार-बार अपने भाषणों में ज़िक्र करते हैं और यह जताने की कोशिश करते हैं कि पटेल के साथ नाइंसाफी की गई और संकेतों में कहते हैं कि वह नाइंसाफी जवाहरलाल नेहरू ने की. साथ ही भाजपा समर्थक गांधी को भी आरोपित करते हैं कि उन्होंने अपना उत्तराधिकारी पटेल को नहीं चुना. पटेल के मन में गांधी को लेकर कभी कोई पीड़ा नहीं रही. उन्होंने गांधी के बारे में कहा है, ‘उनका कमजोर बदन था. इतने कमजोर बदन में से जो पतली सी आवाज निकलती थी, वह इतनी जबरदस्त आवाज थी कि वह सीधे हमारे हृदय पर लग जाती थी.’

इस समय आम लोगों के मन में जातीय और धार्मिक घृणा फैली हुई है. इसी तरह की धार्मिक घृणा स्वतंत्रता के समय भी फैली हुई थी और पूरे देश, खासकर सीमावर्ती इलाकों में खून खराबा मचा हुआ था. गांधी की मौत के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के लोग सदमे में थे और धीरे-धीरे खून खराबा बंद हो गया. उस समय पटेल ने कहा था, ‘हमें निश्चय कर लेना चाहिए कि हिंदुस्तान में जितने लोग हैं, सबको हिल मिलकर, भाई-भाई की तरह रहना है. एक दूसरे के साथ घुड़का घुड़की करने से कोई काम नहीं होगा और इस तरह से नहीं करना चाहिए. कोई भी कौम हो, हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख हो, पारसी हो, ईसाई हो, सबको यह समझना चाहिए कि यही हमारा मुल्क है. इसी मुल्क, इसी युग में दुनिया में सबसे बड़ा व्यक्ति (गांधी) पैदा हुआ, जिसने हमारी इज्जत दुनिया में बढ़ाई और इतना बड़ी विरासत हमारे सामने रखी, उसे फेंक नहीं देना है बल्कि उसको ज्यादा बढ़ाना है.’ (गांधी जी से हमने क्या सीखा, पेज 162)