पत्रकारिता को लेकर हमेशा से ही मेरी अपनी सोच रही है शायद यही वजह है की मै एक संस्थान में कभी भी टिक कर नहीं रह सका .
ऐसा एक बार फिर हो गया और इस बार बुलंद -छत्तीसगढ़ छुट गया .लक्ष बड़ा है या फिर सफ़र बड़ा है यह मै नहीं जानता लेकिन ‘बुलंद ’ छुटने पर दुखी भी हूँ .सोचा था ‘बुलंद ’ के माध्यम से नई आज़ादी की लड़ाई पूरी कर लूँगा पर इश्वर को शायद कुछ और मंजूर है .हालाँकि न तो मैंने कभी कोई काम किसी के भोरेसे पर किया और न उन लोगों में से हूँ जो भाग्य के भरोसे सब कुछ छोड़ देते है .
अपने काम पर जरुर मुझे भरोसा रहा है और आज भी भरोसा है की सुचारू व्यवस्था बनाने के लिए गलत पर प्रहार करना ही होगो , गलत के खिलाफ खड़ा होना ही होगा , गलत के खिलाफ खुलकर बोलना ही होगा भले इसके एवज me अपने कुछ लोगों की नाराजगी मोल क्यों न लेनी पड़े .
‘बुलंद ’के लगभग दो साल का साफ आर झंझावातों से गुजरा खबरे रोकने का दबाव के साथ हार बार अखबार छाप सकने के अलावा खबरों पर कारवाई की चिंता भी काम नहीं थी लेकिन कहा जाता है की अच्छा सोचोगे तो अच्छा होगा शायद इसकिये सब कुछ अच्छा हुआ
नए साल के सफ़र में अब कौन माध्यम होगा नहीं कह सकता लेकिन धर और पैनी हो और जिस तरह से मुझे सबका प्यार ‘बुलंद ’में लड़ाई के दौरान मिला और नए लोग भी जुड़े वैसा ही आगे भी चले नई आज़ादी की इस लड़ाई में और भी लोग jude aur जो जुड़े है उनके प्यार के भरोसे फिर कुछ कर सकूँ इसी आशा के साथ नए माध्यम की तलाश है . ..
पड़ाव से आगे बढें, मंजिल तक पहुंचना है।
जवाब देंहटाएंआपके हौसले बुलंद रहे भाई, लक्ष्य तो मिलेगा ही. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनांए.
जवाब देंहटाएं