शनिवार, 12 जुलाई 2025

क्या ट्रंप के इशारे पर आया विमान हादसे की यह रिपोर्ट…

 क्या ट्रंप के इशारे पर आया

विमान हादसे की यह रिपोर्ट…


अहमदाबाद में जिस बोईंग ने चार सौ से अधिक लोगों की जान ले ली, उसकी प्रारंभिक रिपोर्ट में बोईंग कंपनी को बचाने का पूरा इंतज़ाम कर लिया गया है, रिपोर्ट में पायलट की भूमिका को लेकर कही गई बात  भारतीयों को बेवक़ूफ़ समझने की कोशिश है, और यह बात तो अंधभक्त भी नहीं पचा सकते कि इतने अनुभवी पायलट फ़्यूल स्विच बंद रखे या बंद कर दें तो क्या यह रिपोर्ट संकेत नहीं दे रहा कि ट्रंप के आगे सत्ता किस कदर नतमस्तक है…

मुझे नहीं मालुम आप लोग इस बात पर क्या प्रतिक्रिया देंगे लेकिन यह सिद्ध हो गया है कि हमारा नेतृत्व एक भीगी बिल्ली कर रही है और ट्रंप हमारे पालन हार बन चुके है।  अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया ड्रीमलाइनर के हादसे की एक रिपोर्ट आज लीक हुई है। वैश्विक मीडिया के समझदार एक्सपर्ट बता रहे है कि किसी नतीजे पर पहुँचने में एक साल का समय लगेगा लेकिन भारत ने जो पंद्रह पेज की रिपोर्ट बनाई है उसे वाल स्ट्रीट जर्नल ने लीक कर दिया। 

 रिपोर्ट ने इनडायरेक्ट इशारा किया है कि फ्यूल स्विच पायलट ने ऑफ किया था जिसकी वजह से इंजन को ईंधन नहीं मिला और ड्रीमलाइनर ऊपर नहीं उठ पाया। इस बात  को मोदी के अंधभक्त भी गले नहीं उतारेंगे कि दोनों पायलट इस उड़ान से पहले नौ हजार घंटों की उड़ान का अनुभव रखते हुए काम कर रहे थे। इतने अनुभवी पायलट भला इस तरह की बेवकूफी कैसे कर सकते है ? 

अब आइये इस लेख की शुरूआती लाइन पर।  ड्रीमलाइनर बोईंग का प्रोडक्ट है।  बोईंग आज दस लाख करोड़ की कंपनी है।  जब आप यह पढ़ रहे है तब बोईंग के कम से कम तीन हजार प्लेन कही से उड़ान भर रहे हैं , कहीं उतर रहे है , कहीं हवा में होंगे।  अगर इस रिपोर्ट में एक लाइन भी बोईंग के खिलाफ होती तो बोईंग का स्टॉक मार्किट ओपन होते ही दस परसेंट का गोता लगाता नजर आता। 


सनद रहे। अमेरिका इस समय एक सनकी के हाथ में है , और यह सनकी अपने देश को लेकर अपने वाले से ज्यादा पसेसिव है। उसके देश की किसी कंपनी की गुडविल खराब हो वह बर्दाश्त नहीं करेगा ! बस अपनी भीगी बिल्ली ने उस लकड़बग्घे को खुश करने के लिए सारा दोष अपने निर्दोष पायलटों पर डाल  दिया। शहीद अपनी सफाई देने नहीं आने वाले। पन्दरह दिन बाद किसी को याद भी नहीं रहेगा कि अहमदाबाद ने ऐतिहासिक विध्वंस देखा है।(साभार)

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

थरूर का आपात काल पर लेख और सच्चाई

 थरूर का आपात काल पर लेख और सच्चाई…


कांग्रेस नेता शशि थरूर ने आपात काल पर लेख लिखकर जो तमाशा खड़ा किया है उसकी सच्चाई क्या है। वे कांग्रेस से ख़फ़ा है या बीजेपी से कुछ मिल पाने की उम्मीद कर रहे हैं ये तो वही बता पायेंगे लेकिन आपात काल के जिस दौर का उन्होंने ज़िक्र किया उसकी हक़ीक़त…

आज जनसंख्या दिवस पर जानिये The chief glamour girl of the  Emergency रुखसाना सुल्तान को....

   मेरा मानना है कि जनसंख्या नियंत्रण को इतनी गम्भीरता से किसी और ने नही लिया होगा  देश में ......😊


  संजय गांधी से इनकी मुलाकात इनकी ज्वेलरी शॉप पर हुई थी , कुछ देर की बातचीत के बाद ही संजय इनसे बहुत प्रभावित हुए थे।ये मशहूर लेखक खुशवंत सिंह के भतीजे शिविंदर सिंह की तलाकशुदा पत्नी थीं, जो आर्मी ऑफिसर थे।

   रुखसाना सुल्तान की मौसी बेगम पारा बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री थीं और उनकी शादी दिलीप कुमार के भाई नासिर खान से हुई थी। इस तरह दिलीप कुमार भी रूखसाना के मौसा थे।

  रुखसाना की बेटी मशहूर अभिनेत्री अमृता सिंह हैं जो सारा अली खान की मां भी हैं।

  निकाह फिल्म के लिए बी आर चोपड़ा कोई नया चेहरा लेना चाह रहे थे तब उनकी मुलाकात रुखसाना से हुई और उन्होंने अमृता सिंह को देखा , पर निकाह के लिये सलमा आगा को लिया गया , जो रुखसाना को बहुत खराब लगा  उन्हें पता लगा कि  बेताब के लिए धर्मेंद्र भी सन्नी के लिए कोई नई फीमेल एक्ट्रैस तलाश रहे थे , वे धर्मेंद्र से मिलीं और अमृता सिंह को इस फिल्म से लांच किया गया।


  शायद ये आपातकाल के दिनों की ही बात है जबकि संजय गांधी ,परिवार नियोजन ,अतिक्रमण जैसे कार्यक्रमों को हर हाल में पूरा कर लेना चाहते थे। रुखसाना काफी तेजतर्रार महिला थीं इसलिए संजय को जम गईं कि वो बहुत कुछ कर सकतीं हैं।

  संजय ने उन्हें नसबंदी के लिए लोगों को बिशेषकर मुस्लिमों को राजी करने का काम सौंप दिया।

  संजय गांधी जानते थे कि देश की सबसे बड़ी समस्या आबादी है और अगर इमरजेंसी के दौरान थोड़ा प्रभाव दिखाकर लोगों को नसबंदी के लिये समझा दिया गया तो देश की आबादी कंट्रोल हो सकती है ,इसकी शुरुआत वो दिल्ली से कराना चाहते थे । उन्ही दिनों रुखसाना से मुलाकात होने पर जब रुखसाना ने उनसे कहा कि मैं पार्टी के लिए क्या कर सकती हूं ? तो संजय ने अपनी दुविधा उनसे शेयर कर दी।


  कहा जाता है उन्होंने टारगेट इतना सीरियसली लिया कि लोगों में उनका खौफ फैल गया।

 उस समय संजय की मित्र मंडली में जगदीश टाइटलर ,सज्जन कुमार ,कमलनाथ और रुखसाना थे।

  वे शिफॉन की साड़ी और बड़ा सा goggles अक्सर पहनती थीं लोग उन्हें खूब पहचानने लगे थे। वे जिस इलाके में जातीं वहां हड़कंप मच जाता था। कहा जाता है कि एक बार पत्रकार तवलीन सिंह उनके लुक में पुरानी दिल्ली के किसी एरिया में किसी स्टोरी को कवर करने गईं तो लोगों ने उन्हें रुखसाना समझ कर दौड़ा लिया था।

  फिलहाल रुखसाना ने अपने काम को येन केन प्रकारेण पूरा किया । सरकारी कर्मचारियों को यहां तक कहा गया कि उन्होंने अगर नसबंदी न कराई तो उनका वेतन रोक दिया जायेगा ।

   अंततः एक साल में 8000  के टारगेट को उन्होंने 13000 के लगभग लोगों की नसबंदी कराकर पूरा किया।

  उसके बाद अतिक्रमण हटाओ अभियान के तहत संजय गांधी ने उन्हें तुर्कमान गेट की झुग्गी बस्तियों को हटाने का काम सौंप दिया और वो बुलडोजर लेकर वहां पहुंच गईं । वहां उस समय मारकाट शुरू हो गई लगभग 6 लोग मारे गये। पुरानी दिल्ली इलाके में रुखसाना सुल्तान के नाम का खौफ छा गया था।

 इन सब घटनाओं से संजय गांधी और इंदिरा जी की इमेज खराब हो गई ,और 1977 का चुनाव कांग्रेस हार गई।

  उन दिनों यूथ कांग्रेस की अध्यक्ष अंबिका सोनी थीं और वो रुखसाना के छा जाने से बहुत परेशान थीं ,इंदिरा जी तक हर बात पंहुचती थी इंदिरा जी और मेनका भी उन्हे नापसंद करती थीं। पर संजय के आगे कोई कुछ नही बोलता था। संजय गांधी का काम कराने का तरीका थोड़ा सख्त था या वे अनुभवी नही थे । जोश में काम करते थे और ऐसे ही लोगों को अपने आसपास रखते थे।

  उन दिनों रुखसाना की लाइफ स्टाइल भी बेहद चर्चित रहती थी। 

  वे "कैमे "  का साबुन  इस्तेमाल करतीं थी जो विदेशों से आता था ,भारत में स्मगलिंग के जरिये ही आता था। एक बार हाजी मस्तान उनसे मिलने गये तो उनकी गाड़ी की पिछली सीट पर बस वही साबुन भरा हुआ था (साभार)

गुरुवार, 10 जुलाई 2025

ये होती है सत्ता का मिज़ाज…

ये होती है सत्ता का मिज़ाज…

 


जापान के बर्फीले उत्तरी इलाके में क्यू-शिराताकी नाम का एक बहुत छोटा सा रेलवे स्टेशन हुआ करता था. आसपास के गाँवों में रहने वालों की कुल आबादी कोई तीस-चालीस होगी. स्टेशन पर हर रोज़ एक रेलगाड़ी आते-जाते दो दफ़ा रुका करती. 


रेलवे डिपार्टमेंट कई बरसों से गौर कर रहा था कि इस स्टेशन से बहुत ही कम यात्रियों का चढ़ना-उतरता होता था. स्टेशन के रखरखाव और रेलगाड़ी के ठहरने में अच्छा खासा पैसा खर्च हो रहा था. इस नुकसान के सौदे को देखते हुए मार्च 2016 से इस स्टेशन को बंद करने का फैसला ले लिया गया. इलाके के लोगों के लिए छः किलोमीटर दूर मौजूद एक दूसरे स्टेशन की सेवाएं लेने का विकल्प पहले से था.


फैसला लिए जाने के कुछ ही दिनों बाद रेलवे अधिकारियों को मालूम पड़ा कि क्यू-शिराताकी स्टेशन से हर सुबह चौदह-पंद्रह साल की एक बच्ची अपने स्कूल जाने और वापस घर लौटने के लिए उसी रेलगाड़ी का इस्तेमाल करती आ रही थी. वह सुबह सवा सात बजे स्टेशन पहुँचती थी, जहाँ से वह पैंतीस किलोमीटर दूर अपने स्कूल जाती थी. एक दूसरी रेलगाड़ी उसे शाम के पांच बजे वापस वहीं छोड़ती थी.


काना हरादा नाम की इस लड़की के बारे में पता चलते ही सरकार ने तय किया कि जब तक उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती, स्टेशन को किसी भी कीमत पर बंद नहीं किया जाएगा. अगले तीन साल तक क्यू-शिराताकी स्टेशन पर वह रेलगाड़ी हर दिन दो दफ़ा ठहरती रही ताकि काना हारादा की पढ़ाई पूरी हो और उसकी एक भी क्लास न छूटे.


इस घटना का 3 फरवरी 2025 के हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी इस ख़बर से कोई सम्बन्ध नहीं है जिसके मुताबिक़ साल 2014-15 से 2023-24 के बीच भारत में कुल 89,000 सरकारी स्कूल इस वजह से बंद कर दिए गए कि उनमें पढ़ने वाले बच्चों की तादाद लगातार घट रही थी. 


जापान की काना हरादा की कथा बताती है कि इसी दुनिया में यह भी होता है कि बगैर मेले-तमाशे के कोई-कोई सरकारें अपने नागरिकों से किये गए हर वायदे को पाबंदी के साथ निभाती हैं. बजट की कमी, पैसे का नुकसान वगैरह सिर्फ बातें होती हैं जिन्हें कभी भी, कहीं भी बनाया जा सकता है.(साभार)


(फोटो: क्यू-शिराताकी स्टेशन पर काना हारादा को लेने पहुँच रही रेलगाड़ी)


बुधवार, 9 जुलाई 2025

ऑपरेशन सिंदूर पर राफ़ेल का ये सच मोदी की नींद उड़ा देगा…

 ऑपरेशन सिंदूर पर राफ़ेल का ये

 सच मोदी की नींद उड़ा देगा…


आज फ्रांस से खबर आई है की राफेल विमान बनाने वाली कंपनी द साल्ट ने एक बयान जारी किया और उसमें कहा स्ट्राइक में एक ही राफेल गिरा है और उसकी वजह भी कुछ तकनीकी खामी है! द साल्ट ने यह भी कहा भारत में विमान की देखरेख उपयुक्त तरीके से नहीं हो रही है उल्लेखनीय है विमान की देखभाल का ठेका सरकार ने अनिल अंबानी को दिया था! 

द साल्ट यह भी कहा भारत की  ट्रेनिंग में कमी है इस वजह से उपयुक्त पायलट नहीं है! 


द सॉल्ट ने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह एक ऑडिट कंपनी भारत भेजना चाहता है, जो बचे हुए राफेल की जांच करना चाहती है और यह भौतिक रूप से सत्यापित करना चाहती है कितने राफेल धारा शाही हुए लेकिन भारत सरकार ने द साल्ट को पूरी तरह मना कर दिया! सरकार ने कहा यह हमारे आंतरिक मामले में दखल होगा!

इस परिपेक्ष को यूं भी समझा जा सकता है भारत सरकार सच्चाई बताने की इच्छुक नहीं है! 

राहुल गांधी ने एक सवाल पूछा और एक विचारधारा ने उन्हें देशद्रोही करार  दे दिया! अब वही सवाल देश की जनता को परेशान कर रहा है! 

इधर भारत के मुख्य रक्षा अधिकारी सीडीएस चौहान साहब ने सिंगापुर में बयान दिया था, विमान के संदर्भ में सेना के पक्ष पर तकनीकी त्रुटियां हुई थी और फिर उसे हमने सुधारा और पाकिस्तान के ठिकानों पर आक्रमण किया? उन्होंने स्वीकार किया हमारे कुछ विमान गिरे थे! 

इंडोनेशिया में डिफेंस अटैची शिवकुमार ने कहा भारतीय सेना के हाथ सरकार ने बांधे हुए थे इस वजह से हमारे विमान गिरे! 

और 2 दिन पहले उप सेना अध्यक्ष राहुल  के सिंह का बयान भी सुर्खियों में रहा , जिसमें  भी उन्होंने यह सवाल उठाए की सरकार ने हमें पूरी इजाजत नहीं दी इस वजह से हमारे विमानो का नुकसान हुआ! 

भाजपा के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी दावा करते हैं पांच राफेल गिरे! 

अंतरराष्ट्रीय मीडिया में रायटर के , अल जजीरा के अलग-अलग दावे हैं!

एक तरफ हमारे सेना के अधिकारी मान रहे हैं, हमारे एक से अधिक विमान का नुकसान हुआ वही द साल्ट का कहना है की एक ही राफेल गिरा! और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का अलग ही कहना है!

द साल्ट एक विमान कंपनी है और एक राफेल की कीमत ढाई हजार बिलियन डॉलर है ऐसे में यदि यह सिद्ध हो जाता है चीनी मिसाइल ने भारत के राफेल गिरा दिए तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार में राफेल की मार्केटिंग बिल्कुल शून्य हो जाएगी क्योंकि इतने महंगे विमान पर लोगों का भरोसा खत्म हो जाएगा!

विश्लेषक यह भी मानते हैं राफेल का स्टैंड इसी के चलते पतली गली निकालने की कोशिश कर रहा है!

 लेकिन क्या सरकार का दायित्व नहीं बनता प्रमाणिकता से देश की जनता को सही बात बताएं ताकि एक तो यह कंट्रोवर्सी बंद हो और दूसरा सेना के पराक्रम को कोई प्रश्न चिन्हित नहीं कर सके?

और जवाब आने के बाद शायद देशद्रोही कौन इसका भी फैसला हो जाएगा! और सबसे बड़ी बात तो यह है कि साल्ट के इस सच ने मोदी सत्ता की करतूत खोल कर रख दी है…


क्योंकि कहीं-कहीं पूरे संदर्भ में और सेना के अधिकारियों के बयान के परिपेक्ष में ऐसा लगता है सरकार अपनी गलतियां सेना के सिर पर कर कर स्वयं बचना चाहती है!


जिस तरह सत्ता के प्रतिनिधियों ने सेना के अधिकारियों का 

अपमानित किया है, उनको आरोपित किया है, सेना के पराक्रम पर सवाल खड़े किए हैं उससे इस बात को और ज्यादा बल मिलता है!

मंगलवार, 8 जुलाई 2025

श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अंग्रेज और डबल इंजन…

 श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अंग्रेज और डबल इंजन… 

छत्तीसगढ़ में बैठी डबल इंजन की सरकार के मुखिया जब श्यामाप्रसाद मुखर्जी को याद कर रहे थे तब राजधानी के चारों विधायक और सांसद भी एक साथ याद करने की बजाय अपने अपने ढंग से अपनी सुविधा के अनुसार याद का रहे थे तब नई पीढ़ी के लिए यह जानना ज़रूरी है कि आख़िर श्यामा प्रसाद को केवल भाजपाई क्यों याद कर रहे थे…


संलग्न छाया चित्र में एक चेहरा श्यामा प्रसाद मुखर्जी का  है ...

एक अन्य चेहरा जिन्ना का भी है ...

जब कांग्रेस ने अंग्रेजों के विरोध में भारत छोड़ो आंदोलन में शिरकत की थी ...

तब हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग ने अंग्रेजों की मदद से कई सूबों में सरकार बनाई थी ...

दरअसल तब यही दोनों दल हुकूमत ए बरतानिया की दलाली करते नजर आ रहे थे ...

इनाम स्वरूप इन्हीं दोनों के अतिरिक्त सभी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध आयद था ...

देश विभाजन कर अलग पाकिस्तान की मांग करने वाला ए के फजल हक बंगाल का मुख्यमंत्री बना ...

श्यामा प्रसाद मुखर्जी को वित्त मंत्री बनाया गया ...

हालांकि सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाला फॉरवर्ड ब्लॉक बंगाल में इस अद्भुत और परस्पर विरोधी साम्प्रदायिक विचार वाली सरकार को लेकर साथ था ...

मगर उनके भाई सरत चंद्र बोस के विरोध करने पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ही उन्हें गोली मारने के प्रार्थना अपने अंग्रेज आका से की थी ...

वित्त मंत्री के तौर पर ही इस व्यक्ति ने बंगाल के राज्यपाल को लिखे एक पत्र के अंत में स्पष्ट तौर पर वादा किया कि उनकी सरकार बंगाल में (भारत छोड़ो) आंदोलन को दबाने का कार्य करेगी ...

यह अकेला व्यक्ति बंगाल के विभाजन का भी जिम्मेदार है ...

दो मई 1947 को लार्ड लुईस माउंटबेटन को संबोधित पत्र में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने लिखा था कि भारत का विभाजन हो न हो बंगाल का विभाजन जरूर होना चाहिए ..

बंगाल में आए भीषण अकाल के दौरान लगभग दो लाख बंगालियों की मौत का जिम्मेदार भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी को माना जाता है ...

ख़ैर ये तो इतिहास है अब वर्तमान में देखिए कि राजधानी में शारदा चौक में लगी लगी मूर्ति  पर अलग अलग कैसे पहुँचे बीजेपी के नेता…













सोमवार, 7 जुलाई 2025

स्वामी के वार पर बीजेपी क्यों चुप

 स्वामी के वार पर बीजेपी क्यों चुप 

भाजपा के धुरंधर प्रवक्ताओं की बोलती बंद…


पिछले कई दिनों से सुब्रह्मण्यम स्वामी के द्वारा दिये जा रहे बयान भले ही मेन मीडिया में मुद्दा न बन पाया हो लेकिन सोशल मीडिया में यह हाहाकारी बन गया है, प्रधानमंत्री मोदी पर हो रहे इस हमले पर बीजेपी के प्रवक्ताओं ने भी चुप्पी ओढ़ ली है तब सवाल कई तरह के उठने लगे हैं कि आख़िर बात बात पर हमला करने में माहिर बीजेपी क्यों चुप है…

पिछले पखवाड़े से डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के पॉडकास्ट इंटरव्यू ने भारतीय राजनीति में तहलका मचा दिया है। उनके नरेंद्र मोदी के खिलाफ तीखे और सनसनीखेज खुलासे सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल रहे हैं। स्वामी, जो कभी भाजपा के कद्दावर नेता रहे और मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई, अब उसी नेतृत्व पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं। उनके बयानों में भ्रष्टाचार, नीतिगत विफलताओं और व्यक्तिगत विश्वासघात जैसे आरोपों ने जनता का ध्यान खींचा है।

स्वामी का दावा है कि मोदी ने उनके विश्वास को तोड़ा और कई मौकों पर राष्ट्रीय हितों से समझौता किया। उन्होंने हरेन पांड्या की मौत से लेकर राम सेतु जैसे मुद्दों पर मोदी के रवैये को कठघरे में खड़ा किया। ये आरोप कोई मामूली नहीं हैं; ये सीधे देश के शीर्ष नेतृत्व की विश्वसनीयता पर चोट करते हैं। फिर भी, मुख्यधारा का मीडिया, जिसे स्वामी "पालतू" कहते हैं, इन खुलासों को छूने से परहेज कर रहा है। लेकिन सोशल मीडिया पर ये बयान वायरल हो रहे हैं, जहां लोग इन्हें साझा कर तीखी बहस छेड़ रहे हैं।

भाजपा की चुप्पी इस मसले पर सबसे चौंकाने वाली है। राहुल गांधी के एक सामान्य सवाल पर आक्रामक जवाब देने वाली पार्टी, जिसमें जे.पी. नड्डा, संबित पात्रा, रविशंकर प्रसाद, सुधांशु त्रिवेदी और अनुराग ठाकुर जैसे प्रवक्ता शामिल हैं, स्वामी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोल रही। यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। क्या पार्टी स्वामी के प्रभाव और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों की गंभीरता से डर रही है? या फिर स्वामी के पास ऐसी जानकारी है, जिसका खुलासा भाजपा के लिए और बड़ा संकट खड़ा कर सकता है?

स्वामी की विश्वसनीयता और उनके पुराने ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, उनकी बातों को पूरी तरह खारिज करना मुश्किल है। 2G घोटाले से लेकर नेशनल हेरल्ड केस तक, उन्होंने हमेशा बड़े मुद्दों को बेबाकी से उठाया है। लेकिन उनकी मौजूदा आलोचना को कुछ लोग व्यक्तिगत नाराजगी से जोड़कर देख रहे हैं, क्योंकि उन्हें मोदी सरकार में अहम भूमिका नहीं मिली। फिर भी, उनकी बातों का प्रभाव और भाजपा की चुप्पी इस मसले को और रहस्यमयी बनाती है।

यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि अगर स्वामी के आरोप झूठे हैं, तो भाजपा खुलकर जवाब क्यों नहीं दे रही? और अगर इनमें सच्चाई है, तो क्या देश की जनता को इसका जवाब नहीं मिलना चाहिए? यह चुप्पी न केवल स्वामी के खुलासों को बल दे रही है, बल्कि लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल उठा रही है।#साभार)

शनिवार, 5 जुलाई 2025

राष्ट्रवाद के नाम पर घिनौना व्यापार…

 राष्ट्रवाद के नाम पर घिनौना व्यापार…


वैसे तो संघ के चीन के रिश्ते की कहानी नई नहीं है और न ही मोदी राज में चीन से व्यापारिक रिश्ते, कल तक जो लोग कांग्रेस सरकार में चीनी समानों को छाती पीट पीट कर कोस रहे थे वे भी चुप है और अब विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद के बेटे ध्रुव जयशंकर को मिले चीनी फंड पर भी चुप हैं तो उन्हें अपने भीतर की दोगलाई को परखना चाहिये…

जिस देश में ‘राष्ट्रवाद’ सुबह की चाय से लेकर रात की थाली तक परोसा जाता हो, वहां यह सुनना कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बेटे ध्रुव जयशंकर के थिंक टैंक को चीन से 1.76 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली — यह न सिर्फ विस्फोटक है, बल्कि उस झूठ की तिजोरी खोलता है जिसमें पूरा राष्ट्र बंदी बना दिया गया है।

सवाल यह नहीं है कि ORF को चीनी दूतावास से पैसा क्यों मिला।

सवाल यह है कि जब यही आरोप कांग्रेस के राजीव गांधी फाउंडेशन पर लगे थे, तब पूरा सत्ता-वृत्त उसे 'देशद्रोह' की आड़ में लाठीचार्ज तक ले गया था।

और अब?


अब जब उसी भाजपा सरकार के विदेश मंत्री का बेटा एक ऐसे थिंक टैंक में कार्यरत है, जिसे खुद चीन ने फंड किया है — तो क्या वह पैसा 'देशहित' में गिना जाएगा?


क्या अब चीनी फंडिंग भी 'आत्मनिर्भर भारत' का हिस्सा है?


ORF यानी ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन — न सिर्फ भारत की विदेश नीति के विमर्श का एक प्रमुख केंद्र है, बल्कि सत्ता-तंत्र से उसका गहरा जुड़ाव है। 2016 में चीनी दूतावास, कोलकाता से 1.25 करोड़ रुपये और फिर 2017 में 50 लाख रुपये का दान — न यह छुपाया गया, न ही इसका कोई खंडन आया।


पर चुप्पी गूंज रही है।


ध्रुव जयशंकर ORF के US Initiative के डायरेक्टर हैं। उनके पिता एस. जयशंकर भारत के विदेश मंत्री हैं। भारत-चीन सीमा पर तनाव के बीच, इसी ORF को चीन से पैसा मिला — और इस बात पर कोई विशेष संसद समिति नहीं बैठती, न कोई न्यूज़ चैनल हेडलाइन बनाता है।


क्यों?


क्योंकि सत्ता को “राष्ट्रद्रोह” का प्रमाणपत्र बेचने में केवल वही चेहरे दिखते हैं जिनके नाम मुस्लिम, दलित या असहमति के ध्वजवाहक हों। उमर खालिद हो, नजीब हो, शरजील हो या फिर जीएन साईनाथ जैसे किसान पक्षधर पत्रकार — सबके लिए राष्ट्रवाद की कसौटी अलग है। मगर जब पूंजी, सत्ता, और विदेश नीति की गलियों में सत्ताधारी दल के बेटे को फंडिंग मिलती है — तब राष्ट्रवाद मौन साध लेता है।


यह केवल दोहरा मानदंड नहीं है। यह लोकतंत्र के गाल पर एक चुपचाप पड़ा तमाचा है।


और मज़ेदार विडंबना ये है कि उन्हीं दिनों भाजपा के प्रवक्ता कांग्रेस पर आरोप लगा रहे थे कि उन्होंने “चीन से पैसा लिया है” और “राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला” है।


भाजपा समर्थक थिंक टैंक ‘Vivekananda International Foundation’ के संदर्भ में भी फंडिंग का मुद्दा उठा, लेकिन वहाँ सब खामोश हैं। डोभाल जैसे एनएसए के संस्थापक रहते हुए, क्या उस फाउंडेशन को भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों से जुड़े “डोनेशन” नहीं मिले?


तो फिर कौन तय करेगा कि राष्ट्रभक्ति क्या है?

क्या उसकी परिभाषा अब यह है कि —

जब आप विपक्ष में हों तो विदेश से पैसे लेना देशद्रोह,

लेकिन सत्ता में हों तो वही विदेशी पैसा 'कूटनीतिक सहयोग'?


भारत को तय करना है:

राष्ट्रवाद को हम गाली बनायें या गहराई।

क्या राष्ट्र का अर्थ सिर्फ “हमारा झंडा” है, या “हमारा ज़मीर” भी?


अगर सचमुच राष्ट्र सर्वोपरि है,

तो फिर ORF की फंडिंग पर वही सवाल पूछे जाने चाहिए जो RGF से पूछे गए थे।

नहीं तो यह राष्ट्रवाद नहीं — एक घिनौना व्यापार है।(साभार)