सरकार के मुखिया ने
स्टार होटल के वातानुकूलित
कक्ष में अपने करीबियों
की बैठक बुलाई
फिर अपनी इक्छा जताई
सभी नद्यां से सुन रहे थे
मुखिया के साथ छप्पन-भोग धुन रहे थे
तभी एक किनारे में
जमा होने लगी भीड़
उस डोंगे की नहीं थी खैर
क्योंकि उसमे सजाया गया था पौष्टिक मेवा
और इसी के साथ उपजा
सादगी के साथ जन-सेवा
इसी नारे को प्रचारित किया गया
जनता भी नारे से थी खुश
सिर्फ संसाधन बिक रहे थे काम था फुस्स
भ्रस्टाचार के आकंठ में
हिचकोले खाने लगे नेता
बेकार होने लगी
सादगी के सादगी के साथ जन-सेवा
सरकार भी यह बात जानती थी
अन्दर ही अन्दर यह मानती थी
सिर्फ कहने से काम नहीं चलता
साबित भी करना पड़ेगा
तभी बेटे ने मौका दिलाया
कार्यक्रम भी तय हो गया
फाइव स्टार की सुविधा वाले पंडाल में
आम लोगों को भी आने की छुट थी
मेट्रो हलवाइयों के बीच
भोजन की लुट थी
वी आई पी लगी तख्ती के बाद भी
आम लोग खा रहे थे मेवा
यही तो है सरकार की
सादगी के साथ जन-सेवा.....
superb line that is described the crucial situation of our C.G. How dare to write such line or words. it seems you are the KABIR.
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