शराब बंदी को लेकर सत्ता में आई भूपेश सरकार के राज में अब गांव-गांव में शराब की नदियां बहने लगी है। अवैध शराब कारोबारियों को जिस तरह से प्रश्रय दिया जा रहा है वह चिंतनीय है। अवैध शराब के खेल में जिस तरह से माफिया, पुलिस और नेताओं की मिलीभगत भी सामने आने लगी है।
ऐसे में छत्तीसगढ़ के गांव-गांव की शांति छिन गई है और परिवार के परिवार बर्बादी की कगार पर है लेकिन सत्ता को शराब से होने वाली कमाई ही दिखाई दे रहा है। महासमुंद की रेल पटरी में जिस तरह की लाशें बिछी वह क्या आगे भी बिछती रहेगी। यह सवाल इसलिए है क्योंकि अवैध शराब के कारोबारियों के शिकंजे में पूरा छत्तीसगढ़ फंस चुका है। बेमचा की उमा और उसकी पांच बेटियों की आत्महत्या का मामला भले ही कुछ दिनों बाद भूला दी जाए लेकिन सच तो यही है कि शराबी पति या शराबियों की वजह से न केवल घरेलु हिंसा बढ़ी है बल्कि अपराध में भी बढ़ोत्तरी हुआ है। सामाजिक ताने-बाने भी टूट रहे हैं और परिवार भी बिखर रहा है।
ऐसे में शराबबंदी की पहल कांग्रेस ने इसलिए की थी क्योंकि रमन सरकार में शराब की नदिया बहने लगी थी, थाने दस-दस हजार में बिकने की चर्चा थी और डॉ. रमन सिंह दारु वाले बाबा कहलाने लगे थे। शराब से परेशान छत्तीसगढ़ के लोगों ने कांग्रेस के वादे पर भरोसा किया और कांग्रेस प्रचंड बहुमत से जीत भी गई। कहा जाता है कि शराब बंदी के वादे की वजह से महिलाओं ने कांग्रेस को एकतरफा वोट दिया था लेकिन ढाई साल बाद भी भूपेश सरकार ने शराब बंदी की बात तो दूर इसके लिए न तो कोई सामाजिक जागरुकता ही चलाई और न ही कोई सरकारी स्तर पर ही पहल हुआ उल्टे अवैध शराब के कारोबारियों को प्रश्रय दिए जाने की खबर आने लगी है।
राजधानी रायपुर में ही किस तरह के लोग अवैध शराब का कारोबार कर रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है और इन लोगों की सत्ता से नजदिकियां भी किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में सरकार यदि शराब में डूब गई है कहा जाए तो गलत नहीं होगा जबकि यह किसी से छिपा नहीं है कि पिछले ढाई साल में सत्ता का शराब को लेकर क्या मापदंड है। जबकि सत्ता चाहे तो चरणबद्ध ढंग से भी शराब बंदी कर सकती है। यह ठीक है कि जिन राज्यों में शराबबंदी है वहां भी अवैध शराब बन रहे है लेकिन जागरुकता अभियान और चरणबद्ध ढंग से इसे अमलीजामा तो पहनाया ही जा सकती है।
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