इसलिए मिला उज्जवल निगम को राज्यसभा का ईनाम…
वह झूठ जिसने निगम को हीरो बना दिया, अंधभक्ति की दास्तान
सार्वजनिक रूप से झूठ बोलना आसान काम नहीं है इसके लिए बेशर्मी चाहिए या संघ का संस्कार। राष्ट्रपति ने जिन चार लोगो को राज्यसभा के लिये मनोनीत किया है उनमे से एक नाम उज्जवल निगम भी है, आज हम बतायेंगे उज्जवल निगम कौन है और उन्होंने राज्यसभा तक सफ़र कैसे किया…
वहीं उज्ज्वल निकम जिसे बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव मे मुंबई नाॅर्थ सेंट्रल से उम्मीदवार बनाया था, जिसमें वे कांग्रेस की वर्षा गायकवाड़ से हार गए थे। तब श्री निकम संसद नहीं पहुंच पाए तो अब भाजपा ने उन्हें दूसरा रास्ता बना लिया। इसका फ़ायदा भाजपा को महाराष्ट्र और ख़ासतौर पर मुंबई में अपनी पकड़ और मजबूत बनाने में मिलेगा। उज्ज्वल निकम ने इस मनोनयन के बाद बताया कि आधिकारिक सूचना आने से एक दिन पहले ही नरेन्द्र मोदी ने उन्हें फोन कर इसकी जानकारी दी थी और इस बातचीत में मराठी में ही पूछा था कि हिन्दी में बात करूं या मराठी में। यह कोई सामान्य सवाल नहीं है, बल्कि इसके गहरे अर्थ भाषा विवाद में देखे जा सकते हैं। प्राथमिक शिक्षा में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का फ़ैसला फड़नवीस सरकार ने लिया था, लेकिन उद्धव ठाकरे की शिवसेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इस फैसले का भारी विरोध किया। नतीजा यह हुआ कि फड़नवीस सरकार को फ़ैसला वापस लेना पड़ा। इसे भाजपा की एक बड़ी हार के तौर पर देखा जा रहा है अब शायद नरेन्द्र मोदी हिंदी बोलूं या मराठी, यह सवाल खड़ा करके इस हार की खीझ मिटा रहे हैं।
मोदी के इस तंज भरे सवाल का सीधा जवाब यह है कि ठाकरे गुट की शिवसेना के आगे भाजपा की घबराहट बरकरार है।
उज्ज्वल निकम का मनोनयन ऐसा ही एक उपाय दिख रहा है। श्री निकम 1991 का कल्याण बम धमाका, 1993 का मुंबई सीरियल ब्लास्ट, 2003 का गेटवे ऑफ इंडिया बम धमाका, 26/11 मुंबई आतंकी हमला, प्रिया दत्त अपहरण कांड और नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड जैसे कई हाई-प्रोफाइल मामलों में अभियोजन का नेतृत्व कर चुके हैं। लेकिन वे सबसे ज्यादा चर्चा में तब आये, जब उन्होंने कहा था कि मुंबई हमलों के दोषी अजमल कसाब को जेल में बिरयानी खिलाई जा रही है। गौरतलब है कि इस हमले में शामिल सारे आतंकवादी मारे गए थे, लेकिन अजमल कसाब को मुंबई पुलिस में बतौर सहायक इंस्पेक्टर तैनात रहे तुकाराम ओंबले ने जिंदा पकड़ा, हालांकि इसमें खुद उनकी जान चली गई, क्योंकि कसाब अपनी एके 47 से अंधाधुंध गोलियां बरसा रहा था, जबकि श्री ओंबले के पास केवल एक लाठी थी, जिससे उन्होंने कसाब को रोके रखा, खुद गोलियां खाईं, लेकिन उसे पकड़ लिया। शहीद तुकाराम ओंबले को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया है। उनकी बहादुरी और सर्वोच्च त्याग से भारत पर हुए बड़े आतंकी हमले के दोषी को पकड़ा जा सका, जिससे इस हमले के कई भेद सामने आये।
कसाब को पूरी न्यायिक प्रक्रिया के बाद 21 नवंबर 2012 को फांसी दे दी गई। लेकिन इन चार सालों में जब तक कसाब जेल में रहा, यूपीए सरकार के ख़िलाफ़ इस बात को लेकर नाराज़गी बनी कि उसने एक आतंकी को जेल में बिरयानी खिलाई है। जबकि इस झूठ के बारे में 2015 में खुद उज्ज्वल निकम ने खुलासा किया है। जयपुर में आतंकवाद विरोधी अंतररराष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लेने आये श्री निकम ने कहा था कि , ‘कसाब ने कभी भी बिरयानी की मांग नहीं की थी और न ही सरकार ने उसे बिरयानी परोसी थी। मुकदमे के दौरान कसाब के पक्ष में बन रहे भावनात्मक माहौल को रोकने के लिए मैंने इसे गढ़ा था।’ श्री निकम के मुताबिक कसाब को आतंकवादी मानने पर कुछ लोग सवाल उठा रहे थे, उसके लिए मीडिया में सहानुभूति बन रही थी। श्री निकम ने कहा कि जब उन्होंने मीडिया से यह सब कहा तो एक बार वहां फिर पैनल चर्चाएं शुरू हो गईं और मीडिया दिखाने लगा कि एक खूंखार आतंकवादी जेल में मटन बिरयानी की मांग कर रहा है, जबकि न उसने बिरयानी मांगी, न सरकार ने उसे बिरयानी खिलाई थी।
उज्ज्वल निकम ने तो बड़ी आसानी से झूठ बोलकर उसका खुलासा भी कर दिया, लेकिन इसके कारण कांग्रेस सरकार और खासकर सोनिया गांधी पर कीचड़ उछालने का मौका भाजपा को मिला और यूपीए सरकार को सत्ता से हटाने में मदद मिली। सियासी स्तर पर तो यह घिनौना खेल भाजपा ने खेला ही, खुद उज्ज्वल निकम ने एक खूंखार आतंकी के लिए ऐसा झूठ बोलकर देश की आतंकविरोधी नीति के साथ खिलवाड़ किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को दागदार किया। भाजपा 2014 में सत्ता में आई और 2016 में ही उज्जवल निकम को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था, फिर 2024 में चुनाव का टिकट मिला और अब सीधे राज्यसभा का मनोनयन। भाजपा में झूठ बोलने वालों को सम्मानित किया जाता है, यह बात खुद नरेन्द्र मोदी ने इस बार साबित की है।(साभार)