क्या आपने उन भेडिय़ा बच्चों के बारे में सुना है जो चांद की तरफ मुंह उठाकर हुंकाती मादा की घातक छातियों से दूध पीते है, और जब उस बच्चे को झुण्ड से अलग कर बचा लिया जाता है तो वह सबसे पहले बचाने वालों को ही काटता है। उनमें न तहजीब होती है और न ही उससे प्रेम की कल्पना ही की जा सकती है।
आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन सत्ता में बैठे लोगों की लापरवाही और गैर जिम्मेदाराना हरकत किसी भेडिय़ा बच्चे से कम नहीं है। बदइंतजामी ने तो जिन्दा लोगों को लाश में तब्दिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है। इस माह यानी अप्रैल में ही कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा पचास हजार पार कर चुका है और विशेषज्ञों की माने तो आने वाले दिनों में इसमें और तेजी आएगी। लोगों को तो पचास हजार वाले सरकारी आंकड़ों पर यकीन ही नहीं है वे इसे कई गुणा बता रहे हैं।
अपनी नाकामी छुपाने कोई सत्ता किस हद तक निचता पर उतर जाये ये कहना मुश्किल हो गया है। सत्ता की बेशर्मी आप गिनते रह जाएंगे और उससे ज्यादा निचता और बेशर्मी तो उन लोगों की है जो अपनी हिन्दू कुंठा के चलते देश को पहले ही बर्बाद कर देना चाहते हैं। देशभर में जिस तरह से कब्रिस्तान से श्मशान घाट तक लाशों की लाईने दिखाई देने लगी है वह किसी भी संवेदनशील सरकार के मुंह में तमाचा है लेकिन केन्द्र सरकार अभी भी सिर्फ और सिर्फ राजनीति कर रही है। लगता है कि भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्री तो मोदी-शाह से इस कदर दहशत में है कि न तो वो एक देश एक कीमत पर ही कुछ बोल पा रहे हैं और न टीका को सभी तरह के टेक्स फ्री पर ही कुछ बोल पा रहे हैं। यदि हम महामारी में भी केन्द्र की सत्ता वेक्सीन में टैक्स माफ नहीं कर पा रही है तो इसका मतलब क्या है।
पहले ही सरकार की लापरवाही, बदइंतजामी और लॉकडाउन के चलते कालाबाजारी की मार झेल रही जनता यदि सरकारी स्तर पर भी आपदा में अवसर की शिकार होकर अपने जान-माल को नहीं बचा पा रही है तो इस सरकार को होने का मतलब क्या है। अब तो इस सरकार की लापरवाही और बदइंतजामी को गिनाने का कोई मतलब ही नहीं है क्योंकि इस लापरवाही की लाश पर अब भी कुंठित हिन्दू बेशर्मी से जश्न मनाने का मौका ढूंढते रहते है। संघी नफरत का जज्बा लिये झपट्टा मारने को तत्पर गिद्ध की तरह वे केन्द्र की लापरवाही का ठिकरा राज्यों पर फोडऩा चाहते हैं।
हैरानी तो इस बात की है कि वे पिछली गलतियों से सबक लेने की बजाय नई-नई गलितयां कर अपनी बेशर्मी का परिचय देते हैं। और हद तो यह है कि वे अब भी यह मानने को तैयार नहीं है कि उनकी लापरवाही और अहंकार की वजह से दूसरी लहर में मौत का तांडव मचा है। सबसे शर्मनाक और हैरानी की बात तो यह है कि सत्ता अब भी इस विपदा से निपटने की कोई कारगार कोशिश नहीं कर रही है। जबकि विशेषज्ञों की राय में आने वाला वक्त बेहद मुश्किल भरा होगा। ऐसे में आत्मा चित्कार उठता है और कहता है-
बस-बस-बस
सत्ता का हवस, बस-बस
झूठ का साहस, बस-बस
कोरोना के कहर से सब बेबस
छाती पे जलती लाश बस-बस
बदइंतजामी, बेरुखी का कॉकस
सत्ता का अट्हास बस बस बस
सत्ता की रईसी, प्राण वायु की गरीबी
दबता जनता का नस, बस बस बस
कौशल दबा दो सत्ता का नस
न हो सके टस से मस।।
बस बस बस...
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