निपटाने में दो मिनट नहीं लगेगा - मोहन
निपटने - निपटाने के खेल में अफसरों की मुश्किलें बढ़ी
वैसे तो राजनीति में निपटने और निपटाने का नया नहीं है। लेकिन छत्तीसगढ़ की राजनीति में इन दिनों यह खेल सुर्ख़ियों में तब आया जब रायपुर के कद्दावर माने जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल को सांसद की टिकिट दी गई।
कहने को तो इसे प्रमोशन कहा जा रहा है लेकिन मंत्री पद के आगे सांसद की हैसियत को आम आदमी भी जानता है, तो भला मोहन सेठ के नाम से चर्चित बृजमोहन अग्रवाल के समझ में क्यों नहीं आता, इसलिए 6 माह मंत्री रह सकने के तमाम दावे की कलई केविनेट की भरी बैठक में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने ही खोल दी। और बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकाले गये की तर्ज पर मन मसोसकर इस्तीफ़ा देना पड़ा।
लेकिन निपटने - निपटाने का खेल अमी ख़त्म नहीं हुआ था बल्कि शुरुआत आरंग के महानदी पुल में हुए कथित मॉब लिंचिग से तेज हो गया। मोहन सेठ ने इस मामले में अपने ही सरकार को घेरने को लेकर बवाल मचा तो मोमबत्ती बुझाने वाले अपमानजनक बीडियों ने इसे हवा दे दी।
और कहा जा रहा है कि इस निपटने - निण्टाने को खेल इसलिए खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है क्योंकि इसे सलाहकार ही हवा दे रहे है। हालांकि इस खेल में नुकसान किसका होगा कहना मुश्किल है लेकिन उसके चलते अफ़सरों की मुश्किले जरूर बढ़ गई है। और गुस्सा अफ़सरों पर ही निकलने लगा है।
इसका ताजा उपहरण जे चार दाने स्कूल में आयोजित स्वच्छता की पाठशाला बाले कार्यक्रम में तब देखने को मिला जब मोहल सेठ एक अफसर को ही कह दिया कि प्रोटोकॉल हमे न सिखाओ, निपटाने में दो मिनट लगेंगे।
मीडिया रिपोर्ट की माने तो मोहन सेठ का यह ग़ुस्सा अकारण नहीं था दरअसल अफ़सरों की प्राथमिकता मंत्री होते है ऐसे में अफ़सर ये नहीं समझ पाये कि ये सिर्फ़ सांसद बस नहीं है बल्कि ख़ुद को इससे भी बड़े समझने वाले हैं ।
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