प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी के तर्ज पर कोरोना से निपटने जब लॉक डाउन की घोषणा की थी तब किसी ने नहीं सोचा था कि इस अचानक फैसले का दुष्परिणाम क्या होगा? किसी ने यह भी नहीं सोचा था कि कितने घरों में चूल्हा नहीं जलेगा और कितने लोगों को डबलरोटी से गुजारा करना पड़ेगा। 15 से 20 करोड़ उन मजदूरों का क्या होगा जो एक राज्य से दूसरे राज्यों में कमाने खाने गये हैं या अपने ही राज्यों के शहर में कमाने आये हैं। पंचर बनाने से लेकर मिी गिरी करने वाले या कचरा में कबाड़ बिनकर जिन्दगी गुजारने वालों का क्या होगा? ऐसे कितने ही सवाल है जिसका जवाब न प्रदेश सरकार के पास है न केन्द्र की मोदी सरकार के पास ही है।
यहां तक की राष्ट्र के नाम संबोधन में ही इस संभावित तकलीफों का ही जिक्र था यही वजह है कि जब लोगों की तकलीफें सामने आने लगी, आवाज बनने लगी तो सरकारों ने मरहम लगाने के लिए चंद रुपये डाल दिये। कुछ दान दाताओं ने भोजन और अनाज विचरित करने की जिम्मेदारी अपने उपर लेने लगे।
दानदाताओं की रोज आती खबरों में हमारे सांसद और विधायक भला क्यों पीछे रहते उन लोगों ने भी इनके खिलाफ उठते आक्रोशित आवाजों को शांत करने भामाशाह या कर्ण बनने के होड़ में लग गये लेकिन कहते हैं चोर चोरी से जाये हेराफेरी से न जाये। बस यही कहावत सांसदों और विधायकों पर लागू होने लगा है कहा जाय तो अतिशंयोक्ति नहीं होगा।
दान देने वाले इन जनप्रतिनिधियों ने मक्कारी की जो सीमा रेखा पार की है वह इतिहास में अनोखे ढंग से दर्ज किया जाना चाहिए। कुछ विधायकों व सांसदों ने जरूर अपनी निजी पूंजी से दान दिया है। लेकिन कई सांसद व विधायकों ने एक माह का वेतन दान दिया है। इस एक माह का वेतन को भी सहायता राशि मानकर दान की श्रेणी में रखा जा सकता है लेकिन कई सांसदों ने इस कठिन दौर में भी अपनी हरकतों से देश को शर्मसार किया है। दानवीर कर्ण और भामाशाह की श्रेणी में अपना नाम दर्ज कराने ऐसा घृणित खेल शायद इस देश के ही जनप्रतिनिधि कर सकते हैं।
ऐसे अनेकों सांसद हैं जिन्होंने कोरोना से निपटने में केन्द्र को मदद देने अपने सांसद निधि का एक-एक करोड़ रुपया दान दिया है। यह वह निधि है जिसका उपयोग सांसद स्वयं के लिए कर ही नहीं सकते लेकिन इसे दान देकर यह बताने की कोशिश हुई मानो ये अपना पैसा दे रहे हैं। जबकि सांसद निधि का उपयोग वैसे भी क्षेत्र के लोगों के लिए ही किया जाता है।
है न ये अपनी तरह का अनोखा दानी।
हैरान की बात तो यह है कि इस खेल में ज्यादातर भाजपा के ही सांसद है जिन्हें राष्ट्रभक्ति का विशेष तमगों से नवाजा जाता है।
अब यह बात कोई नहीं कह सकता कि जमात अंग्रेजों के समय जो हरकत करता रहा है वह अब भी कर रहा है क्योंकि आदतें आसानी से पीछा नहीं छोड़ती। और धोखा देना ही फितरत है।