पिछले हफ्ते फ्रांस से खबर आई कि वहां के युवाओं ने सडक़ पर निकल कर न केवल हंगामा किया बल्कि आगजनी से लेकर तोड़-फोड़ भी जमकर की। फ्रांस की पुलिस को उन्हें संभालने में पसीने छूट गए। ऐसा नहीं है कि हंगामा करने वाले युवा बगैर मतलब के सडक़ पर उतर आए। दरअसल ये युवा फ्रांस सरकार के उस फैसले के खिलाफ सडक़ पर उतर आए जिसमें सरकार ने सेवानिवृत्ति की आयु 60 साल से 62 साल कर दी। लालफीता शाही का दबाव फ्रांस में भी जबरदस्त है और सरकार चंद अफसरों के इशारे पर सेवानिवृत्ति की आयु 2 साल बढ़ाने का निर्णय लिया था। फ्रांस के युवाओं का कहना था कि इस तरह से सरकार का निर्णय नौकरी की निर्धारित आयु सीमा के अंतिम सालों पर खड़े युवाओं के लिए मौत का फरमान है। युवाओं के अपने तर्क थे। कुछ ने इसे वोट बैंक करार दिया तो कुछ ने ऐसे कर्मचारियों का षडय़ंत्र करार दिया जिनके बच्चे स्टेबलीस हो चुके हैं। फ्रांस के युवाओं के इस प्रदर्शन से सरकार को झुकना पड़ा है।
भारत में भी यही सब कुछ हो रहा है। युवाओं को छला जा रहा है। खासकर छत्तीसगढ़ में सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 62 किए जाने की मांग शुरु हो गई है। लेकिन युवाओं का यहां पता नहीं है। हालांकि कर्मचारियों का एक वर्ग ही इसका विरोध कर रहा है लेकिन 60 से 62 कराने के षडय़ंत्र में शामिल लोगों की कमी नहीं है। यहां तो युवाओं को कांग्रेस व भाजपा ने लालीपॉप थमाकर अपने पाले में कर लिया है कोई एनएसयूआई के बहाने कांग्रेस की राजनीति कर रहा है तो कोई अभाविप के बहाने भाजपा की राजनीति कर रहा है। छात्र नेता अपने आकाओं के इशारे पर काम करते हैं। न उन्हें शिक्षा के व्यवसायीकरण की चिंता है और न ही स्कूल-कॉलेज की मनमानी का ही ख्याल है। यहां तक की कमी और जर्जर भवन के खिलाफ भी छात्र नेता नहीं बोलते।
इसी रायपुर की बात है जब युवाओं पर राजनीति हावी नहीं थी तब टॉकीज में टिकिट की कीमत बढ़ा देने या सिलाई दर बढ़ जाने पर छात्र नेता सडक़ पर उतर आए थे। अब वह सब नहीं दिखता। भाजपा या कांग्रेस का पट्टा डाले युवाओं का जोश चंद रुपयों में ठंडा पड़ चुका है। ऊपर से शिक्षा के व्यवसायीकरण और भारी कोर्स ने उन्हें स्वार्थी बना दिया है। छत्तीसगढ़ शांत प्रदेश जल रहा है। चौतरफा लूट मची है। लेकिन कोई कुछ नहीं बोल रहा है युवाओं का जोश ठंडा पड़ चुका है अब तो मशहूर ‘दुष्यंत’ भी दुखी होकर सोचते होंगे कि क्या वे इन्हीं युवाओं के लिए लिखे थे कि
‘कैसे आकाश में सुराख नहीं होगा
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।’
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