गुरुवार, 26 सितंबर 2024

चर्बी मिले प्रसाद के साथ चंदा में मिली दवाईयां…

 चर्बी मिले प्रसाद के साथ चंदा में मिली दवाईयां…

स्वास्थ मंत्री की चिंता कुनबा बढ़ाने की…


यदि आप तिरुपति के प्रसाद में चर्बी मिलने के पाप से प्रायश्चित का प्रहसन से निजाद पा चुके हो तो अमानक दवाईयों के खेल को भी समझ लो क्योंकि खेलते-कूदते, भागते-दौड़ते जो मौत की खबरें आती है, उसके पीछे चंदे की वह कहानी भी हो सकती है जिस इलेम्ट्राल बांड को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध तो ठहराया, लेकिन इस अवेध कमाई को जब्त करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया । दूसरी तरफ़ स्वास्थ मंत्री जे पी नद्दा की अपनी चिंता है वे इन दिनों रायपुर में घूम घूम कर मोदी की तारीफ़ और बीजेपी की संख्या बढ़ाने में लगे है।

प्रायश्चित के इस प्रहसन में मंदिर भी शुद्ध हो गया और प्रसाद खाने वाले भी प्राथश्चित  करके अपने को चर्बी सेवन के पाप से मुक्त कर ही लेंगे। लेकिन न तो दवा कंपनी मानने को तैयार है कि उनकी दवाईया घटिया और अमानक है और न ही सरकार ही मानेगी कि उसने चंदा लेकर वैक्सिन से लेकर पैरासिटामॉल सहित पचास से अधिक द‌वाईयों की आपूर्ति की अनुमति दी जो घटिया और अमानक थी।

देशभर को पता चल गया कि मंदिर का प्रसाद अशुद्ध था…

…लेकिन पूरा देश घटिया और नक़ली दवाइयाँ खा रहा है, इससे किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ रहा है

53 दवाएं क्वालिटी टेस्ट में फेल,

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ड्रग रेगुलेटर सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में 53 दवाओं को क्वालिटी टेस्ट में फेल घोषित किया है। इन दवाओं में पेरासिटामोल समेत कैल्शियम और विटामिन डी3 सप्लीमेंट्स, एंटी-डायबिटीज दवाएं और हाई ब्लड प्रेशर की दवाएं शामिल हैं। इन दवाओं का फेल होना आम जनता के स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है।

CDSCO द्वारा जारी की गई इस सूची में दवाओं को "नॉट ऑफ स्टैंडर्ड क्वालिटी" (NSQ) घोषित किया गया है। ये अलर्ट रैंडम सैंपलिंग के आधार पर जारी किए जाते हैं, जिन्हें विभिन्न राज्यों के ड्रग अधिकारियों द्वारा एकत्र किया जाता है। क्वालिटी टेस्ट में फेल होने वाली दवाओं में प्रमुख रूप से पेरासिटामोल 500 एमजी, विटामिन डी3 सप्लीमेंट्स और डायबिटीज की दवाएं शामिल हैं।

CDSCO ने दो अलग-अलग सूचियां जारी की हैं। पहली सूची में 48 दवाएं हैं जो क्वालिटी टेस्ट में फेल हुई हैं, जबकि दूसरी सूची में 5 दवाओं को रखा गया है, जिनके बारे में कंपनियों को जवाब देने का मौका दिया गया है। हालांकि, अब तक फार्मा कंपनियों ने इन नतीजों को मानने से इनकार करते हुए इसे गलत ठहराया है।

अब इस बात पर नज़र होगी कि संबंधित कंपनियों और सरकार द्वारा क्या कदम उठाए जाते हैं ताकि ऐसी दवाओं का बाजार से तुरंत हटाया जा सके और आम जनता को सुरक्षित रखा जा सके।क्योंकि एक तरफ घटिया दवाएं हैं और दूसरी तरफ नकली दवाओं के बाज़ार में आने की भी खबर है। फिलहाल स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व भी निभा रहे हैं, उन पर भाजपा के सदस्यता अभियान को सफल बनाने का जिम्मा है। हालांकि तीन दिन पहले आयुष्मान भारत ‘प्रधानमंत्री जन-आरोग्य योजना’ के छह बरस पूरे होने पर श्री नड्डा ने नरेन्द्र मोदी की इस पहल की तारीफ़ करते हुए कहा था कि यह योजना दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सेवा पहलों में से एक बन गई है। यह सभी नागरिकों,  विशेष रूप से सबसे कमज़ोर लोगों के लिए समान स्वास्थ्य सेवा पहुंच प्रदान करने के लिए इस सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।लेकिन स्वास्थ्य मंत्री को यह समझना होगा कि सरकार की प्रतिबद्धता प्रधानमंत्री के गुणगान करने से पहले काम करने से पूरी होगी। चिंता की बात यह है कि असफल दवाओं में कई ऐसी दवाएं हैं, जिनका इस्तेमाल सबसे अधिक होता है। जैसे देश में करीब 220 मिलियन लोग हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित हैं, इसी तरह 2021 में डायबिटीज मरीजों की संख्या 529 मिलियन थी। करोड़ों लोग एसीडिटी रोकने की और विटामिन्स की दवाएं लेते हैं।

 हर आए दिन अचानक हृदयाघात से मौत की खबरें आ रही हैं और सरकार इस बारे में कुछ नहीं कहती। ब्रिटेन में कोविड वैक्सीन बनाने वाली एस्ट्राजेनका ने माना ही था कि उसके बनाए टीकों से नुकसान हो रहा था। इसके बाद उन टीकों को वापस भी लिया गया। लेकिन क्या भारत में परीक्षण में असफल दवाएं वापस ली जाएंगी, यह बड़ा सवाल है।

 गंभीर सवाल दवा कंपनियों और सत्तारुढ़ दलों के बीच आर्थिक रिश्तों का है।  इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया था। चुनावी बॉन्ड जारी करने के लिए अधिकृत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने काफी ना-नुकुर के बाद इसके विस्तृत आंकड़े जारी किए थे, जिनमें खुलासा हुआ था कि कई बड़ी दवा कंपनियों ने करोड़ों के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे हैं और इनका बड़ा हिस्सा भाजपा को मिला है। यह भी पता चला था कि बॉन्ड खरीदने वाली दवा कंपनियों की कई दवाएं पहले परीक्षण में अमानक और घटिया पाई गई थी, और जाँच रोक देने या क्लीन चिट देने का आरोप भी लगा था । क्या इस बार भी जिन कंपनियों की दवाएं घटिया मिली हैं, उनसे किसी तरह का चंदा मिला है।

फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी और स्वास्थ्य मंत्री नड्डा दोनों ही भाजपा का कुनबा बढ़ाने और चुनावी राज्यों में दौरों में व्यस्त हैं, 53 दवाओं का परीक्षण में फेल होना, कोई मामूली बात नहीं है, इसकी गहन जांच होनी चाहिए कि आखिर इस असफलता की वजह क्या है। अभी ज़्यादा वक़्त नहीं बीता जब गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में भारत के बने कफ़ सिरप को पीने से बड़ी संख्या में बच्चों की मौतें हुई थीं, इसके बाद इन पर कई देशों में प्रतिबंध लगा था। यह वैश्विक स्तर पर शर्मिंदगी थी और ऐसी घटनाओं से असल में देश का अपमान होता है।लेकिन डंका बजने का दावा करने वाले हिन्दुवादियो को इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता ।

हैरानी तो यह है कि नक़ली या घटिया दवा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की बजाय अभी भी प्रसाद में मुस्लिम कनेक्शन खोजने में ज़्यादा रुचि है…!