सोमवार, 18 जनवरी 2021

जमीन सौंपने की तैयारी...


 

क्या भारत की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चली है कि विदेशी कर्ज लेने उसे वह सब करना पड़ रहा है जिससे भारत की कृषि जमीन पूंजीपतियों के हाथों में चला जाये। यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि ठिठुरती ठंड में परिवार के साथ बैठे किसानों की मांग और सत्ता की जिद पिछले 52 दिनों से सड़कों पर है।

इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए कई बातों को जानना जरूरी है क्योंकि पिछले 6 सालों में मोदी सत्ता ने बारह लाख करोड़ रुपये का न केवल विदेशी कर्ज लिया है बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के 23 पीयूसी को भी बेचा है। यही नहीं रेल मार्ग से लेकर हवाई अड्डों और बीएसएनएल से लेकर डिफेंस की जमीनों को भी बेचने की तैयारी कर रही है।

ऐसे में जब तीन कानून को लेकर देशभर के किसान दिल्ली बार्डर में जमा हो गये हैं तो सरकार की जिद मामले को गंभीर बना रही है। सुप्रीम कोर्ट के समर्पण के स्वर के बीच आंदोलन को तोडऩे की सरकारी कवायद ने यह सोचने मजबूर कर दिया है कि क्या ये तीनों कानून विदेशी दबाव में बनाये गये है?

इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले यह जानना जरूरी है कि भारत की अर्थव्यवस्था को आक्सीजन देने का काम केवल कृषि कर रहा है दूसरी बात यह है कि पूरी दुनिया में पूंजीपतियों का निशाना जमीन है। क्या कोई यह बात जानता है कि बिल गेट्स बनने के लिए क्या जरूरी है तो हम आज अपने पाठकों को बता दें कि बिल गेट्स के पास केवल अमेरिका में ढाई लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि है। इसी तरह दुनियाभर में जितने भी पूंजीपतियों की टाप की फेहरिश्त है सभी के पास लाखों हेक्टेयर कृषि जमीन है और सुधारवाद के इस दौर में पूंजीपतियों ने साफ कर दिया है कि वे अफ्रीका, साउथ एशिया में भी कृषि उत्पादन और उससे जुड़े उद्योगों में ही ज्यादा पूंजी निवेश करेंगे और साउथ एशिया में भारत भी आता है।

इसके अलावा यह भी सच है कि सत्ता की रईसी के लिए पूंजी जरूरी है और जो पूंजी लगायेगा वह कानून भी अपने ढंग से बनवायेगा। ऐसे में क्या ये नहीं माना जाना चाहिए कि ये तीनों कानून जब पूंजीपतियों के हित में है तब सत्ता अपनी रईसी बरकरार रखने किसानों की मांग मान सकती है!

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