कितनी अजीब बात है
किसी को ज़िंदगी भर प्यार नहीं मिलता
ना माँ का
ना पिता का
ना ही पति का
ना ही किसी का साथ
सिर्फ इसलिए क्योंकि
मैं किन्नर हूँ
ये जिंदगी हैं
ये कोई सोचता ही नहीं
सपने भी
अपने भी
वही ज़ज़्बात
वही रूह
वही खून
फिर क्यों नहीं है साथ
मैं मन क्यों मारू
इच्छा क्यों ना रखूं
इश्क क्यों ना करूँ
ज़िंदगी से
मैं जीऊँगी ,जीने की संघर्ष के लिए
खुश रहने के लिए
हँसने के लिए
अपने अरमानों को
पूरा करने के लिए
तब तक
जब तक ज़िंदगी मेरी
तेरी जैसी नहीं हो जाती
मैं जीऊँगी
-विद्या राजपूत
किसी को ज़िंदगी भर प्यार नहीं मिलता
ना माँ का
ना पिता का
ना ही पति का
ना ही किसी का साथ
सिर्फ इसलिए क्योंकि
मैं किन्नर हूँ
ये जिंदगी हैं
ये कोई सोचता ही नहीं
सपने भी
अपने भी
वही ज़ज़्बात
वही रूह
वही खून
फिर क्यों नहीं है साथ
मैं मन क्यों मारू
इच्छा क्यों ना रखूं
इश्क क्यों ना करूँ
ज़िंदगी से
मैं जीऊँगी ,जीने की संघर्ष के लिए
खुश रहने के लिए
हँसने के लिए
अपने अरमानों को
पूरा करने के लिए
तब तक
जब तक ज़िंदगी मेरी
तेरी जैसी नहीं हो जाती
मैं जीऊँगी
-विद्या राजपूत
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