मोदी सरकार ने कोरोना वैक्सीनेशन के मामले में देश को मझधार में खड़ा कर दिया है। हर तरफ हाहाकार है, मौत के आकड़े छुपाये जा रहे है। वैक्सीन की पहली और दूसरी डोज को लेकर बार-बार नीतियों में परिवर्तन किया जा रहा है। हालत बदतर होते जा रहा है और प्रधानमंत्री की अभी भी प्राथमिकता सेन्ट्रल विस्टा में महल बनाने की है।
याद कीजिए तो मोदी सरकार का हर निर्णय लोगों में भ्रम फैलाने और जान लेने वाला रहा है। नोटबंदी के समय 8 नवम्बर 2016 से लेकर 31 दिसम्बर 2016 तक सौ तरह के आदेश जारी हुए इसका परिणाम क्या हुआ 150 से अधिक लोग मारे गए। फिर जीएसटी को नयी आर्थिक आजादी का सूरज के रुप में पेश किया गया और इसकी वजह से भी सैकड़ों व्यापारी बर्बाद हो गए। न नोटबंदी के मास्टर स्टोक का फायदा मिला न जीएसटी के मास्टर स्ट्रोक से फायदा हुआ।
भारत के कोविड वर्किंग ग्रुप के चेयरमेन डॉक्टर एन.के. अरोरा ने कुछ दिन पहले कहा था कि दो डोज के अंतराल को बढ़ाने से बेहतर परिणाम का कोई सबूत नहीं है ऐसा वही देश कर रहे है जहां वैक्सीन की कमी है। देश में वैक्सीनेशन को लेकर सत्ता ने बार-बार नियम बदले 60 वर्ष से 45 फिर 18 वर्ष किया गया पिछले चार माह में सरकार का बयान देखे तो या तो वह विरोधाभाषी है या अस्पष्ट है। ऐसा लगता है कि सरकार ने इस देश में नरसंहार का फैसला ही कर लिया है ताकि जनसंख्या के कथित समस्या से मुक्ति मिल सके। यह इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि मोदी सरकार ने अगस्त 2020 में निर्णय लिया कि कोई भी राज्य सरकारे, अपने स्तर पर वैक्सीन के संबंध में कोई भी प्रयास न करें। जितनी भी जरूरत होगी, वह केन्द्रीय स्तर पर भारत सरकार खरीदेगी। जबकि इस समय पूरी दुनिया के देश अपनी-अपनी जरूरत के हिसाब से ग्लोबल टेंडर दे रहे थे तब मोदी सरकार केवल सीरम इंस्टीट्यूट को आर्डर देकर अपने चेहते टीवी चैनलों पर वैक्सीन गुरु का खिताब बटोर रहे थे।
अचानक मोदी सरकार के इस भ्रमित निर्णय के चलते वैक्सीनेशन में कमी आ गई तो फिर राज्य सरकारों के सामने ग्लोबल टेंडर जारी करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। उत्तरप्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, राजस्थान की सरकारें ग्लोबल टेंडर जारी कर रही है या कर दी है। सवाल यही है कि जब ग्लोबल टेंडर राज्यों को ही जारी करना था तब यह काम पर पहले क्यों मना किया गया। इस सरकार के सारे फैसले आग लगने के बाद कुआं खोदने वाली होने की वजह से देश की हालत हर मोर्चे पर खराब होते जा रही है और कोरोना ने तो भयावह तबाही मचाई है।
इस सरकार की आदतों में शुमार भ्रमित निर्णय के बाद भी यह सरकार श्रेय लेने की होड़ में भी लगी रहती है जबकि हकीकत में देखा जाए तो इस सत्ता ने 6 साल में देश को इतना पीछे ढकेल दिया है, लोगों के जीवन को नरक बना दिया है जिसकी कल्पना ही बेमानी है। देश में टीकाकरण का इतिहास उपलब्धियों से भरा रहा है, पोलियों, चेचक, टीवी, हेपेटाईटिस बी जैसे मामले में नि:शुल्क टीकाकरण सफलतापूर्वक होता रहा है। और उसके परिणाम भी सुखद रहे हैं लेकिन इस सत्ता ने वर्तमान वैक्सीनेशन अभियान के काला अध्याय बना दिया।
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