बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

मोदी का काम - संघ का नाम

 मोदी का काम - संघ का नाम 


पिछले दो दिनों से, यानी हरियाणा चुनाव के परिणाम के बाद से ही अचानक, हरियाणा की जीत को लेकर उठते सवालों के बीच यह खबर बड़े मीडिया घरानों की तरफ से उछाली जा रही है कि हरियाणा में संघ ने बाजी पलट दी।


कल तक हर जीत का श्रेय मोदी को देने वाली मीडिया का इस सूर के मायने क्या है । जबकि संघ प्रमुख मोहन भागवत बग़ावती सूर में थे।

कल तक यानी चुनाव परिणाम के एक दिन पहले तक संघ प्रमुख मोहन भागवत की नाराजगी की खबरें अचानक गायब कर मोदी के समर्थन में स्वयं सेवकों को हरियाणा में कूदा देने का मतलब जानने  की कोशिश होगी ही चाहिए ?


संघ को श्रेय देने  की वजह के बाद जो सवाल उठ रहे है उनमें से 

पहला सवाल - क्या संघ को श्रेय देकर ईवीएम की कथित गड़बड़ी के मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश की जा रही है ताकि मोदी सत्ता पर ईवीएम को लेकर लगने वाले आरोप को कमतर किया जा सके। 

दूसरा सवाल - हरियाणा की जीत से ताकतवर बने मोदी को भाजपा अध्यक्ष बनाने में मनमानी से रोका जा सके ?

ये दोनों सवाल का जवाब आप सोचें और तय करें कि आख़िर  हर चुनाव के पहले नाराजगी का शिगुफा और जीत पर पीठ थपथपाने  के खेल के बीच ईवीएम में गड़‌बड़ी की शिकायतों का इस खबर से कितना संबंध है कि संघ के सोलह हज़ार स्वयंसेवकों ने बाजी पलट दी।

हम शीघ्र ही आपको इस सवाल का जवाब देंगे…

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2024

हरियाणा और साँई बाबा

 पता नहीं बेटा - 2



बेटा - पिताजी, हरियाणा में मोदी ने फिर जादू चला दिया..


पिताजी- हाँ बेटा, 12 फीसदी वोट बढ़ने के बाद भी कांग्रेस सत्ता से दूर रह गई।


बेटा - फिर गाँव-गांव से कपड़े फाड़ने, भाजपाईयों को भगाने की खबर क्या थी, पिताजी?


पिताजी - पता नहीं बेटा ?

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बेटा. साई बाबा को मंदिरों से हटा रहे है…


पिताजी- हाँ बेटा हिन्दुवादियों को यह पसंद नहीं आ रहा।


बेटा- तो फिर क्या अब ये हिन्दूवादी बतायेंगे कि किसकी पूजा करना है


पिताजी - पता नहीं बेटा?

रविवार, 6 अक्तूबर 2024

पता नहीं बेटा ! -१

पता नहीं बेटा !


बेटा - क्या इस बार संघ प्रमुख मोहन भागवत भाजपा मैं अपना आदमी बिठाकर ही रहेंगे ।

पिताजी - हाँ बेटा चर्चा तो यही है 

बेटा- पिताजी, आख़िर भागवत को मोदी से इतनी नाराज़गी क्यों है, जबकि मोदी ने संघ को भरपूर खाद-पानी दिया, संघ का का जगह जगह कार्यालय भी बनवाया।

पिताजी- पता नहीं बेटा ।

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बेटा - बलात्कारी राम रहीम ने भाजपा को जीताने की अपील की है।


पिताजी - हाँ बेटा, इसे लेकर भाजपा की थू-थू  भी हो रही है।


बेटा - पिताजी, आख़िरकार भाजपा को बलात्कारियों से इतना प्रेम क्यों है


पिताजी - पता नहीं बेटा।

शनिवार, 5 अक्तूबर 2024


 

सत्ता से समृद्धि...


कभी राजनीति समाज सेवा का सबसे सशक्त माध्यम हुआ करता था । सादा जीवन उच्च विचार के मूलमंत्र से अभिभूत राजनीति में आने वाले की सेवा भाव देखते ही बनती थी । कांग्रेस हो या भाजपा, समाजवादी हो या कम्यूनिष्ट सबके लिए समाज सेवा प्रथम लक्ष्य रहा । ऐसे कितने ही उदाहरण रहे जब इस देश में नेताओं ने राजनैतिक सुचिता के लिए सत्ता की कुरसी को लात मारने से भी परहेज नहीं किया । खुद छत्तीसगढ़ में बैठी रमन सरकार की पार्टी में ही अटल-आडवानी से लेकर कई नाम लोगों को जुबानी याद हैं जिन्होंने राजनैतिक सुचिता के लिए अपना सब कुछ होम कर दिया । लेकिन क्या अब इसी पार्टी में ऐसा हो रहा है । भाजपा ही क्यों किसी भी पार्टी में ऐसा नहीं हो रहा है । अपराधियों को संरक्षण से लेकर खुद भ्रष्टाचार में डुबे लोग सत्ता का केन्द्र बने हुए है और ऐसे लोग बड़ी बेशर्मी से राजनैतिक सुचिता, ईमानदारी की बात करते नहीं थकते । 
सत्ता के साथ बुराई के घालमेल को स्वाभाविकता की चासनी में पिरोने में भी किसी को शर्म नहीं आती और न ही अपने लिए समृद्धि का टापू बनाने से ही इन्हें कोई दिक्कत होती है । तभी तो छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में शिक्षा-स्वास्थ के अभाव को नजर अंदाज कर नई राजधानी के नाम पर समृद्धि का टापू खड़ा कर दिया जाता है । इस टापू के एक-एक रास्ते के लिए रोशनी का ऐसा इंतजाम किया जाता है ताकि बिजली विहिन गांव की तरफ कभी ध्यान ही न जाए । 
मंत्रियों व अधिकारियों के बैठने के कमरों की भव्यता इतनी बढ़ा दी जाती है कि एक आम आदमी इस चकाचौंध में अपनी पीड़ा व्यस्त करने की हिमामत न कर सके । 
इस भव्यता पर गांधी के विचार पर चलने वाले कांग्रेसियों को भी इसलिए फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे भी कतार में है । 
ऐसे में राजनीति समाज सेवा का माध्यम की बजाय कार्पोरेट सेक्टरों की भव्यता की तरह व्यवसाय का जरिया बन गया हो तो भला किस पार्टी को आपत्ति होगी ? क्योंकि दूकानें तो किसी न किसी की चलनी ही है और जनता ही ठगी जायेगी । इस राजधानी ने ऐसे बहुत से लोगों को राजनीति में आते ही करोड़ पति अरबपति बनते देखा है जिनकी औकात दो कौड़ी की भी नहीं रही । जिनके घर दो टाईम का चूल्हा बमुश्किल से जलता था वे आज इस शहर के दान दाता बने है । जिनके खुद के मकान नहीं थे वे सैकड़ो एकड़ के मालिक है और जिनकी औकात एक पाव पीने की नहीं थी ओर आधा पाव का पैसा मिलाने शाम से ही टकटकी लगाए बैठे होते थे वे आज सबसे महंगी शराब ही नही पिलाते बल्कि अपने बेटे की शादी भी इतनी भव्यता से करते है कि सब देखते रह जाए । 
सत्ता से आई इस समृद्धि का यह सफर राजनीति को किस मुकाम तक ले जायेगा यह तो पता नहीं लेकिन एक बात तय है कि जनता की हाय लेकर की गई कमाई का एक बड़ा हिस्सा या तो बिगडै़ल औलाद उड़ा देते हें या फिर डाक्टर ले जाते हैं । 
जियो और जीने दो की संस्कृति से ओत प्रोत छत्तीसगढ़ में राज्य बनते ही जो परिवर्तन आया है उसकी कल्पना किसी ने नहीं की रही होगी । सत्ता से आ रही समृद्धि ने संवेदनहीनता को तो बढ़ाया ही हैे नैतिकता और राजनैतिक सुचिता पर भी चोंट की हैे । 
बेलगाम नौकर शाह और बढ़ते भ्रष्टाचार ने इस नये नवेले राज्य के विकास में रोड़ा अटका रहे हैं तो इसकी वजह जनप्रतिनिधियों की तामसी प्रवृति है जो वातानुकूलित कक्ष से ऐसे बुनियाद रखना चाहती है जिसका रास्ता विकास नहीं विनाश की ओर जाता है । क्या भाजयुमों के युवा सम्मेलन में समृद्धि का तामझाम सत्ता के रास्ते से नहीं आया है । और सत्ता की समृद्धि से विकास की सोच नहीं खुद की एय्याशी का बंदोबस्त ही होता है...

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

जलेबी की फ़ैक्ट्री और ट्रोलर गैंग की कुंठा

 जलेबी की फ़ैक्ट्री और ट्रोलर गैंग की कुंठा


हरियाणा में राहुल गांधी ने जलेबी की फैक्ट्री क्या बोला, ट्रोलर गैंग बिलबिलाते बाहर आ गये, और वॉट्साप यूनिवर्सिटी में कापी पेस्ट कर अपने वॉल पर चेपने लगे।

न तो इन्हें तथ्य और तर्क से लेना देना है और न ही इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक व्यापारिक या व्यवहारिक ज्ञान ही होता है  , बस उन्हें नफरत का खेल खेलना है

ऐसा नहीं है कि ट्रोलर पक्ष सिर्फ हिन्दुवादी संगठनो में ही शामिल है, मुस्लिमवादी से लेकर हर पक्ष में यह गैंग आपको मिल जायेगा, ज्ञान के स्तर पर कुंठित और दरिद्र लोगों का यह समूह कॉपी-पेस्ट करते समय यह भी नहीं सोचता कि इससे उनकी अपनी ही बेइज्जती हो रही है, घोर बेइज्जती ।

राहुल गांधी के जलेबी की फ़ैक्ट्री वाले बयान को मिम्स और चुटकुलों के जरिये मजाक उड़ा‌ने वालों की बुद्धि पर तरस इसलिए भी आता है क्योंकि  जिसे वे अपने माई-बाप बताकर कॉपी पेस्ट करते है वह सांस्कृतिक राष्ट्र‌वाद का दावा करते नहीं थकता ।

अचानक बिलबिलाते लोग जलेबी की खेती वाले मिम्स बनाकर कहने लगे कि जलेबी तो हलवाई की दूकान में बनता है न कि फैन्ही में।

पर इन कोपी पेस्ट वाले ट्रोलरों को क्या पता कि हलवाई अपनी दूकान के लिए मिठाई या जलेबी बनाते है,  वे इन निर्माण स्थलों को कारखाना या फैक्टरी ही कहते है, सिर्फ़ हलवाई ही नहीं बड़े बड़े टेलरिंग शॉप वाले भी जहाँ अनेको दर्जी बिठाकर सिलाई करवाते है उसे भी सिलाई कारख़ाना या फ़ैक्ट्री ही कहते है। मिक्चर फैक्ट्री, मिठाई कारख़ाना यह आम बोलचाल में है। यही रायपुर के बड़े प्रतिष्ठित  मिठाई दुकान वाले जहाँ उनकी मिठाइयाँ जलेबी और नमकीन बनती  उसे कारख़ाना या फ़ैक्ट्री ही कहते हैं, पेठा कारख़ाना या फ़ैक्ट्री तो इसी शहर में चर्चित है।

अब इन लोगो को मिलने वाले ज्ञान के संस्कार केंद्र को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कह देने भर से संस्कारी तो होगा नहीं…।

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2024

बलात्कारी भाजपाई हो तो प्रदर्शन करना भी गुनाह

 बलात्कारी भाजपाई हो तो प्रदर्शन करना भी गुनाह.


2014 के बाद जिस नये भारत का दावा किया गया था उस भारत में क्या  बलालारियों की जाति और धर्म देखकर सजा का प्रावधान है। क्या भाजपाई बलात्कारी हो तो उसे पैरोल में भी छोड़ा जायेगा और उसका स्वागत सत्कार भी होगा और क्या ऐसे बलात्कारियों के खिलाफ प्रदर्शन करना गुनाह है।

यह सवाल अब इसलिए बड़ा होने लगा है क्योंकि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने विश्वविघालय कैम्पस में बलात्कार करने वाले भाजपाईयों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले  13 छात्र-छात्राओं को तीन माह के लिए  अनुशासनहीनता के नाम पर निलंबित कर दिया है।

इस मामले को लेकर विपक्ष मोदी और योगी सरकार पर हमलावर है। लेकिन इस दौर में जिस तरह से बड़े  लक्ष्य के  नाम पर सत्ता , बलात्कारियों को संरक्षण दे रही है उसने बेशर्मी की सभी हदे लांघ दी  है या बेशर्मी की पराकाष्ठा कहा जाए तब भी गलत नहीं होगा।

वैसे भी यदि व्य‌क्ति कित‌ना भी प्रतिभाशाली हो लेकिन वह शासन तंत्र के प्र‌भाव में काम करता है तो सत्ता से उन्हें सम्मान प्राप्त हो ही जाता है।

बनारस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुधीर के जैन को राष्ट्रपति श्री कोविद के हाथों पद्‌म श्री तो मिल ही चुका है, वे बनारस में कुलपति बनने से पहले गांधी नगर गुजरात के प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय के डायरेक्टर भी थे। यानी आप समझ लें।

अब 13  छात्र-छात्राको के निलंबन को लेकर मचे बवाल के बीच कथित बड़े उद्देश्य के लिए किये गये  कुछ कारनामों का  जिक्र ज़रूरी है-

- कठुआ में मासूम बच्ची के बलालारियों का सम्मान

- गुजरात में बिल्किस बानो के दर्जन भर बलात्कारियों  की समय पूर्व रिहाई और सम्मान

- देश का नाम रौशन करने वाली बेटियो के यौन शोषण के आरोपी बृजभूषण शरण सिंह को संरक्षण और उनके बेटे को सांसद की टिकिट

- बलात्कारी राम रहीम को दर्जन भर से अधिक बार पैरोल पर रिहाई

ये बड़े काम है बाकि देश भर में ऐसे कई काम चल ही रहे हैं !


ताजा मामला जग्गी वासदेव को सुत्री कोर्ट से करवाए।

बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

शक्ति स्वरूपा जगदम्बा..

 


प्रतिवर्ष दुर्गोत्सव मनाया जाता है। गांव, शहर, मोहल्ले और यहां तक कि घर-घर में माँ के हर रूप की पूजा होती है। चौक चौराहों पर माता की प्रतिमा स्थापित किए जाते हैं। मंदिरों में ज्योति कलश व जंवारा स्थापित ही नहीं होते बल्कि माता की सेवा में ढोलक के थाप पर गीत गूंजते हैं। मेहमूद या फैज़ल के संगीत की थाप पर डांडिया की गूंज आकाश में दूर-दूर तक सुनाई पड़ती हैं। याद किया जाता है माँ के स्वरूप को, याद किया जाता है माँ की महिमा और भारतीय संस्कृति तथा उत्सव की वजह को।
भारतीय जीवन में नारी सा पूज्यनीय कोई और नहीं है। यही वजह है कि कई प्रांतों में माता-पिता आज भी अपनी पुत्री का चरण स्पर्श करते हैं और विवाह पश्चात उनके घर का अन्न-जल ग्रहण नहीं करते। नारी पूज्यनीय है, देवी है और उनकी शक्ति का सर्वत्र गुणगान करते नहीं थकते। नारी सावित्री बनकर अपने पति का जीवन लाने यमराज से लड़ जाती है। राधा बनकर पूरी सृष्टि में प्रेम का संचार करती है, मीरा बनकर वह सब कुछ त्याग करने तैयार रहती है तो रानी लक्ष्मी बाई बनकर देश को आजादी दिलाने तत्पर हो जाती है, वह कृष्ण की मां बनकर यशोदा मैय्या हो जाती है तो राम की मां बनकर कौशल्या माता बन जाती है, नारी में मां का स्वरूप अवर्णित है। मां के दूध से सिर्फ जीवन नहीं मिलता वह लहु में घुलकर हमारे भीतर शक्ति का संचार करती है। शक्ति हमारे भीतर है, धर्म हमारे भीतर है। धर्म हमें राह दिखाता है और शक्ति इस राह की कठिनाई को दूर करती है।  शक्ति हमारा विश्वास है। विश्वास का प्रतीक गणेश जी है इसलिए हम हर साल गणेशोत्सव भी मनाते हैं। वे विध्नहर्ता हैं, हमारा विश्वास है। यही विश्वास लिये हम अपने पूर्वजों का आशीर्वाद लेने के बाद माता की शक्ति को ग्रहण करते हैं। विश्वास के बाद शक्ति ही हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। शक्ति का दुरुपयोग न हो, मां यही तो सिखाती है।
शक्ति के अनेक रूप है इसलिए वह महामाया है, वह शक्तिशाली होते हुए भी शीतल है इसलिए छत्तीसगढ़ में गांव-गांव में शीतला माता विराजती हैं। पूरे नौ दिन माता की सेवा में गीत गाये जाते हैं, वह जननी है इसलिए जंवारा बोया जाता है। उत्सव हमारे प्राण वायु है, उत्सव हमें एक होने की प्रेरणा देता है। उत्सव हमें समझाता है जीव मात्र एक है, इसलिए माता का वाहन सिंह है। हम फल पुष्प चढ़ाते हैं, उपवास रखते हैं, सिर्फ फलाहार करते हैं। यह उत्सव हमें सबक देता है कि ईश्वर और प्रकृति के सामने सब एक हैं। मनुष्य को बचाना है तो प्रकृति को बचाना जरूरी है। इसलिए देवी-देवताओं ने अपने वाहनों, पूजा अर्चना में प्रकृति को जोड़कर रखा।
आज़ादी के बाद हमें संभलना था। इन उत्सवों के माध्यम से हमें सबको जोड़कर चलना था। मंदिर में हीरे-मोती चढ़ाने वाले भी पहुंचते हैं और खाली हाथ दर्शन करने वाले भी आते हैं। देवी-देवताओं ने कभी भेद नहीं किया। परन्तु भेद करना हमने शुरू किया। हमारे स्वार्थ ने मानव-मानव में अंतर किया। यह अंतर मिटना चाहिए। छत्तीसगढ़ की नारी बलशाली है। वह खेतों में भी उतनी ही सिद्धत से काम करती है जितना वह जंवारा विसर्जन के लिए समर्पित होती है। यहां बेटियों में भेद नहीं है, यहां कोख में बेटियां नहीं उजाड़ी जाती। इसलिए छत्तीसगढ़ महतारी है। महतारी यानी मां, मां यानी जननी। जननी भेद नहीं करती बल्कि वह कमजोर बच्चों पर ज्यादा ध्यान देती है।
मां की माया अपरंपार है। इसलिए वह महामाया है। नई पीढ़ी यह सब नहीं जानती। इसमें इनका दोष नहीं है। हमने ही इन्हें नहीं बताया। विदेशीपन की दौड़ शुरु कर दी। इस आधे अधुरे दौड़ में न वह विदेशी ही बन सका न ही अपनी संस्कृति और संस्कार से ही परिचित हो सका। वह विज्ञान की जाल में उलझ गया। उसे वही ठीक लगा जो       विज्ञान कहता है। परन्तु विज्ञान वही कहता है जो वह जानता है। विज्ञान आस्था को नहीं जानता। कण-कण में भगवान को वह अभी भी ठीक से नहीं जान सका। इसलिए नई पीढ़ी दुर्गोत्सव तो मना रहा है परन्तु विदेशी तौर तरीकों से। ऐसे में न संस्कार बचेगा न संस्कृति। सब गड़बड़ हो जायेगा।
आधा अधूरा रिश्ता या समझ हमेशा ही तकलीफ देता है। आज वहीं हो रहा है। जरूरत है तो काम ले लो वरना प्रवेश पर ही पाबंदी लगा दो। ईश्वर पाबंदी से परे है यह सब जानते हैं परन्तु जाति धर्म की खाई चौड़ी हो गई है। हम जगत जननी जगदम्बा का उत्सव तो मना रहे हैं परन्तु जननी की सहनशीलता से कुछ नहीं सीख रहे हैं।
उत्सव हमारी संस्कृति है। मनुष्य को मनुष्य से जोडऩे का माध्यम है। उन्हेंं समझने का साधन है। उत्सव से राष्ट्रीय स्वरूप विकसित होता है। देवी-देवताओं का प्रकृति से लगाव हमें नई सीख देती है। ताकि हम संस्कार के नए बगीचे तैयार कर सकें। परन्तु क्या ऐसा हो रहा है? हम उत्सव मना तो रहे हैं, अपने तौर-तरीकों से। जगत जननी जगदम्बा के आगे संगीत की थाप पर डांडिया खेला जा रहा है। ढोलक की थाप पर सेवा गीत गाये जा रहे हैं, पर श्रद्धा और विश्वास कम होता जा रहा है। शक्ति का दुरुपयोग हो रहा है, पर माँ सब चुपचाप देख रही है। महिषामर्दन होगा... जरूर होगा...।