रविवार, 2 मार्च 2025

प्रेम रावत ने रचा इतिहास, हैरी पॉटर की लेखिका का रिकॉर्ड तोड़ा

प्रेम रावत ने भारत में रचा इतिहास, हैरी पॉटर की लेखिका जे.के. रोलिंग का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 1,33,234 प्रतिभागियों के साथ गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड स्थापित किया।




अंतर्राष्ट्रीय लेखक प्रेम रावत और भारतीय लेखक विपुल रिखी ने एक साथ सबसे बड़े ‘एक से अधिक लेखक पुस्तक वाचन’ का नया गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश में राज विद्या केंद्र द्वारा आयोजित इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में 1,33,234 लोगों की विशाल समूह को संबोधित किया। यह संख्या जे.के. रोलिंग और कनाडा के दो लेखकों द्वारा वर्ष 2000 में बनाए गए 20,264 लोगों के पिछले रिकॉर्ड से लगभग 1,13,000 अधिक है।

प्रेम रावत, जो न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलिंग लेखक हैं और ""स्वयं की आवाज (Hear Yourself)" जैसी चर्चित पुस्तक लिख चुके हैं, ने अपनी नई पुस्तक "श्वास : जीवन के प्रति जागरूक हों(Breath: Wake Up to Life)" के अंश पढ़े। यह पुस्तक अंग्रेजी में पैन मैकमिलन (Pan Macmillan) and  और हिंदी में हार्पर कॉलिन्स (HarperCollins) इंडिया द्वारा प्रकाशित की गई है। उन्होंनें अपनी पुस्तक से पढ़ कर सुनाया कि: 

“श्वास आपके अंदर आती है और आप जीवित रहते हैं।  जो शक्ति पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त  है, वही श्वास के रूप में आपके अंदर आती है और आपको जीवन देती है। जो अविनाशी है, अनंत है उसको महसूस करें। और जब आप उससे जुड़ जातें हैं, उस पल यह श्वास अनंत हो जाती है। अंदर की ओर मुड़िए, इस श्वास को महसूस कीजिए। यही सबसे अविश्वसनीय चमत्कार है। जिस आनंद को आप खोज रहे हैं, वह बाहर नहीं, बल्कि आपके अंदर मौजूद  है।”  

इस आयोजन में विपुल रिखी ने भी अपनी पुस्तक "Drunk on Love (ड्रंक ऑन लव) कबीर की रचनाओं की काव्यात्मक व्याख्या”, के अंश पढ़े। यह पुस्तक भी हार्पर कॉलिन्स इंडिया द्वारा प्रकाशित की गई है। उन्होंने कबीर के इस दोहे का अनुवाद सुनाया 

‘स्वांस स्वांस में नाम ले विरथा स्वांस मत खोये, ना जाने इस स्वांस का फिर आवन होये ना होये’ हर साँस में उसके नाम को याद करो, एक भी साँस व्यर्थ न जाने दो। कौन जानता है कि अगला पल आएगा या नहीं, अगली साँस मिलेगी या नहीं।

 

यह प्रेम रावत जी का तीसरा गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड है। इससे पहले, उन्होंने 2023 में दो रिकॉर्ड बनाए थे – ‘एक लेखक पुस्तक वाचन’ में सबसे बड़ी दर्शक संख्या, जिसमें 1,14,704 लोग शामिल हुए थे, और सबसे बड़े ‘व्याख्यान (लेक्चर)’ में भाग लेने वाली दर्शक संख्या, जिसमें 3,75,603 लोग उपस्थित थे। यह नया रिकॉर्ड उनकी प्रेरणादायक शांति और आशा के संदेश की विश्वविख्यात लोकप्रियता को दर्शाता है, जिससे भारत और दुनिया भर में लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं।

"इस ऐतिहासिक आयोजन की इतनी बड़ी और शानदार प्रतिक्रिया देखकर हम बेहद उत्साहित हैं।"  राज विद्या केंद्र और अंतरराष्ट्रीय संगठन "वर्ड्स ऑफ पीस ग्लोबल (Words of Peace Global)" के प्रवक्ता लोहित शर्मा ने कहा। "यह कार्यक्रम दर्शाता है कि प्रेम रावत का संदेश लोगों को शांति की ओर प्रेरित करने में कितना प्रभावशाली है, जो आज की दुनिया के लिए बहुत जरूरी है।"

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

आश्रम में रात को बुलाई महिला को लेकर गाँव वालों ने जब हंगामा मचाया, तब हुई कार्रवाई

 आश्रम में रात को बुलाई महिला को लेकर गाँव वालों ने जब हंगामा मचाया, तब हुई कार्रवाई 


छत्तीसगढ़  के बलरामपुर ज़िले  से आई खबर ने एक बार फिर एजुकेशन विभाग को कटघरे में खड़ा कर दिया है, बालक बालिका आश्रमों  की ज़िम्मेदारी सँभालने वालों की कारगुज़ारियों से एजुकेशन विभाग का शर्मसार होने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।

ताज़ा मामला  पहाड़ी कोरवा आश्रम  कोठली का है । और ग्रामीणों के हंगामे के बाद मामले की लीपापोती की भी खबर है।

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले के कलेक्टर ने आश्रम में रंगरेलियां मनाने वाले आश्रम के अधीक्षक को पद से हटा दिया है। साथ ही रात रुकने वाली शिक्षिका को निलंबित कर दिया है। दोनों पहाड़ी कोरवा बालक आश्रम में बिना किसी सूचना के रात रुके थे। जिसे ग्रामीणों ने रंगे हाथों पकड़ा था।मामला सामने आने के बाद आक्रोशित लोगों ने दोनों को घेर लिया था।

दरअसल, पहाड़ी कोरवा आश्रम कोठली के अधीक्षक रंजीत कुमार ने बिना किसी सूचना के प्राथमिक शाला की शिक्षिका को रात में हॉस्टल में ठहराया था। जिसे वहां के छात्रों ने  रंगे हाथों पकड़े था। मामले की जानकारी मिलने के बाद आक्रोशित ग्रामीणों ने दोनों को आश्रम के अंदर ही घेर लिया। फिर मामले की शिकायत बीईओ को दी गई। 

ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने 13 फ़रवरी की रात में फोन के माध्यम से सम्बंधित अफसरों को मामले की सूचना दी। जिसमें कहा गया कि, आश्रम अधीक्षक रंजीत कुमार आश्रम में महिला लेकर आए हैं। जो अधीक्षक रंजीत कुमार के साथ अवैधानिक रूप से शासकीय पहाड़ी कोरवा आश्रम में रुकी है। जिसे ग्रामीणों ने आश्रम के अन्दर घेर कर रखा है। जिसके बाद अधिकारी तुरंत पुलिस बल के साथ घटना स्थल पर पहुंचे। पूरे मामले की जांच में सेजल मिंज को सिविल सेवा आचरण नियम की जानकारी होने के बाद भी लापरवाही करना पाया गया।

मामले की जांच के बाद बलरामपुर के कलेक्टर ने बड़ी कार्यवाही करते हुए शिक्षिका को निलंबित कर दिया है। साथ ही हॉस्टल अधीक्षक को भी पद से हटा दिया गया है। बीईओ ने इसे अमर्यादित और अशोभनीय के साथ-साथ अत्यंत गंभीर और अनुशासनहीनता बताते हुए प्रतिवेदन दिया था। पदीय दायित्व के विपरीत गंभीर कदाचार करने के कारण छत्तीसगढ़ सिविल सेवा नियम के तहत कार्यवाही की गई है।

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

जो सही हो उसे ही चुनो तो जीवन में आनंद और शांति आएगी-प्रेम रावत

जो सही हो उसे ही चुनो तो जीवन में आनंद और शांति आएगी-प्रेम रावत 


 चेतना के आइंस्टीन के रूप में पूरी दुनिया में विख्यात प्रेम रावत को सुनने जब नया रायपुर में लोग टूट पड़े। श्री रावत ने कहा कि जीवन में शांति और आनंद आपके भीतर है बस आपको सही रास्ते का चुनाव करना है, लेकिन मनुष्य सही रास्ते की बजाय पसंदीदा रास्ता चुनता है। इसलिए शांति और आनंद कहीं खो जाता है, ऐसे में सही रास्ते का चुनाव ही व्यक्ति के जीवन को सार्थक बनाता है, रास्ता हमे ही चुनना है, और यह निर्णय कोई और नहीं आपको लेना है। इसलिए जो कुछ भी करो सोच समझ कर करो।

 

प्रेम रावत जी ने अपने सम्बोधन की शुरुआत में कहा कि रायपुर का यह कार्यक्रम सुनने और समझने का एक बहुत सुंदर अवसर है। उन्होंने समझाया कि संसार का हर व्यक्ति - चाहे वह कोई भी हो, कहीं भी रहता हो, वह तीन कानूनों से बंधा हुआ है - एक दिन हम इस संसार में आये थे, अभी हम जीवित हैं और एक दिन हमें इस संसार से जाना होगा।

 

उन्होंने आगे समझाया कि एक गंगा प्रयागराज में स्थित है, जहाँ पहुँचने के लिए सबको वहाँ तक जाना पड़ता है। लेकिन एक गंगा ऐसी भी है, जो हमारे अंदर की गंगा है। इस अंदर की गंगा में डुबकी लगाने के लिए, हमें कहीं जाने की जरूरत नहीं है, सिर्फ अपने अंदर जाने की जरूरत है।

 

प्रेम रावत जी ने समझाया कि हमारे सामने दो रास्ते होते हैं - पहला श्रेय - जो सही है उसे चुनना। और दूसरा प्रेय - जो अच्छा लगे उसे चुनना। उन्होंने समझाया कि मनुष्य सही क्या है उसे नहीं चुनता। वह उस रास्ते को चुनता है जो उसे पसंद आता है, फिर चाहे वह सही न भी हो और इस लिए संसार की यह हालत हो गयी है।

 

उन्होंने मनुष्य जीवन में स्वाँस के महत्व को समझाते हुए कहा कि "यह जो स्वाँस आ रहा है, जा रहा है, यह भगवान की कृपा है। और जब तक यह आ रहा है, जा रहा है तुम जीवित हो। तुम इस बात का निर्णय ले सकते हो कि तुम्हारी जिंदगी में क्या होना चाहिए। जब तक तुम जीवित हो अपने जीवन में यह निर्णय ले सकते हो कि मैं उस आनंद का अनुभव करना चाहता हूँ, जो मेरे अंदर है। अगर तुमने यह निर्णय ले लिया कि तुम उस आनंद का अनुभव करना चाहते हो, तब मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।"

 

उन्होंने अपने सम्बोधन के अंत में कहा कि "इस जीवन में जो भी होता है, वह तुम्हारी मर्ज़ी से होता है। इसलिए जो कुछ भी करो, सोच समझ कर करो। तुम अपना जीवन आनंद से भर सकते हो। सबके अंदर वह शांति और आनंद है जिसका सब अनुभव कर सकते हैं।"

प्रेम रावत

एक अंतरराष्ट्रीय वक्ता,

न्यूयॉर्क टाइम्स के बेस्टसेलिंग लेखक,

एजुकेटर और ग्लोबल पीस एंबेसडर

 

1970 के दशक में एक बाल प्रतिभा और युवा आइकन के रूप में शुरुआत करने वाले प्रेम रावत ने लोगों को स्पष्टता, प्रेरणा और जीवन के प्रति गहरी समझ दी है। 

एक विश्व शांतिदूत की भूमिका के रूप में उन्होंने करोड़ों लोगों को प्रभावित किया है। आज उनका  संदेश 110 से अधिक देशों में सुना जाता है, जहाँ वे हर व्यक्ति को आशा और शांति का संदेश देकर आंतरिक सुख और शांति का व्यावहारिक मार्ग दिखा रहे हैं।

उनके कार्यों को दुनिया भर में सराहना मिली है, जिसमें (1) एक लेखक के पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में सबसे अधिक श्रोताओं की उपस्थिति दर्ज़ करने के लिए (114,704 लोग "स्वयं की आवाज" के पढ़ने में) और (2) एक सम्बोधन में सबसे बड़ी दर्शको की संख्या (375,603 लोग) के लिए दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड शामिल हैं। ये दोनों रिकॉर्ड 2023 में स्थापित किए गए। उन्हें 20 से अधिक प्रमुख शहरों की सम्मान चाबियां और कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें 2012 का प्रतिष्ठित ‘एशिया पैसिफिक ब्रांड लॉरिएट लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’ शामिल है। इससे पहले यह अवॉर्ड  नोबेल पीस प्राइज विजेता नेल्सन मंडेला और स्टीव जॉब्स को प्रदान किया गया है।

एक लेखक होने के अलावा, प्रेम रावत "द प्रेम रावत फाउंडेशन" (TPRF) के संस्थापक भी हैं। यह संस्था भोजन, पानी और शांति जैसी बुनियादी मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने का कार्य करती है। इसकी "जन भोजन" पहल भारत, नेपाल, घाना और दक्षिण अफ्रीका में प्रतिदिन जरूरतमंद बच्चों और बीमार वयस्कों को पौष्टिक भोजन प्रदान करती है। उनके व्याख्यानों पर आधारित "पीस एजुकेशन प्रोग्राम" 1,400 से अधिक शैक्षिक एवं अन्य संस्थानों में दिखाया जाता है, जिससे 5 लाख से अधिक लोगों को प्रभावित किया है। यह कार्यक्रम 1,000 से अधिक जेलों में भी चल रहा है, जिसके प्रभाव से कैदियों में दोबारा अपराध करने की संभावना कम पायी गई है।

वर्ष 2023 में  प्रेम रावत ने टीवी, प्रिंट और रेडियो सहित विभिन्न मीडिया माध्यमों से 91.6 करोड़ लोगों तक अपना संदेश पहुँचाया। उनका पॉडकास्ट चैनल " लाइफ एसेंशियल्स ( Life’s Essentials)" 110 से अधिक देशों में सुना जाता है। उनकी किताबें "स्वयं की आवाज़" और " शांति संभव है (Peace is Possible)" दुनिया भर में सराही गई हैं। प्रेम रावत केवल एक वक्ता या लेखक ही नहीं, बल्कि एक आविष्कारक, संगीतकार, कलाकार, फोटोग्राफर और कुशल जेट व हेलीकॉप्टर पायलट भी हैं, जिनके पास 15,000 घंटे के उड़ान समय का अनुभव है। वे विवाहित हैं और उनके चार बच्चे और चार पोते-पोतियाँ हैं।

प्रेम रावत जी के कार्यों को सरकारों, गैर-लाभकारी संगठनों, व्यापारिक संस्थानों और दुनिया भर के नागरिक संगठनों द्वारा स्वीकार किया गया है। उन्होंने ब्रिटेन से लेकर न्यूजीलैंड तक की संसदों में और हार्वर्ड व ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में व्याख्यान दिए हैं। 2011 में, प्रेम रावत यूरोपीय संघ (EU) के एक विशेष कार्यक्रम के मुख्य वक्ता थे, जहाँ उन्होंने "शांति की प्रतिज्ञा (Pledge to Peace )“ पर हस्ताक्षर किये और उन्हें इसका एंबेसडर घोषित किया गया ।




शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

18 साल की नौकरी में बीस बार सज़ा

 18 साल की नौकरी में बीस बार सज़ा  



सरकारी कर्मचारियों को लेकर आम धारणा अच्छी नहीं है तो इसकी वजह कई कर्मचारियों की करतूत है, और ऐसे में जो मामला सामने आया है वह हैरान कर देने वाला है 

18 साल की नौकरी में लगभग 20 बार किसी को दंडित किया जाए यह आम बात नहीं है। 20 बार अलग-अलग दंड के बाद अब सीधे बर्खास्‍तगी की कार्रवाई कर दी गई है।

यह मामला छत्‍तीसगढ़ सक्‍ती जिला का है। जिस सरकारी कर्मचारी का यह मामला है उसका नाम है विजय सिंह सिदार। विजय सिंह सक्‍ती जिला पुलिस बल में आरक्षक है। बर्खास्‍तगी से पहले वह सक्‍ती पुलिस लाइन में पदस्‍थ था। लगभग 20 बार अलग-अलग दंड मिलने के बाद भी जब वह नहीं सुधरा तो अब एसपी ने बर्खास्‍तगती का ओश जारी कर दिया है।

विजय सिंह की भर्ती कबीरधाम जिला पुलिस बल में 2007  में हुई थी। कुछ साल की नौकरी के बाद उसका ट्रांसफर जांजगीर-चांपा जिला में हो गया। जब जांजगीर-चांपा जिला का विभाजन कर सक्‍ती जिला बना तो वह सक्‍ती जिला में आ गया। तब से वह सक्‍ती जिला में ही पदस्‍थ है।

दरअसल विजय सिंह पर आरोप है कि वह अपनी नौकरी को लेकर गंभीर नहीं था। बार- बार बिना बताए ड्यूटी से गायब हो जाता था। इसी अनुशासनहीनता के कारण उसे बार-बार दंड मिला इसके बावजूद वह नहीं सुधरा। इस बार वह बिना छुट्टी स्‍वीकृत कराए 28 मार्च 2023 को गायब हो गया। 441 दिन बाद 10 जून 2024  को विजय सिंह फिर लाइन में आमद दिया। इस बीच उसकी शिकायत एसपी तक पहुंच चुकी थी।

एसपी अंकिता शर्मा ने विजय सिंह के खिलाफ विभागीय जांच बैठा दिया। विभागीय जांच में विजय सिंह के खिलाफ अनुशासनहीनता और कर्तव्‍य में घोर लापरवाही की बात साबित हुई। इसके आधार पर एसपी ने विजय सिंह को सेवा से बाहर करने का आदेश जारी कर दिया है।


रविवार, 26 जनवरी 2025

भारतीय संविधान में महिलाओं के 10 कानूनी अधिकार ( Women's Rights)


 भारतीय संविधान में महिलाओं के 10 कानूनी अधिकार ( Women's Rights)


सोशल कंडीशनिंग के कारण हमारे समाज में रहने वाले लोगों का महिलाओं के प्रति पक्षपाती नजरिया रहता है। लिंगवाद (Sexism) और पितृसत्ता (Patriarchy) अक्सर लोगों के फैसले को प्रभावित करती है।


भारत में हर मिनट महिलाओं के खिलाफ अपराध होते हैं। महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, चाहे वह अपने घरों में हों, सार्वजनिक स्थानों पर हों या कार्यस्थल पर हों। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या को देखते हुए, यह उचित है कि महिलाएं उन कानूनों के बारे में जागरूक हों जो उनकी सुरक्षा के लिए मौजूद हैं।


1. कार्यस्थल पर उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार - 

RIGHT AGAINST WORKPLACE HARASSMENT: ) अधिनियम, 2013:- 

यह अधिनियम महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम से पूर्व कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा बनाम राजस्थान राज्य[8] में दिशा निर्देश दिए थे। माननीय न्यायालय ने यौन उत्पीड़न को नए रूप में परिभाषित किया है जिसमे शारीरिक संपर्क, लैंगिक अनुकूलता की मांग या अनुरोध, लैंगिक अत्युक्त टिप्पणियाँ करना, अश्लील साहित्य दिखाना या कोई लैंगिक प्रकृति का कोई अन्य अवांछनीय शारीरिक मौखिक या अमौखिक आचरण करना शामिल किया गया।


2. महिलाओं का अश्लील चित्रण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986:-


इस अधिनियम के तहत विभिन्न ऐसे प्रावधान है, जिनमे महिलाओ के अश्लील चित्रण को व्यापक अर्थ देने के साथ इस अपराध में शामिल व्यक्तियों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य विज्ञापन, प्रकाशन, लेखन एवं पेंटिंग या किसी अन्य रूप में महिलाओं के अश्लील चित्रण या महिलाओं के वस्तुकरण को रोकना है।


3.  घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार –


भारत में महिलाओं द्वारा उत्पीड़न में सबसे अधिक मामले घरेलू हिंसा के रहते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा महिलाओं के खिलाफ दर्ज किए गए 4.05 लाख मामलों में से 1.26 लाख सिर्फ घरेलू हिंसा के मामले थे। जीवन के सभी क्षेत्रों की महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है। महिलाओं के घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005. Protection of Women from Domestic Violence Act 2005 में बनाया गया। माता-पिता, भाइयों, पति या लिव-इन पार्टनर द्वारा पीड़ित की गयीं महिलाओं को इस अधिनियम के तहत संरक्षित किया जाता है।


4. गुमनामी का अधिकार-


उन महिलाओं की पहचान की रक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण है जो जीवित हैं या उत्पीड़न या यौन हमले की शिकार हैं, यह अधिकार उन्हें एक विचाराधीन मामले में जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष गुमनाम रूप से अपना बयान दर्ज करने की भी अनुमति देता है। नाम न छापने का अधिकार भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा- 228 (ए) के तहत आता है।


5. मैटरनिटी लाभ का अधिकार-


गर्भवती महिलाओं के लिए मैटरनिटी लाभों को किसी एक विशेषाधिकार के रूप में नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि वे मैटरनिटी लाभ अधिनियम, 1961 के तहत आते हैं। अधिनियम प्रत्येक वर्किंग महिला को अपने और अपने बच्चे की देखभाल के लिए काम से फुल पेड लीव का अधिकार देता है। कोई भी संगठन जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी हैं, इस अधिनियम का पालन करने के लिए बाध्य है।


6. गिरफ्तारी से सुरक्षा का अधिकार -


भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा-46 के अनुसार, किसी भी महिला को सुबह 6 बजे से पहले और शाम 6 बजे के बाद गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है, भले ही पुलिस के पास गिरफ्तारी वारंट हो। इतना ही नहीं, एक महिला को पूछताछ के लिए थाने जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 160 के तहत महिलाएं यह मांग कर सकती हैं कि किसी कांस्टेबल, परिवार के सदस्यों या दोस्तों की मौजूदगी में उनके पर पूछताछ की जाए।


7. समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976-


यह कानून सैलरी या रेम्यूनरेशन के मामले में होने वाले भेदभाव को रोकता है। यह पुरुष और महिला श्रमिकों को समान मुआवजे मिलने पर आवाज़ बुलंद करता है। महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए इन कानूनों को जानना आवश्यक है। अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने पर ही आप अपने साथ घर, कार्यस्थल या समाज में होने वाले किसी भी अन्याय के खिलाफ लड़ सकते हैं।


8. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006-


इंटरनेशनल रिसर्च सेंटर फॉर वीमेन के अनुसार, लगभग 47 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले कर दी जाती है। वर्तमान में, भारत बाल विवाह के मामले में दुनिया में 13 वें स्थान पर है। चूंकि बाल विवाह सदियों से भारतीय संस्कृति और परंपरा में डूबा हुआ है, इसलिए इसे समाप्त करना कठिन रहा है। बाल विवाह निषेध अधिनियम को 2007 में प्रभावी बनाया गया था। इस कानून के अनुसार दुल्हन की उम्र 18 वर्ष से कम हो या लड़के की उम्र 21 वर्ष से कम हो। कम उम्र की लड़कियों की शादी करने की कोशिश करने वाले माता-पिता इस कानून के तहत कार्रवाई के अधीन हैं।


9. दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम 1961–


इस अधिनियम के अनुसार विवाह के समय वर या वधू और उनके परिवार को दहेज लेना या देना दंडनीय है। दूल्हे और उसके परिवार द्वारा अक्सर दुल्हन और उसके परिवार से दहेज मांगा जाता है। इस प्रणाली ने मजबूत जड़ें जमा ली हैं क्योंकि शादी के बाद महिलाएं अपने जीवनसाथी और ससुराल वालों के साथ चली जाती हैं। जब शादी के बाद भी दहेज की मांग लड़की के परिवारों द्वारा पूरी नहीं की जाती है, तो कई महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है, पीटा जाता है और यहां तक कि जला दिया जाता है।


10. फ्री लीगल एड (मुफ़्त क़ानूनी सहायता) -


भारत में महिलाओं को फ्री लीगल एड का अधिकार है और इसके लिए किसी महिला की आमदनी कितनी है या फिर मामला कितना बड़ा या छोटा है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है। महिलाएं किसी भी तरह के मामले के लिए फ्री लीगल एड की मांग कर सकती हैं। हमारे देश में महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, मानव तस्करी से पीड़ित व्यक्ति, स्वतंत्रता सेनानी, प्राकृतिक आपदा से पीड़ित व्यक्ति और 18 साल से कम उम्र के बच्चों को भी फ्री लीगल एड का अधिकार है। सामान्य श्रेणी के लोगों के लिए इन्कम का दायरा रखा गया है। हाईकोर्ट के मामलों में जहां उनकी सालाना इन्कम 30 हज़ार रुपए से कम होनी चाहिए, वहीं सुप्रीम कोर्ट के मामलों में वह 50 हज़ार से कम हो।


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महिला हित में समय समय पर हुए कुछ अन्य प्रावधान -


•  भारतीय सेना में समान अवसर:- 

सचिव, रक्षा मंत्रालय बनाम बबीता पुनिया[9] ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा, महिलाओं को भारतीय सेना में समान अवसर प्रधान करे और शॉर्ट सर्विस कमीशन में महिलाओं को स्थायी कमीशन दें और उन्हें युद्ध के अलावा अन्य सभी सेवाओं में कमांड पोस्टिंग दें। माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय में माही यादव बनाम भारत संघ[10] जनहित याचिका में अधिवक्ता माही यादव ने देश के सभी सैनिक स्कूलों एवं मिलिट्री स्कूलों में छात्राएं को उनके लिंग के कारण उक्त स्कूलों में प्रवेश वर्जित होने का मुद्दा न्यायालय के समक्ष उठाया। जिसके उपरांत माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इसी विषय में केंद्र सरकार को निर्देश दिए कि शिक्षा का अधिकार छात्राएं को मौलिक अधिकार हैं। इन्ही के फलस्वरूप आज सैनिक स्कूलों में लड़को के साथ लड़कियों को भी प्रवेश दिया जाने लगा हैं।


•  विवाहित बेटी का अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी का अधिकार:- 

ADVERTISEMENT ADVERTISEMENT माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार बनामN. Apporva Shree[11] में फैसला सुनाया कि एक विवाहित बेटी अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी की हकदार है। न्यायालय  ने कहा कि यह धारणा कि एक बेटी अब शादी के बाद अपने पिता के घर का हिस्सा नहीं है और अपने पति के घर का एक विशेष हिस्सा बन जाती है, पुरानी मानसिकता को दर्शाता है। माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय ने शेफाली सांखला बनाम राजस्थान राज्य[12] में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के मद्देनज़र विवाहिता बेटी को नियुक्ति प्रदान की हैं।


•  मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 -

मातृत्व लाभ अधिनियम (1961) में संशोधन पारित किया गया है। इस अधिनियम ने महिला कर्मचारियों के लिए (जिनके दो से कम जीवित बच्चे हो) उपलब्ध सवैतनिक मातृत्व अवकाश की अवधि को मौजूदा 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया है। इसके अंतर्गत महिलाओं को घर से काम करने की सुविधा भी उपलब्ध हैं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका (हमसानंदिनी नंदूरी बनाम भारत संघ) पर सुनवाई की, जिसमें कहा गया है कि एक महिला जो क़ानूनी रूप से तीन महीने से कम उम्र के बच्चे को गोद लेती है 12 सप्ताह की अवधि के लिए मातृत्व अवकाश के लिए पात्र होगी। महिलाओं के मातृत्व के समय के दौरान उनके रोजगार की रक्षा करता है और उन्हें मातृत्व लाभ और कुछ अन्य लाभों का अधिकार देता है। 


 •  लिंग चयन का निषेध अधिनियम (1994):-


 गर्भाधान से पहले या बाद में लिंग चयन को प्रतिबंधित करता है और लिंग निर्धारण के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीकों के दुरुपयोग को रोकता है जिससे कन्या भ्रूण हत्या होती है। 


•  सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021:- 

जो वाणिज्यिक सरोगेसी को प्रतिबंधित करता है लेकिन परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है। यह अधिनियम ‘प्रगतिशील’ है और इसका उद्देश्य सरोगेट मदर के शोषण को रोकना है। 


•  मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971:- 

भारत में महिलाओं को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी एक्ट, 1971 कुछ शर्तों पर मेडिकल डॉक्टरों (विशिष्ट स्पेशलाइजेशन वाले) द्वारा अबॉर्शन कराने की अनुमति देता है। अबॉर्शन अधिकारों को तीन कैटेगरी में बांटा गया है। जहां प्रेग्नेंसी के 0 हफ्ते से 20 हफ्ते के बीच अबॉर्शन कराने के लिए कुछ कंडीशन दी गई हैं। अगर कोई महिला मां बनने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं है, या फिर कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड या डिवाइस फेल हो जाने के कारण न चहते हुए भी महिला प्रेग्नेंट हो गई है, तो वह अपना अबॉर्शन करा सकती है।


इसके साथ ही अगर सोनोग्राफी की रिपोर्ट में यह बात सामने आए कि भ्रूण में किसी तरह की शारीरिक या मानसिक विकलांगता हो सकती है, तो भी महिला को एबॉर्शन कराने का हक़ है।


अब तक हमारे देश में विवाहित महिलाओं को ही एबॉर्शन का हक़ था, पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कुछ मामलों में अविवाहित लड़कियों को भी यह अधिकार मिल गया है।


•  नए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) अधिनियम 2021-

इस को व्यापक देखभाल के लिये सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु चिकित्सीय, उपचारात्मक, मानवीय या सामाजिक आधार पर सुरक्षित और वैध गर्भपात सेवाओं का विस्तार करने हेतु लाया गया है। एयर इंडिया बनाम नरगेश मीर्ज़ा[13] में, एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के लिए काम करने वाली एयर होस्टेस ने रोजगार नियमों की संवैधानिकता को चुनौती दी है जो पहली गर्भावस्था पर रोजगार समाप्ति के लिए प्रदान करते हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इस नियामक आवश्यकता को मनमाना और अनुचित बताया, और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन माना । इसके बजाय, न्यायालय ने एक संशोधन का समर्थन किया कि वास्तव में उनकी तीसरी गर्भावस्था पर दो जीवित बच्चों के साथ एयरहोस्टेस की सेवानिवृत्ति की आवश्यकता होगी और कहा कि ऐसा संशोधन महिलाओं के स्वास्थ्य और राष्ट्रीय परिवार नियोजन योजना के हित में होगा।


•  महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए मुआवजा:- 

बलात्कार मानव जाति के खिलाफ सबसे जघन्य अपराधों में से एक है, क्योंकि किसी भी अन्य अपराध में अपने आप में सभी लागतें शामिल नहीं होती हैं जैसे लेनदेन लागत + सामाजिक लागत + मनोवैज्ञानिक लागत। बोधिसत्व गौतम बनाम सुभ्रा चक्रवर्ती में, सर्वोच्च न्यायालय ने इसे दोहराया। “बलात्कार केवल एक महिला (पीड़ित) के व्यक्ति के खिलाफ अपराध नहीं है, यह पूरे समाज के खिलाफ अपराध है। यह एक महिला के पूरे मनोविज्ञान को नष्ट कर देता है और उसे गहरे भावनात्मक संकट में डाल देता है।  इसलिए, बलात्कार सबसे घृणित अपराध है। यह बुनियादी मानवाधिकारों के खिलाफ अपराध है और इसका उल्लंघन भी है है, अर्थात् जीवन का अधिकार, जो अनुच्छेद 21 में निहित है।” महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से संबंधित कानून में अपर्याप्तता को दूर करने के लिए आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 अधिनियमित किया गया था, जिसके कारण निर्भया फंड (Nirbhya Fund) का निर्माण हुआ। इसके बाद बनी एक समिति ने महिला पीड़ितों/यौन उत्पीड़न/अन्य अपराधों की उत्तरजीवियों के लिए मुआवजा योजना – 2018 को अंतिम रूप दिया। 

योजना के अनुसार, सामूहिक बलात्कार की पीड़िता को न्यूनतम 5 लाख रुपये और अधिकतम 10 लाख रुपये तक का मुआवजा मिलेगा। इसी तरह, बलात्कार और अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न के मामले में पीड़िता को न्यूनतम 4 लाख रुपये और अधिकतम 7 लाख रुपये मिलेंगे। एसिड अटैक के पीड़ितों को चेहरे की विकृति के मामले में न्यूनतम 7 लाख रुपये का मुआवजा मिलेगा, जबकि ऊपरी सीमा 8 लाख रुपये होगी। अदालत ने तब उक्त योजना को पूरे भारत में लागू होने के लिए स्वीकार कर लिया, जो कि देश का कानून है।


निष्कर्ष – भारत में महिलाएं अब हर एक क्षेत्र में , चाहे वो शिक्षा, रक्षा, खेल, राजनीति, मीडिया, कला एवं संस्कृति, और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में भाग लेती हैं। भारतीय महिलाओं को पुरुष प्रधान समाज, वर्ग और धर्म के उत्पीड़न के तहत विकसित होने के लिए बेहद कठिन समय मिला है, लेकिन अब चुप्पी तोड़ने का समय है। हमारी मानसिकता और पितृसत्तात्मक विचारों को बदलने की जरूरत है, जिन्होंने सदियों से भारतीय मानसिकता को अपनी चपेट में लिया है ताकि महिलाओं के लिए एक सुरक्षित समाज मिल सके। उन्हें भी अपनी प्रतिभा और विकास का समुचित अवसर मिल सके।


(Copied गूगल पर तमाम स्रोतों से)

thankings-roopam gangwar

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बुधवार, 6 नवंबर 2024

टिकिट मांगने वाले भाजपा के ब्राम्हण नेताओं की मुश्किलें बढ़ी



टिकिट मांगने वाले भाजपा के ब्राम्हण नेताओं की मुश्किलें बढ़ी 


दक्षिण विधानसभा चुनाव में ब्राम्हण प्रत्याशी की मांग करने वाले भारतीय जनता पार्टी के ब्राम्हण नेताओं के सामने अब नई तरह की दिक्कत आ गई है। कहा जा रहा है कि कई नेता तो मुंह छिपाते घुम रहे है तो कई नेताओं ने चुप्पी ओढ़ ली है। 

दरअसल दक्षिण विधानसभा उपचुनाव में ब्राम्हण समाज ने ब्राम्हण प्रत्याशी उतारने दोनों ही प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा पर दबाव बनाया था। समाज के इन नेताकों के साथ भाजपा और कांग्रेस से जुड़े नेताओं ने भी न केवल शिरकत की थी, बल्कि मीडिया के ज़रिये भी अपनी मांगों को जोर-शोर से हवा दी थी।

भाजपा ने ब्राम्हण समाज की मांग की परवाह नहीं करते हुए सुनील सोनी को प्रत्याशी घोषित कर दिया, तब समाज ने कांग्रेस पर दबाव बनाया तो कांग्रेस ने ब्राम्हण समाज की मांग के अनुरूप आकाश शर्मा को टिकिट दे दिया।

ऐसे में भाजपा से जुड़े ब्राह्मण  नेता के सामने मुश्किल यह है कि वे सेठ की तिजोरी के आगे न तो कुछ बोल पा रहे है और न ही समाज में जाकर सुनील सोनी का प्रचार ही कर पा रहे हैं।

इसकी बड़ी वजह आने  वाले दिनों में निगम चुनाव है। यदि वे अभी ब्राह्मण प्रत्याशी के खिलाफ वोट माँगेंगे तो फिर निगम चुनाव में वे किस मुंह से ब्राह्मण वोट हासिल कर पायेंगे। 

कहा तो यहां तक जा रहा है कि समाज के कई पदाधिकारियों ने भाजपा के ब्राम्हण नेताओं को दो टूक कह दिया है कि वे ब्राम्हण प्रत्याशी की खिलाफत न करे।

ऐसे में ब्राम्हण वोटरों को साधने गृह मंत्री विजय शर्मा को पार्टी ने लगा दिया। लेकिन कहा जाता है कि ब्राम्हण समाज के कुछ पदाधिकारियों ने उन्हें भी दो टूक कह दिया कि वे दक्षिण में प्रचार करने की बजाय प्रदेश की कानून व्यवस्थ पर ध्यान दें तो उनके लिए बेहतर होगा।

रविवार, 20 अक्टूबर 2024

जब एक युवा भारतीय वैज्ञानिक ने बताया सितारों का भविष्य

 जब एक युवा भारतीय वैज्ञानिक ने बताया सितारों का भविष्य



11 जनवरी 1935. शाम के 6.15 मिनट होने वाले हैं. लन्दन स्थित बर्लिंगटन हाउस में  रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी का सम्मेलन पिछले डेढ़ घंटे से चल रहा है. पूरा हॉल गणमान्य वैज्ञानिकों, खगोलवेत्ताओं से भरा हुआ है. पहली पंक्ति में आर्थर एडिंग्टन, जेम्स जीन्स, मिलने, फाउलर इत्यादि जैसे विश्व विख्यात खगोलविद और वैज्ञानिक बैठे हैं. उसके पीछे वाली पंक्ति में युवा उभरते हुए वैज्ञानिक, खगोलविद, गणितज्ञ इत्यादि बैठे हैं. उसे पंक्ति में एक 24 वर्षीय युवा भारतीय वैज्ञानिक भी बैठे हुए हैं जिनके लिए आज का यह सम्मेलन बेहद महत्वपूर्ण है. इनका नाम है सुब्रमण्यम चंद्रशेखर, जिनके चाचा सी,वी. रमण को 1930 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला था. 


पिछले 5 सालों से वे अपने जिस शोध कार्य में लगे हुए हैं आज उसकी परीक्षा होने वाली है. आज वे अपना शोध पत्र अब से कुछ देर बाद पढने वाले हैं. अगर उनका शोध पत्र खगोल विज्ञान के इस मक्का में स्वीकार कर लिया जाता है तो ये उनके वैज्ञानिक करियर के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी. बचपन से जो उनका सपना था कि उनका नाम भी उनके हीरो न्यूटन,आइंस्टीन और रामानुजम की तरह विज्ञान और गणित की दुनिया एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक और गणितज्ञ की तरह लिया जाए, उसे प्राप्त करने में आज का उनका शोध पत्र एक मील का पत्थर साबित होगा. हालाँकि उन्हें घबराहट नहीं है क्योंकि उन्हें अपने गणितीय गणना पर पूरा विश्वास है और वे पहले भी इस हॉल में कई पत्र पढ़ चुके हैं, फिर भी अपने अब तक के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पल को निकट आता देख उन्हें थोड़ी बेचैनी हो जाती है. वे थोड़ा कसमसा के अपने टाई के नॉट को ढीला करने का प्रयास करने लगते हैं.


शायद इसका एक कारण जनवरी की उस सर्द शाम में भी हॉल के अन्दर दरवाजे और खिड़कियों के बंद रहने और हॉल खचाखच भरे रहने के चलते उत्पन्न उष्णता भी हो सकती है. हॉल के अन्दर लग रहा कि ये जुलाई की शाम हो, बहुत कुछ उनके गृहनगर मद्रास के मौसम के जैसा. तभी ठीक 6.15 बजे सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे स्ट्रैटन उस भारतीय युवा का नाम पुकारते हैं. वे पोडियम पर आकर एक बार हॉल में बैठे लोगों को देखते हैं. खगोल विज्ञान के सभी गणमान्य वैज्ञानिकों को देखकर उन्हें आज के दिन का महत्व का अहसास प्रखरता से होता है. शायद आइंस्टीन ने भी जब पेटेंट क्लर्क की नौकरी करते हुए ''सापेक्षता के विशेष सिद्धांत'' की खोज की होगी तो वे भी इसी मनस्थिति से गुजरे होंगें कि वैज्ञानिक समुदाय उसे किस रूप में लेगा. वे धीरे-धीरे पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने दक्षिण भारतीय एक्सेंट वाली अंग्रेजी में अपना शोध पत्र पढने लगते हैं जो कि मृत सितारों के भविष्य को लेकर है.


दरअसल जबसे सितारों के निर्माण प्रक्रिया के बारे में वैज्ञानिकों को पता चला कि सितारों के कोर में नाभिकीय प्रक्रिया के चलते तारे अस्तित्व में आते हैं और जब तक उनके कोर में नाभिकीय प्रक्रिया चलती रहती है तब तक तारों का आकार स्थायित्व लिए होता है. पर किसी तारे में मौजूद हाइड्रोजन समाप्त हो जाता है तो उसके कोर में चल रही नाभकीय प्रक्रिया रुक जाती है और कोर सिकुड़ने लगता है और इसके साथ ही मृत तारे का आकार सिकुड़ कर लगभग पृथ्वी के आकार का हो जाता है. इसे ''सफ़ेद बौना तारा''( white drwarf) कहा जाता है. यानी हर तारा अपने ईंधन की समाप्ति के बाद ''सफ़ेद बौना तारा'' में बदल जाता है, ऐसा खगोविदों का मानना था. पर आज चंद्रा, लोग उन्हें इसी नाम से पुकारते हैं, इसी मान्यता प्राप्त सिद्धांत को चुनौती देने वाले हैं. ठीक आइंस्टीन की तरह जब उन्होंने प्रचलित मान्यताओं के विपरीत अपने ''सापेक्षता के विशेष सिद्धांत'' का प्रतिपादन किया था.


वे कह रहे हैं कि किसी तारे का सफ़ेद बौने तारे में बदलने की प्रक्रिया उसके मौजूदा द्रव्यमान पर निर्भर करती है और सफ़ेद बौने तारे में बदलने के लिए तारे के द्रव्यमान की एक उपरी सीमा ( upper limit) होती है. उस सीमा के ऊपर द्रव्यमान वाले तारे ईंधन की समाप्ति के बाद सिकुड़ते हुए सफ़ेद बौना बनने के बजाये और भी सिकुड़ता चला जाता है, शायद सिंगुलारिटी की तरफ.सिर्फ सूर्य के द्रव्यमान या उससे 1.4 गुना अधिक द्रव्यमान वाले तारे ही सफ़ेद बौने में परिवर्तित होते हैं. उसके अधिक द्रव्यमान वाले तारे की सिकुड़ने की कोई सीमा नहीं होती है. वे ये कहते हुए अपना शोध पत्र पढ़ना समाप्त करते हैं कि - '' कम द्रव्यमान वाले तारे का जीवन अधिक द्रव्यमान वाले तारे से भिन्न होता है..... कम द्रव्यमान वाले तारे मृत होने बाद सफ़ेद बौना में बदल जाते है जबकि अधिक द्रव्यमान वाले तारे मृत होने के सफ़ेद बौना तारा में न बदलकर और भी सिकुड़ते चले जाते हैं जिसके बारे में अनुमान ही लगाया जा सकता है कि वे कहाँ रुकते हैं...''. इसके बाद वे अपने कागजात समेटकर एक बार फिर हॉल में मौजूद लोगों को आशाभरी नज़रों से देखते हैं.


उनकी निगाहें खासकर एडिंग्टन की ओर लगी है क्योंकि खगोलविज्ञान की दुनिया में, खासकर आइंस्टीन के ''सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत'' की उनके द्वारा प्रयोगात्मक पुष्टि के बाद, सबसे बड़े नाम बन गए हैं. उनके इस शोधपत्र के लिखने दौरान गणितीय गणना करने में आ रही कठिनाई को दूर करने के लिए एडिंग्टन ने ही उन्हें कैलकुलेटर की व्यवस्था करवाई थी. इसके अलावा बीते वर्षों के दौरान उन्होंने एक मित्र की तरह अनेकों बार उन्हें इस शोधपत्र लिखने के लिए प्रोत्साहित भी किया था. देखा जाए तो आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत के आधार पर 1926 में एडिंग्टन ने खुद एक बार मजाक में कहा था कि जब किसी तारे में गैस समाप्त हो जाएगी तो गैस के चलते मौजूद सेंट्रिपेटल फ़ोर्स की समाप्ति के बाद वह तारा गुरुतावाकर्षण बल के चलते सिकुड़ते हुए विलुप्त हो जायेगा. हालाँकि बाद में उनके एक सहयोगी फाउलर ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि तारे के कोर में मौजूद इलेक्ट्रॉन डिजेनेरेसी दबाव उस तारे को और सिकुड़ने से रोककर ''सफ़ेद बौना'' की स्थिति में ही रोक देगा. चंद्रा ने फाउलर के इसी सिद्धांत की खामी को आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत के आधार पर दूर कर अपना ये शोध पत्र तैयार किया है.


चंद्रा के पोडियम पर से उतरने के बाद एडिंग्टन, जिन्हें वैसे भी उनके बाद अपना पत्र पढ़ना था, अपने चिर परिचित ड्रामाई अंदाज में पोडियम पर चढ़ते हैं और ड्रामाई अंदाज में कहते हैं कि चंद्रशेखर के शोध पत्र की बुनियाद जो कि आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत पर आधारित है, एकदम से बेतुका है. उनके द्वारा प्रतिपादित ऊपरी सीमा का कोई आधार नहीं है. किसी भी तारे के सफ़ेद बौना तारे बनने के लिए उसमें मौजूद द्रव्यमान की कोई उपरी सीमा नहीं होती है. पूरे हॉल में सन्नाटा छा जाता है. चंद्रा स्तब्ध हो जाते हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि एडिंग्टन ऐसा क्यों कह रहे हैं. इसके बाद एडिंग्टन अपना पत्र '' "Relativistic Degeneracy" पढ़ने लगते हैं जो कि उन्होंने खास तौर पर चंद्रा के सिद्धांत को ध्वस्त करने के लिए ही तैयार किया था.उस पत्र में एक तरह से उन्होंने फाउलर के शोधपत्र को ही सही ठहराते हैं जिसमें तारों के सफ़ेद बौने में बदलने के लिए द्रव्यमान कि कोई उपरी सीमा नहीं है.


चंद्रा एडिंग्टन की इस स्थापना के विरोध करने के लिए अपने सीट पर खड़े हो जाते हैं, पर सभा के अध्यक्ष स्ट्रैटन ये कहकर बोलने से रोक देते हैं कि दोनों ने अपना-अपना शोध पत्र पढ़ लिया है और अब इन पत्रों में मौजूद तर्कों पर वैज्ञानिकों द्वारा जांच-पड़ताल के बाद ही बहस हो सकती है. चंद्रा निराश हो जाते हैं. उन्हें लगता है कि उनका करियर बनने से पहले ही समाप्त हो गया है. पिछले 5 सालों की उनकी मेहनत पर पानी फिर गया है. पर एडिंग्टन जैसे संसार के श्रेष्ठ खगोलविद द्वारा अपने सिद्धांत की धज्जियाँ उदय जाने के बाद भी निराश नहीं होते हैं क्योंकि उन्हें अपने गणितीय गणना पर पूरा विश्वास रहता है. 1939 में वे अपना शोध पत्र को परिष्कृत कर प्रकाशित करवाते हैं. वर्षों तक उनका सिद्धांत सिर्फ निरा सिद्धांत ही रहा, पर 60 के दशक में न्यूट्रॉन स्टार और ब्लैक होल की खोज के बाद उनके सिद्धांत की सत्यता प्रमाणित हो गयी और 1983 में उन्हें इसी शोधपत्र पर संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया. उनके द्वारा प्रतिपादित उपरी सीमा का नाम उनके सम्मान में '' चंद्रशेखर लिमिट'' रखा गया, ठीक उनके चाचा '' रमन इफ़ेक्ट'' की तरह. परसों यानी 19 अक्टूबर को उनकी 114 वीं जयंती थी.


डॉ॰ सुब्रह्मण्याम चंद्रशेखर का जन्म 19 अक्टूबर 1910 को लाहौर (अब पाकिस्तान में) में एक तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता चंद्रशेखर सुब्रमण्यम अय्यर रेलवे में अकाउंटेंट थे. उनके छोटे भाई प्रसिद्द भौतिकविद सी.वी.रमन थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा मद्रास में हुई. मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि लेने तक उनके कई शोध पत्र प्रकाशित हो चुके थे. उनमें से एक `प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी' में प्रकाशित हुआ था, जो इतनी कम उम्र वाले व्यक्ति के लिए गौरव की बात थी. दिलचस्प तथ्य ये है कि सितारों के रहस्य जानने की उत्सुकता उनके मन में तब आई जब ने अपने चाचा सी.वी.रमन के द्वारा लायी आर्थर एडिंग्टन की प्रसिद्ध पुस्तक '' सितारों की आन्तरिक संरचना'' ( Internal constitution of the stars) पढ़ा. उस समय वे उनके साथ ही कोलकाता में उनकी प्रयोगशाला में सहायक के तौर पर कार्य कर रहे थे. इसी समय उन्होंने जर्मन भौतिकविद अर्नाल्ड सोमरफील्ड की क्लासिक पुस्तक '' Atomic structure and spectral lines'' भी पढ़ी. संयोग से 1928  में समरफील्ड मद्रास आये थे और चंद्रा ने उनसे मुलाकात की. इसी मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी.


जून 1930 में भौतिकी में स्नातक की डिग्री, बीएससी (ऑनर्स) करने बाद उसी साल जुलाई सरकार द्वारा छात्रवृत्ति प्रदान किये जाने के बाद चंद्रशेखर को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में स्नातक अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड गए. अपनी इंग्लैंड यात्रा के दौरान ही उन्होंने फाउलर के सिद्धांत में व्याप्त खामी की गणना कर अपने सिद्धांत की रूपरेखा तैयार कर ली थी. 1933 की गर्मियों में, चंद्रशेखर को कैम्ब्रिज में घूर्णन स्व-गुरुत्वाकर्षण पॉलीट्रोप्स पर अपने चार शोधपत्रों में से एक शोध प्रबंध के लिए पीएचडी की डिग्री प्रदान की गई. इसी साल 9 अक्टूबर को, उन्हें 1933-1937 की अवधि के लिए ट्रिनिटी कॉलेज में पुरस्कार फैलोशिप के लिए चुना गया. 16 साल पहले रामानुजम के बाद ये फेलोशिप प्राप्त करने वाले दुसरे भारतीय थे. यही उनकी मुलाकात आर्थर एडिंगटन से हुए जिन्होंने उनके शोध में गहरी दिलचस्पी दिखाई. जनवरी की उस घटना के बाद भी दोनों के सम्बन्ध बने रहे और उनका आपस में पत्राचार बना रहा. 1944 में एडिंग्टन की मृत्यु हो जाती है. अपने मृत्यु तक वे चंद्रा के सिद्धांत को गलत ही मानते रहे. पर जब डॉक्टर चंद्रा को 1983 में नोबेल मिला तो उन्होंने एडिंग्टन का नाम काफी सम्मान से लिया.


पर 1935 की जनवरी के उस शाम के बाद कैंब्रिज से उनका मन उचट गया. वे दो साल बाद अमेरिका चले आए. चंद्रशेखर अपने पूरे करियर के दौरान शिकागो विश्वविद्यालय में ही रहे. 1941 में उन्हें एसोसिएट प्रोफेसर और दो साल बाद 33 साल की उम्र में पूर्ण प्रोफेसर के पद पर पदोन्नत किया गया. 1946 में, जब प्रिंसटन विश्वविद्यालय ने चंद्रशेखर को हेनरी नॉरिस रसेल द्वारा खाली किए गए पद पर शिकागो के वेतन से दोगुना वेतन देने की पेशकश की, तो हचिन्स ने प्रिंसटन के वेतन के बराबर उनका वेतन बढ़ा दिया और चंद्रशेखर को शिकागो में रहने के लिए राजी कर लिया.1952 में, वे एनरिको फर्मी के निमंत्रण पर, सैद्धांतिक खगोल भौतिकी और एनरिको फर्मी संस्थान के मॉर्टन डी. हल प्रतिष्ठित सेवा प्रोफेसर बन गए. 1953 में, उन्होंने और उनकी पत्नी ललिता चंद्रशेखर ने अमेरिकी नागरिकता ले ली.


डॉ॰ चंद्रा सेवानिवृत्त होने के बाद भी जीवन-पर्यंत अपने अनुसंधान कार्य में जुटे रहे.वे लगभग 20 वर्ष तक एस्ट्रोफिजिकल जर्नल के संपादक भी रहे. उन्होंने खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी पर बहुत सारी पुस्तकें भी लिखी. उनकी पुस्तक '' ट्रुथ एंड ब्यूटी '' गणितीय और वैज्ञानिक सत्य और सुन्दरता के संबंधों पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक मानी जाती है. वे नास्तिक थे, पर सत्य की सुन्दरता में उनका विश्वास था. अपने अंतिम साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, यद्यपि मैं नास्तिक हिंदू हूं पर तार्किक दृष्टि से जब देखता हूं, तो यह पाता हूं कि मानव की सबसे बड़ी और अद्भुत खोज ईश्वर है. हालाँकि बाद में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता ले ली, पर भारत से और खासकर अपने गृह नगर मद्रास से उनका लगाव अंत तक बना रहा. बीसवीं सदी के विश्व-विख्यात वैज्ञानिक तथा महान खगोल वैज्ञानिक डॉ॰ सुब्रह्मण्यम् चंद्रशेखर का 22 अगस्त 1995 को 84 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से शिकागो में निधन हो गया. हालाँकि आज डॉ॰ चंद्रा हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी विलक्षण उपलब्धियों की धरोहर हमारे पास है जो भावी पीढ़ियों के खगोल वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी.


साभार : आर्थर मिलर की पुस्तक '' एम्पायर ऑफ़ द स्टार्स'' और विकिपीडिया.