सोमवार, 14 जुलाई 2025

भारत रत्न के कामराज

भारत रत्न के कामराज  



कामराज का जन्म 15 जुलाई 1903 को तमिलनाडु के विरूधुनगरमें हुआ था। उनका मूल नाम कामाक्षी कुमारस्वामी नादेर था लेकिन बाद में वह के कामराज के नाम से ही जाने गये। स्वतंत्रता के बाद कामराज 1952 के संसदीय चुनावों में श्रीविल्लीपुतुर संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में लोकसभा के सदस्य चुने गए।

12 अप्रैल 1954 को चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जी के मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद कामराज ने मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली। (13 अप्रैल 1954 से 2 अक्टूबर 1963 तक) उन्होंने मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री के रूप कार्य किया। सीएम बनने के बाद उन्हें संसद की सदस्यता से इस्तीफा देने पड़ा।

1964 में नेहरू की मृत्यु के समय, कामराज भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे। नेहरू की मृत्यु के बाद अशांत समय में पार्टी को सफलतापूर्वक संचालित किया।  कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने खुद अगला प्रधान मंत्री बनने से इनकार कर दिया और दो प्रधानमंत्रियों, 1964 में लाल बहादुर शास्त्री और 1966 में नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी को सत्ता में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस भूमिका के लिए, उन्हें 1960 के दशक के दौरान "किंगमेकर" के रूप में व्यापक रूप से सराहा गया। 

(1964 से 67) तक उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में नेतृत्व किया। 1969 में उन्होंने नागरकोइल संसदीय सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में उपचुनाव लड़ा, और संसद पहुंचने में कामयाब रहे।

1969 के अंत में कुछ कांग्रेसी नेताओं की इंदिरा गांधी से मतभेद हो गए। मोरारजी देसाईकुमारस्वामी कामराजएस निजलिगंप्पातथा अन्य नेताओं ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया। असंतुष्ट धड़े ने कामराज के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन) के नाम से राजनीतिक दल का गठन किया।

1971 के संसदीय चुनावों में उन्होंने नागरकोइल संसदीय सीट से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन) के उम्मीदवार के रूप में लोकसभा पहुंचे।

1971 के चुनावों में विपक्षी दलों द्वारा धोखाधड़ी के आरोपों के बीच पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा। वह 2 अक्टूबर 1975 में अपनी मृत्यु तक कांग्रेस (ओ) के नेता बने रहे।

उन्हे वर्ष 1976 में भारत रत्न से सम्मनित किया गया, तथा उनकी स्मृति में भारत सरकार द्वारा डाक टिकट जारी किया गया।

महत्वपूर्ण योगदान

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कामराज ने साठ के दशक की शुरुआत में महसूस किया कि कांग्रेस की पकड़ कमजोर होती जा रही है। उन्होंने सुझाया कि पार्टी के बड़े नेता सरकार में अपने पदों से इस्तीफा दे दें और अपनी ऊर्जा कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए लगाएं। उनकी इस योजना के तहत उन्होंने खुद भी इस्तीफा दिया और लाल बहादुर शास्त्रीजगजीवन राममोरारजी देसाई तथा एस. के. पाटिल जैसे नेताओं ने भी सरकारी पद त्याग दिए। यही योजना कामराज प्लान के नाम से विख्यात हुई। कहा जाता है कि कामराज प्लान की बदौलत वह केंद्र की राजनीति में इतने मजबूत हो गए कि नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्रीबनवाने में उनकी भूमिका किंगमेकर की रही। 

उस योजना के अंतर्गत करीब आधे दर्जन केंद्रीय मंत्री और करीब इतने ही मुख्यमंत्रियों ने इस्तीफा दिया था। उस योजना का उद्देश्य था, बतौर पार्टी कांग्रेस को मजबूत करना। पर वास्तव में उसने नेहरू को अपनी नई टीम बनाने के लिए स्वतंत्र कर दिया था, जिसकी छवि 1962 के चीनी युद्ध के कारण धूमिल हुई थी।

दक्षिण भारत की राजनीति में कामराज एक ऐसे नेता भी रहे जिन्हें शिक्षा जैसे क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। आजादी मिलने के बाद 13 अप्रैल 1954 को कामराज ने अनिच्छा में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पद स्वीकार किया लेकिन प्रदेश को एक ऐसा नेता मिल गया जो उनके लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाने वाला था। उन्होंने प्रदेश की साक्षरता दर, जो कभी सात फीसद हुआ करती थी, को बढ़ाकर 37 फीसद तक पहुंचा दिया।

कामराज ने आजादी के बाद तमिलनाडु में जन्मी पीढ़ी के लिए बुनियादी संरचना पुख्ता की थी। कामराज ने शिक्षा क्षेत्र के लिए कई अहम फैसले किए। मसलन उन्होंने यह व्यवस्था की कि कोई भी गांव बिना प्राथमिक स्कूल के न रहे। उन्होंने निरक्षरता हटाने का प्रण किया और कक्षा 11वीं तक निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा लागू कर दी। वह स्कूलों में गरीब बच्चों को मध्याह्न भोजन देने की योजना लेकर आए। उन्हीं के कार्यकाल के बाद से तमिलनाडु में बच्चे तमिल में शिक्षा हासिल कर सके।