राम मंदिर निर्माण के नाम पर जिस तरह से भ्रष्टाचार करने की खबरें आ रही है, वह हैरान कर देने वाला है। हालांकि राम के नाम पर न तो दुकानदारी नई है और न ही लूट-मार की कहानी ही नहीं है लेकिन ताजा मामले में जिस तरह से राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट पर दो करोड़ की जमीन को दस मिनट के भीतर 18 करोड़ में खरीदी की गई वह साफ संकेत देता है कि राममंदिर ट्रस्ट में बैठे लोग किस तरह से मंदिर निर्माण की आड़ में अवैध रुप से पैसा कमाने में लगे हैं।
दरअसल आस्था के नाम पर जिस तरह खेल चल रहा है वह न तो समाज हित में है और न ही धर्म के हित में ही है। ताजा मामला एक ऐसे जमीन घोटाले और साजिश की ओर संकेत करते हैं जो लोगों की आस्था पर प्रहार है। वैसे तो राम मंदिर निर्माण के मुद्दे में जब से संघ और भाजपा ने हस्तक्षेप किया तभी से पैसों के हिसाब किताब को लेकर सवाल उठते रहे हैं, पिछली बार हुए हजार करोड़ से उपर के चंदे का कोई हिसाब किताब नहीं दिया गया और इस बार भी बीस हजार करोड़ से अधिक रकम इकट्ठा हुआ है।
ऐसे में जिस तरह से जमीन घोटाले की खबर सामने आई है उसके बाद ट्रस्ट से जुड़े लोगों की भूमिका और नियत पर सवाल उठ रहे हैं। इस घोटाले का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ट्रस्ट से जुड़े लोगों ने राम के नाम पर किस तरह से लूट मचा रखी है। चूंकि पूरे प्रकरण का दस्तावेज सार्वजनिक हो गया है तब ट्रस्ट निर्माण करने वालों की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं।
राम के नाम पर इस तरह से कोई घोटाला करेगा यह सोचा ही नहीं जा सकता था लेकिन पूरे प्रकरण में जिस तरह का खेल खेला गया उसमें सत्ता की भागीदारी से भी इंकार नहीं किया जा सकता। ट्रस्ट के सचिव चंपत राय और ट्रस्ट के एक सदस्य अनिल शर्मा के मिलीभगत से केवल दस मिनट में जमीन की कीमत 2 करोड़ से बढ़कर 18 करोड़ हो गई और हैरानी तो यह है कि जमीन खरीदने के लिए स्टाम्प की खरीदी भी जमीन बिकने के दस मिनट पहले ही कर ली गई। यानी जिस जमीन को दो करोड़ में खरीदा जाना था उसे 18 करोड़ में खरीदने के लिए स्टाम्प दो करोड़ में खरीदने के पहले ही खरीद लिया गया। यही नहीं दोनों ही खरीदी बिक्री में ट्रस्ट के सदस्य अनिल शर्मा और अयोध्या के मेयर गवाह भी बन गए।
ऐसे में सवाल यह है कि मोदी सत्ता ने जो ट्रस्ट बनाई है वह क्या कर रही है। हालांकि संघ और भाजपा पर राम के नाम पर राजनीति करने और लोगों की आस्था से खिलवाड़ करने का आरोप पहले भी लगता रहा है लेकिन इस जमीन घोटाले में रजिस्ट्री के दस्तावेज सामने आने के बाद सब कुछ साफ होने लगा है। देखना है कि इस घोटाले को दबाने के लिए सत्ता का प्रभाव कहां तक जाता है।
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