बुधवार, 16 अक्तूबर 2024

सुभाष बाबू को क्या संघ ने धोखा दिया...

सुभाष बाबू को क्या संघ ने धोखा दिया...


अंग्रेजी अत्याचार के खिलाफ़ जब समूचा देश खड़ा हो रहा था , तभी ब्रिटिश रणनीतिकारों के ने आक्रोश को दबाने का कुचक्र किया। इस कुचक्र के दौर में ही पहले मुस्लिम लीग फिर हिन्दू‌महासभा और संघ का गठन हुआ । इनका ब्रिटिश कुचक्र से कितना लेना देना था कहना कठिन है।

लेकिन इसी दौर में देश के नौजवानों ने सर पर कफ़न बांध कर ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ हथियार भी उठाये तो गांधी ने अहिंसक आदोलन की सोच पर कांग्रेस को अपनी मुट्ठी में रख लिया, सरदार पटेल, पंडित नेहरू और सुभाष बापू ने गांधी के विचार पर मतमेद को अपने अपने ढंग से प्रद‌र्शित भी किया । 

और सुभाष बाबू ने तो कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़कर एक तरह से गांधी को खुली चुनौती तक दे डाली। सुभाष बाबू चुनाव भी जीत गए लेकिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और वे फारवर्ड ब्लाद बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए अलग रास्ता चुन लिया। 

इस दौर में सुभाष बाबू की लोकप्रियता चरम पर थी और ऐतिहासिक तथ्य कहते है कि संघ के पास इस दौर में 60 हजार से अधिक स्वयं सेवक थे। लेकिन संघ का ध्येय हिदुत्व पर टिका था। उन्हें केबी हेगडेवार को संघ के विस्तार की चिंता थी।

केबी हेगड़‌वार का संघ पर पूरी तरह से पकड़ थी, और सरसंघ कार्यवाह हुद्‌दार जन भावना के अनुरुप चाहते थे कि संघ भी ब्रिटिश अत्याचार के खिलाफ खुलकर आ जाए।

इ‌धर नेताजी सुभाष भी ब्रिटिश विरोधी संघर्ष के लिए विकल्प तलाश कर रहे थे और इसी प्रयास में हेगड़े‌वार को मनाने के लिए हुद्‌दार को शामिल किया गया लेकिन हुद्‌दार असफल हो गये।  कहते है कि हेगडे‌वार ने तबियत खराब होने का हवाला देकर सुभाष बाबू से दूरी बना ली।

इसके  बाद एक सितम्बर 1939-40 में सुभाष बाबू के दो विश्वासपात्र करीबी जोगेश चन्द्र चटर्जी और त्रैलोक्य नाथ चक्रवती ने हेगड़ेवार को मनाने का एक और प्रयास किया । वह भी असफल रहा । 

आज भले ही संघ और समूची बीजेपी सुभाष बाबू को लेकर कुछ भी दावा करते हो लेकिन ऐतिहासिक तथ्य कुछ और ही बयान करता है ।