काशी को क्योटा बनाने के बाद अब पटना को पुणे और मोतिहारी को मुंबई…
ग़ज़ब दौर है, लोग सच न देखना चाहते हैं और न ही सुनना, सत्ता में बैठे लोग कुछ भी बोलने लगे हैं और लोग ताली बजा रहे हैं । धर्म का नैरेटिव्ह सेट है इसलिए हर चुनाव के पहले इस पर नमक मिर्च का तड़का डाल दिया जाता है और फिर ताली बचाने लगते हैं, कंगना रानौत की हिमाक़त किसी मूर्खता से कम नहीं तो पटना को पुणे बनाने की घोषणा को बेशर्मी नहीं कहा जाना चाहिए…
प्रसिद्ध व्यंगकार हरिशंकर परसाई ने कहा था
बुद्धिजीवी इस समय संशय से भरे हैं और मूर्ख भरपूर आत्मविश्वास से.
हालांकि इन पर बात करना भी नहीं करने के बराबर ही है. लेकिन जरा सोचिए अगर यह सारी धरती इन्हीं लोल लोगों से भर गई तब बातचीत के विषय कैसे होंगे? कोई भी आकर कह देगा देश को आजादी चिड़िया के अंडे से मिली है. या यह देश डेढ़ सौ सालो की लीज पर है.
कोई यह भी कह सकता है कि नेहरू और गांधी एक भूत है.
हवाई जहाज की खोज हमारे पतंग उड़ाने से हुई है.
कोई पासपोर्ट की रैंकिंग गिरने को उपलब्धि बता सकता है
और इसलिए कंगना कह रही है कि सरदार पटेल को अंग्रेज़ी नहीं आती इसलिए वे प्रधानमंत्री नहीं बन पाये और अमित शाह का तो दवा है कि अंग्रेज़ी बोलने वालों को एक दिन शर्म आएगी..
ऐसे में समझो कि कुछ तो झोल है
क्योंकि सरदार पटेल ने लंदन में बाक़ायदा बेरिस्टरी की है
अब थोड़ी बात नॉनबायोलॉजिकल के लिए हो जाये यानी इस झोल पर…
मोदी जानते हैं कि कहाँ क्या बोलना है क्योंकि यह देश दो धड़ों में बंट चुका है जिनमें मिडिल क्लास वर्ग का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया जा रहा। हालात यह है कि ऊंचे दाम और ऊंचे पकवान के क्राइटेरिया में या तो आप खुद को शामिल कीजिए, या फिर अति गरीबी की श्रेणी में जाकर अपना गुजर बसर कीजिए। जाकर 5 किलो राशन की लाइन में लग जाइए तभी आपका घर चल पाएगा।
जनता इतनी मासूम है कि वो साफ साफ ये देख ही नहीं पा रही कि चुनाव आते ही ये मुगलकालीन इतिहास की कब्रें सिर्फ हिन्दू मुसलमान करने के लिए खोदी जा रही है। बहस के ऐसे ऐसे चिन्हित मुद्दों को उकेरा जा रहा है जिनमें हिन्दू मुसलमान की बहस हो। अब करणी सेना के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का स्टेटमेंट ही देख लीजिए सांसद इकरा हसन के लिए। सत्ता जानती है कि इस मुद्दे पर बहस होनी ही है। सत्ता उकसाती है और जनता उछल उछल कर प्रतिक्रिया देने उतर आती है।
असल मुद्दे जनता के बीच से गायब है। रोजगार का इनके पास कोई मॉडल नहीं है। देश को हलक तक कर्ज में डुबाए बैठे है जिसकी भरपाई जनता की जेबों से की जा रही है। आपके अकाउंट से कभी मेंटेनेंस के नाम पर तो कभी एटीएम चार्ज के नाम पर तो कभी यूपीआई चार्ज के नाम पर बिना बताए पैसे काट ले रहे है। आप ट्रेन की टिकट कटाए तो बिना थर्ड पार्टी ऐप के (जिनका चार्ज लगभग 250 से 300 रुपए ज्यादा लगता है) आप आसानी से कर ही नहीं पा रहे। चिड़ियाघर और म्यूजियम जैसे पर्यटन स्थलों पर 25 रुपए की टिकट अब दो गुनी तीन गुनी होकर बिक रही है। एयरपोर्ट में और तीर्थ स्थलों पर ठेके वाली कैंटीनों में डंके की चोट पर 25 का माल 50 में बेचा जा रहा है।
तब जब थोड़े लोग सत्ता से न डिग सके इसलिए कुछ विकास का दावा कर दो।
लोगो ने काशी को क्योटा बनते तो देख ही लिया है अब पटना को पुणे और मोतिहारी को मुंबई बनते भी देख ही लेंगे…