जब सत्ता ने झूठ बोलकर
नफ़रत फैलाया,
70 सब के सब बरी…
जिन लोगों का पूरा संस्कार ही झूठ अफ़वाह और नफ़रत की राजनीति पर केंद्रित हो उनसे किसी अच्छाई की उम्मीद ही बेमानी है, वे देश का भला तो छोड़िये किसी का भला नहीं कर सकते, यहाँ तक कि वक्त पड़ने पर घर परिवार ही नहीं समाज को भी संकट में डाल सकते हैं। यह बात दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले ने साबित कर दिया कि कुर्सी के लिये सत्ता और उनसे जुड़े लोग किस हद तक गिर सकते हैं । आइये समझते है पूरा मामला…
मामला 2020 का है जब दिल्ली के निज़ामुद्दीन के तब्लीगी जमात के मरकज के विरुद्ध मीडिया ने कैसा माहौल बनाया था। लगता था जैसे सारा कोविड इन्ही के कारण फैला था। पूरे देश मे लोग इनके खिलाफ हो गए थे।
दरअसल सारा झमेला इनकी निज़ामुद्दीन की एक धार्मिक सभा को लेकर उत्पन्न हुआ। इस आयोजन में देश-विदेश से हजारों लोग शामिल हुए थे। जब इस सभा में शामिल कुछ लोग कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए, तो सरकार और मीडिया के एक वर्ग ने तब्लीगी जमात पर लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने और कोरोना वायरस फैलाने का आरोप लगाया।
दिल्ली पुलिस ने 70 भारतीय नागरिकों और 195 विदेशी नागरिकों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC), महामारी रोग अधिनियम, आपदा प्रबंधन अधिनियम और विदेशी अधिनियम के तहत मामले दर्ज किए। आरोपों में शामिल था कि मरकज में लोगों ने सामाजिक दूरी और स्वच्छता नियमों का पालन नहीं किया, कुछ जगहों पर तब्लीगी सदस्यों द्वारा थूकने, नर्सों से बदतमीजी जैसे गंभीर आरोप भी लगे। जिन्हें मीडिया और सोशल मीडिया में इस तरह फैलाया गया जैसे हिंदुस्तान में कोरोना का इनसे बड़ा अपराधी कोई दूसरा नही। सोशल मीडिया पर #CoronaJihad जैसे हैशटैग भी ट्रेंड हुए, जिससे सामुदायिक तनाव बढ़ा।
लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने 17 जुलाई 2025 को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में तब्लीगी जमात के 70 भारतीय नागरिकों के खिलाफ दर्ज 16 एफआईआर और चार्जशीट को रद्द कर दिया। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि कोई सबूत नहीं है कि इन लोगों ने लॉकडाउन का उल्लंघन किया या जानबूझकर वायरस फैलाया।
कोर्ट ने पाया कि:
1, मरकज का आयोजन मार्च 2020 की शुरुआत में हुआ था, जब पूर्ण लॉकडाउन लागू नहीं हुआ था। लोग लॉकडाउन के कारण मरकज में फंस गए थे और उनके पास बाहर निकलने का कोई साधन नहीं था।
2, कोविड-19 से संक्रमण का कोई सबूत नहीं, न तो एफआईआर और न ही चार्जशीट से यह साबित हुआ कि वे कोविड-19 से संक्रमित थे या उन्होंने बीमारी फैलाई।
3, कोर्ट ने माना कि धारा 144 CrPC या अन्य कोविड नियमों का उल्लंघन सिद्ध नहीं हुआ।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाली अधिवक्ता आशिमा मंडला ने तर्क दिया कि आरोप "बढ़ा-चढ़ाकर" और "निराधार" थे, जिसे कोर्ट ने स्वीकार किया।
कायदे से ये पूरा मामला एक समुदाय विशेष के खिलाफ पूर्वाग्रह और मीडिया के दुष्प्रचार का जीता जागता उदाहरण है। इससे भी बड़ी बात यहां के बहुसंख्यक वर्ग के मानसिक दिवालियेपन की भी है।
नफरत और वोटों की राजनीति देश को किस गर्त में धकेल रही है उसे समझने में भी ये वर्ग असफल है।(साभार)