एक तरफ छत्तीसगढ़ की राजधानी को खूबसूरत बनाने की कोशिश हो रही है तो दूसरी तरफ हवा में घुलते जहर ने आम लोगों की तकलीफे बढ़ा दी है। ठंड में यह तकलीफ और भी बढ़ जाती है, इसके पीछे जिस तरह का खेल पर्यावरण विभाग के अफसर कर रहे है वह रायपुर को प्रदूषित शहर बनाने की न केवल कोशिश है बल्कि सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती है।
रायपुर से लगे औद्योगिक ईकाईयों में जिस तरह से नियम कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही है वह हैरान कर देने वाली है, कुछ पैसे बचाने के नाम पर हो रहे इस खेल के पीछे न केवल पर्यावरण विभाग के अफसर शामिल है बल्कि राजनेताओं का भी वरदहस्त हासिल है। हालांकि यह सब प्रदेश के सभी क्षेत्रों में हो रहा है लेकिन राजधानी से जो उद्योगों में यह सारी सीमाएं लांघने लगी है।
न केवल वायु प्रदूषण बल्कि जल प्रदूषण भी बेतहाशा हो रहा है। विकास के इस अंधानुकरण दौर में आम आदमी का जीना मुहाल है। छत्तों में जमते काले धुंए के कण ने कई तरह की गंभईर बीमारियों को न्यौता दिया है ऐसे में क्लीन सिटी-ग्रीन सिटी के सपनों का क्या होगा।
हैरान करने वाली बात तो यह है कि इस प्रदूषण और उनसे हो रही तकलीफों की शिकायत के बाद न तो कार्रवाई की जाती है और न ही संज्ञान में ही लिया जाता है।
औद्योगिक प्रदूषण के चलते राजधानी में दमा एलर्जी और दूसरी बीमारियों के मरीजों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है और इस खेल में पक्ष-विपक्ष की एका भी चौंकाती है कि क्या राजनेताओं की रईसी के आगे आम आदमी के जीवन का कोई मूल्य नहीं है।
भाजपा जब सत्ता में थी तो उसके विधायक भी कई बार सवाल उठाते रहे हैं और आज जब कांग्रेस सत्ता में है तो कांग्रेसी विधायक सवाल उठा रहे है लेकिन इन सवालों का जवाब पर्यावरण विभाग में बैठे अफसरों की चुप्पी के आगे शून्य हो जाता है।
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