किसानों के साथ 8वें दौर की बैठक फिर बेनतीजा रहा। और फिर 9वें दौर की बैठक 8 जनवरी को होगी। किसान जब तीनों कानून को वापस लेने की मांग पूरी हुए बिना आंदोलन को समाप्त नहीं करने वाले हैं तब सरकार का अडियल रूख हैरान कर देने वाला है।
वैसे तो इस तीनों कानून को लेकर सरकार की नियत तब ही स्पष्ट हो गई थी जब सिे संसद में पास करने का जो तरीका अपनाया गया था, बगैर बहस और बगैर वोटिंग के यहां कानून कैसे पास हुआ यह किसी से छिपा नहीं है। भले ही कुछ लोग इसे चोर दरवाजा कहने पर आपत्ति उठाये लेकिन सच तो यही है कि इस कानून को लेकर सरकार की नीयत पहले ही दिन से खराब थी।
और खराब हो भी तो क्या फर्क पड़़ता है क्योंकि ये तीनों कानून सिर्फ और सिर्फ पूंजीपतियों के हितों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।
इसलिए आज जब विज्ञान भवन में सरकार के नुमाईदों और किसानों के बीच चर्चा के दौरान जब लंच का समय हुआ तो किसान अपने लंगर में मस्त थे और सत्ता के नुमाईदें फाईव स्टार होटल अशोका का खाना खा रहे थे। यकीन मानिये इस आठ दौर की बैठकों में सरकार का जितना खर्च हुआ है वह टिहरी बार्डर में धनारत या आंदोलनरत किसानों के एक दिन के भोजन से ज्यादा रुपये खर्च हुआ है। और ये पैसा किसका है। हमारा-तुम्हारा टैक्स का पैसा है।
स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना विज्ञान भवन का अपना इतिहास है लेकिन इससे सरकार को कोई सरोकार नहीं है वह तो आंदोलनरत किसान को थका देने की सोच के साथ बैठक पर बैठक यानी तारीख पर तारीख की घोषणा करते जा रही है लेकिन ुसे न किसानों के हितों की चिंता है न आंदोलनरत मरते-बिलखते किसानों की ही चिंता है। यदि उसकी चिंता में किसान होते तो कानून पास कराने का तरीका गलत नहीं होता और समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी होती।
जिन्हें ये तीनों कानून गलत लगते हैं उन्हें हम एक और जानकारी दें दे कि दुनिया के चावल उत्पादन करने वाले 103 देशों में भारत ऐसा देश है जो सबसे ज्यादा चावल एक्सपोर्ट करता है और यहां के उद्योगपति हो या सरकार सबसे ज्यादा पैसा कमाते हैं और आप हैरान होंगे कि जापान से लेकर कोरिया सहित ऐसे कितने ही देश हैं जहां प्रति किलो चावल तीन सौ रुपये प्रति किलो से ज्यादा कीमत पर बिकते हैं। यहां तक कि कनाडा में भी दो सौ रुपये किलो से अधिक कीमत है। और ऐसे में एमएसपी को कानून की गारंटी मिल जाएगी तो चावल एक्सपोर्ट करने वालों की कमाई कम हो जायेगी।
एक बात और हर बात में पाक को लेकर राजनीति करने वाले यह भी जान ले कि पाकिस्तान के किसानों की आर्थिक स्थिति भारत के किसानों की आर्थिक स्थिति से बेहतर है। इसलिए जो लोग कृषि रिफार्म के नाम से लाये गये इन तीनों कानून की वकालत कर रहे है वे जान ले कि जब तक एमएसपी को कानूनी गारंटी में नहीं लाया जायेगा तब तक किसानों की आय नहीं सुधरने वाली।
और हां, 8 जनवरी को भी बात बन जायेगी यह कभी नहीं सोचना? क्योंकि नियत में बरकक्त है और नियत में ही खोट हो तो सफलता मुश्किल है। बनेगी साहेब!
किसानों के साथ 8वें दौर की बैठक फिर बेनतीजा रहा। और फिर 9वें दौर की बैठक 8 जनवरी को होगी। किसान जब तीनों कानून को वापस लेने की मांग पूरी हुए बिना आंदोलन को समाप्त नहीं करने वाले हैं तब सरकार का अडियल रूख हैरान कर देने वाला है।
वैसे तो इस तीनों कानून को लेकर सरकार की नियत तब ही स्पष्ट हो गई थी जब सिे संसद में पास करने का जो तरीका अपनाया गया था, बगैर बहस और बगैर वोटिंग के यहां कानून कैसे पास हुआ यह किसी से छिपा नहीं है। भले ही कुछ लोग इसे चोर दरवाजा कहने पर आपत्ति उठाये लेकिन सच तो यही है कि इस कानून को लेकर सरकार की नीयत पहले ही दिन से खराब थी।
और खराब हो भी तो क्या फर्क पड़़ता है क्योंकि ये तीनों कानून सिर्फ और सिर्फ पूंजीपतियों के हितों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।
इसलिए आज जब विज्ञान भवन में सरकार के नुमाईदों और किसानों के बीच चर्चा के दौरान जब लंच का समय हुआ तो किसान अपने लंगर में मस्त थे और सत्ता के नुमाईदें फाईव स्टार होटल अशोका का खाना खा रहे थे। यकीन मानिये इस आठ दौर की बैठकों में सरकार का जितना खर्च हुआ है वह टिहरी बार्डर में धनारत या आंदोलनरत किसानों के एक दिन के भोजन से ज्यादा रुपये खर्च हुआ है। और ये पैसा किसका है। हमारा-तुम्हारा टैक्स का पैसा है।
स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना विज्ञान भवन का अपना इतिहास है लेकिन इससे सरकार को कोई सरोकार नहीं है वह तो आंदोलनरत किसान को थका देने की सोच के साथ बैठक पर बैठक यानी तारीख पर तारीख की घोषणा करते जा रही है लेकिन ुसे न किसानों के हितों की चिंता है न आंदोलनरत मरते-बिलखते किसानों की ही चिंता है। यदि उसकी चिंता में किसान होते तो कानून पास कराने का तरीका गलत नहीं होता और समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी होती।
जिन्हें ये तीनों कानून गलत लगते हैं उन्हें हम एक और जानकारी दें दे कि दुनिया के चावल उत्पादन करने वाले 103 देशों में भारत ऐसा देश है जो सबसे ज्यादा चावल एक्सपोर्ट करता है और यहां के उद्योगपति हो या सरकार सबसे ज्यादा पैसा कमाते हैं और आप हैरान होंगे कि जापान से लेकर कोरिया सहित ऐसे कितने ही देश हैं जहां प्रति किलो चावल तीन सौ रुपये प्रति किलो से ज्यादा कीमत पर बिकते हैं। यहां तक कि कनाडा में भी दो सौ रुपये किलो से अधिक कीमत है। और ऐसे में एमएसपी को कानून की गारंटी मिल जाएगी तो चावल एक्सपोर्ट करने वालों की कमाई कम हो जायेगी।
एक बात और हर बात में पाक को लेकर राजनीति करने वाले यह भी जान ले कि पाकिस्तान के किसानों की आर्थिक स्थिति भारत के किसानों की आर्थिक स्थिति से बेहतर है। इसलिए जो लोग कृषि रिफार्म के नाम से लाये गये इन तीनों कानून की वकालत कर रहे है वे जान ले कि जब तक एमएसपी को कानूनी गारंटी में नहीं लाया जायेगा तब तक किसानों की आय नहीं सुधरने वाली।
और हां, 8 जनवरी को भी बात बन जायेगी यह कभी नहीं सोचना? क्योंकि नियत में बरकक्त है और नियत में ही खोट हो तो सफलता मुश्किल है।
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