राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने सौ वी स्थापना दिवस मनाने की ओर अग्रसर है। २७ सितंबर १९२५ को स्थापित यह संगठन कैसा काम करता है, हिंदू राष्ट्र को लेकर इसकी सोच और संस्कार देने के दावे सब कुछ हम आपको किश्तों में पढ़वायेंगे, कोशिश करेंगे कि आप तक रोज़ कुछ न कुछ पठनीय सामग्री पहुँच सके….
संघ को जानने समझने की कोशिश इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि संघ के अपने दावे है जिसका एक पहलू अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाकर अपने एजेंडे को देश पर थोपना है तो दूसरा दावा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के तराज़ू में संस्कार देना ।
शुरुआत देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की संघ को लेकर की गई भविष्यवाणी से-
आरएसएस की १००वें स्थापना दिवस पर पढ़िए पंडित नेहरू की भविष्यवाणी:
संघ पर नेहरू की भविष्य वाणी…
हमारे पास इस बात के ढेरों सबूत हैं, जिससे यह पता चलता है कि आरएसएस अपने स्वभाव से निजी सेनाओं के जैसा संगठन है, जो नीति और संगठन के मामले में साफ़ तौर पर नाज़ियों का अनुसरण कर रहा है....
मुझे जर्मनी में शुरू हुए नाज़ी आंदोलन की कुछ जानकारी है. इसने अपने ऊपरी दिखावे और सख्त अनुशासन से लोगों को आकर्षित किया. इसमें बड़ी संख्या में लोअर मिडिल क्लास के नौजवान पुरुष और महिलाएं शामिल थे. यह लोग सामान्य तौर पर बहुत ज़्यादा योग्य नहीं थे और न ही इनके लिए जीवन में बहुत सारी संभावनाएं थीं. इसलिए ये लोग नाज़ी पार्टी की ओर मुड़ गए, क्योंकि इसकी नीति और प्रोग्राम बहुत सरल थे. वह नेगेटिव थे और उनमें दिमाग़ के सक्रिय इस्तेमाल की कोई ज़रूरत नहीं थी. नाज़ी पार्टी ने जर्मनी को तबाह कर दिया और मुझे बिल्कुल संदेह नहीं है कि अगर यह प्रवृत्तियां इसी तरह भारत में बढ़ती रहीं, तो वह भी भारत को बहुत ज़्यादा नुक़सान पहुंचाएंगी. इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत फिर भी रहेगा, लेकिन उसे बहुत गहरा घाव लग जाएगा और इससे उबरने में लंबा वक़्त लगेगा.'
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