शनिवार, 21 सितंबर 2024

वन नेशन-वन इलेक्शन : सब कुछ तहस नहस करने की कोशिश

  वन नेशन-वन इलेक्शन : सब कुछ तहस नहस करने की कोशिश


मोदी सरकार के केबिनेट ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर मुहर लगा दी। हालांकि इसके संसद में पारित हो जाने की संभावना दूर-दूर तक नहीं है और यह मुद्‌दा भाजपा के पिछले तीन घोषणा पत्र की तर्ज पर आने वाले चुनाव के घोषणा पत्र का हिस्सा ही रहेगा।

सोचा था इस पर नहीं लिखूँगा लेकिन प्रशंसकों ने जब जोर देकर कहा तो इस पर हतने दिनों के बाद लिख रहा हूँ। तो इससे पहले बता दूं कि मोदी सरकार का  हमेशा ही ऐसी पॉलिसी लाती करने है जिसकी क़ीमत  इस देश को चुकानी पड़‌ती है, आमजन से लेकर अर्थ व्यवस्था को और समाज से लेकर संविधान तक को…।

चाहे वह नोटबंदी हो या जीएसटी , इलेक्ट्रोरोलर बांड हो या तीन कृषि क़ानून, आप कोई भी पॉलिसी को देख लीजिए, इसकी क़ीमत जनताऔर देश दोनों को चुकानी पड़ी है । 

इसलिए एक लाईन में कहे तो वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब भी यही है- 

बाक़ी इसका प्रभाव क्या होगा इसे थोड़ा ऐसे समझ लें

यह पिछले तीन लोकसभा चुनावों में बीजेपी के घोषणापत्र का वादा रहा है। लेकिन यह कैसे लागू होगा, कब होगा और क्यों ऐसा हो रहा है? ऐसे कई सवाल हैं... 

कांग्रेस ने तो ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को संविधान के खिलाफ बताया है। 

पिछले साल मोदी सरकार ने लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर निगमों के चुनाव एक साथ कराने के तरीके सुझाने के लिए कोविंद कमेटी गठित की थी।पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली इस कमेटी ने लोकसभा चुनाव से पहले इस साल मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें अलग-अलग संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की गई थी। इस कमेटी ने सिफ़ारिश की थी कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं और इसके 100 दिनों के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं... 

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि बीजेपी बिल को कैसे कराएगी पास....??  बीजेपी के पास लोकसभा में 240 सीटें हैं। बहुमत के लिए उसे टीडीपी, जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) जैसे सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ता है। अब ऐसे भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि एक साथ चुनाव कराने की बीजेपी की योजना उसके सहयोगी दलों का समर्थन मिलेगा या नहीं...? 

अगर 2029 में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ होना है तो कई राज्य विधानसभाओं को उनके पांच साल के कार्यकाल से पहले भंग कर दिया जाएगा। यानी उनका कार्यकाल पूरा होने से काफी पहले चुनाव के लिए राज्य को तैयार होना होगा.. 

पिछले साल जिन 10 राज्यों में नई सरकारें बनीं उनमें 2028 में फिर से चुनाव होंगे और नई सरकारें लगभग एक साल या उससे भी कम समय तक सत्ता में रहेंगी। ये राज्य हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, तेलंगाना, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान हैं.... 

उत्तर प्रदेश, पंजाब और गुजरात में चुनाव 2027 में होने हैं यानी इन राज्यों में 2027 में बनने वाली सरकारें दो साल या उससे कम समय तक चलेंगी, इसी तरह पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम और केरल में चुनाव 2026 में होने हैं। यहां ऐसी सरकारें होंगी तीन साल तक चल पाएंगी...

अथवा इन राज्यों का निर्धारित समय में चुनाव ना कराकर इनके कार्यकाल को 2029 तक बढ़ाना पड़ेगा.... 

केवल अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा में जहां इस साल चुनाव हो चुके हैं या हो रहे हैं पांच साल तक एक ही सरकार चल सकती है.... 

यानी अब आप सोचिए की इसकी वजह से क्या खेल होगा…।