भारत नौ रत्न में से एक स्टील अर्थारिटी ऑफ इंडिया यानी सेल का दस फीसदी हिस्सा बेची जा रही है। लेकिन सब तरफ खामोशी है। कोई कुछ नहीं बोल रहा है तो यह मोदी सत्ता की ताकत का नतीजा है।
ऐसा नहीं है कि मोदी सत्ता की निजीकरण के चपेट में सेल ही आया है। मोदी सरकार बनने के बाद अब तक देश की 23 सार्वजनिक कंपनियों को बेचा जा चुका है, रेल मार्ग से लेकर हवाई अड्डे सहित कितने ही सार्वजनिक उपक्रम और शासकीय कंपनियों के शेयर निजी हाथों में बेचा जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद भी यदि भाजपा लगातार चुनाव जीतते जा रही है तो इसका क्या मतलब है।
देश में बेरोजगारी दर चरम पर है, किसान से लेकर जवान सड़कों पर है और देश की आर्थिक स्थिति लगातार खराब हो रही है ऐसे में सरकार यदि सार्वजनिक कंपनियों को लगातार बेचकर धन की व्यवस्था कर रही है तो भी गलत नहीं है। मोदी सत्ता ने अब तक बारह लाख करोड़ से अधिक का कर्ज ले लिया है जो किसी भी प्रधानमंत्री काल में लिये गये विदेशी कर्ज से सर्वाधिक है तब भी किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है तो इसका मतलब क्या है?
सवाल करने वाला विपक्ष यदि मुद्दों की बजाय केवल चुनावी राजनीति करे तो सत्ता की मनमानी बढ़ेगी ही। ऐसे में देश की बेहाल होती आर्थिक स्थिति को लेकर कई तरह के सवाल खड़ा होने लगा है।
पिछले 6 सालों में इस देश के हालत को लेकर इसलिए भी कोई सवाल नहीं हुए क्योंकि लोकतंत्र में चुनावी जीत को महत्वपूर्ण बना दिया गया है और चुनाव जीतने का अर्थ तमाम नाकामियों और अपराध को नजरअंदाज कर देना हो गया है। यही वजह है कि पहले कार्यकाल की नाकामी का कोई मतलब नहीं रह गया है। संसद के भीतर कही गई बातों का भी मतलब नहीं रह गया है और न ही संवैधानिक संस्थाओं का ही कोई अर्थ है।
विश्वास का संकट गहराता जा रहा है और ेक बड़ा वर्ग नाराज होने के बावजूद भी सत्ता की मनमानी इसलिए बरकरार है क्योंकि नाराज रहने वाले बिखरे हुए हैं। ऐसे में सेल क्या सभी शासकीय संस्थाओं की बारी आते रहेगी!
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