रविवार, 20 जनवरी 2013

थाने से लेकर सड़क तक दुव्र्यवहार ...


छत्तीसगढ़ पुलिस के द्वारा आम लोगों से दुव्र्यहार की कोशिश सिर्फ थाने तक ही सीमित नहीं है वह सड़कों परभी बड़े ही अभद्र ढंग े पेश आती है । जनता से व्यवहार सुधारने के लिए अफसरों ने भाषण दिया अैर पुलिस को गुस्सा आ जाता है । आखिर वे गाली गलौज न करे तो फिर पुलिस से कौन डरेगा । और पुलिस से लोग डरेंगे नहीं तो फिर वर्दी पहनने का मतलब ही क्या रह गया है ।
सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाने निकले पुलिस वालों को तो अपने प्रदर्शन का बहाना चाहिए जब कानून का रखवाला ही कानून तोड़े तो तमाश देखने के अलावा क्या बचता है ।
हर साल सड़क सुरक्षा सप्ताह के नाम पर पुलिस का प्रदर्शन से सरकार को भी मतलब नहीं रह गया है । सुरक्षा सप्ताह क ेनाम पर सड़कों को घेर कर पंडाल लगाना और फिर यातायात के नियमों का बोर्ड लगाकर वसूली करना तो अब शगल बन चुका है । इस बार तो सुरक्षा सप्ताह के नाम पर लगाये गये पंडालों में फिल्मी गीत भी खूब बजाये गए । बस स्टैण्ड के पास लगे पंडाल में बज रहे फिल्मी धुन पर जब एक शराबी थिरकने लगा तो पुलिस वाले भी मजा लेने लगे ।
आखिर मजा लेने के लिए ही तो फिल्मी गीत बजाये जा रहे थे । अब लोग पुलिस पर हंसे या न हंसे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता वैसे भी पुलिस वाले जानते है कि उनकी छवि आम लोगों में इ तरह बैठ गई है कि लोग तो उन पर हंसेगे ही तब क्यों न हंसने वाला काम ही कर लिया जाए ।
और यातायात सुधार सप्ताह तो हर साल आता ही है । फिर लोगों को भी मालूम है कि सप्ताह भर में कोई सुधर नहीं सकता ह। जब खुद नहीं सुधर पा रहे हैं तो लोगों को उम्मीद करना ही बेमानी है ।
पुलिस जानती है कि यह चुनावी साल है और चुनावी में सरकार उनसे क्या चाहती है इसलिए सरकार के हिसाब से चलना है यानी सांप भी मर जाए और लाटी भी न टूटे । यही वजह है कि अपराधियों को पकड़ कर कौन मंत्रियों से पंगा ले । तभी तो डॉ. बाढिया हो या मन्नू नत्थानी सभ्ी मजे से शहर में घूम रहे हैं । जनता को बरडालाने संपत्ति $फुर्क करने की हवा फैलाते रहो । करना कुछ नहीं है ।
Óयादा हल्ला मचे तो पुलिस बल की कमी का रोना रो दो । वैसे भ पुलिस को बचाने का काम सरकार का हो गया है । तभी तो बढ़ते अपराध पर नेता ही कह देते हैं कि राजधानी में अपराध तो बढेंग़े ही । आखिर थानों में पोस्टिंग वैसे ही नहीं होती है । बगैर पैसों का कुछ नहीं होता ।
तभी तो थाने में बढ़ते दुव्र्यवहार पर कोईवाई नहीं होती । हर थानेदार अपनी मर्जी का मालिक हो गया है । चाहा तो रिपोर्ट लिखेंगे और रिपोर्ट लिखेंगे तो अपनी मनमर्जी का धारा लगाते रहेंगे ।
अब पीडि़त बोलता रहे उनके साथ लूट हुई है मोवा थाने में चोरी ही लिखी जायेगी आप अफसरों के चक्कर लगाते थक कर चुप बैठ ही जाओंगे ।
चलते-चलते
पुलिस ने जमीन विवाद को निपटाने अलग सेल बना रखा है । सेल में बैठे लोग आने वाली शिकायतों के लिए मेहनत भी कर रहे है लेकिन अस्सी फीसदी मामले में कार्रवाई करने से उनके हाथ पांव फूलने लगते हैं । अब तो वे सत्ता बदलने की राह ताक रहे हैं ताकि कार्रवाई में अडग़ा डालने वाले मंत्री के परिवार को मजा चखा सकें ।