कोरोना के इस भीषण तबाही को लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुखी है, तो उन्हें दुखी होना भी चाहिए क्योंकि कोरोना की जो तबाही और नरसंहार इस देवभूमि के कतरे कतरे में दिखाई दे रहा है उसकी वजह किसी से छिपी भी नहीं है। सत्ता की लापरवाही के चलते हुए इस नरसंहार को लेकर दुखी होना और इसकी जिम्मेदारी लेना दोनों ही अलग बात है।
हम यह बिल्कुल भी नहीं कह रहे हैं कि नरसंहार के इस मंजर से प्रधानमंत्री जी दुखी होने का नाटक कर रहे हैं क्योंकि जिस तरह से रुदन और वेदना के स्वर आकाश से ऊंचा होता जा रहा है उसमें दुखी होने के अलावा कोई राह भी नहीं है। सत्ता या नेताओं को लेकर कितनी भई मोटी चमड़ी की बात कही जाए वह मोटी चमड़ी भी इस रुदन के आगे पिघल जायेगी फिर नरेन्द्र मोदी तो देश के प्रधानमंत्री है।
ऐसे में उनके दुख के सच होने को लेकर आश्वस्त होना चाहिए हो यदि वे अपनी लापरवाही का बयान नमस्ते ट्रम्प से शुरु कर तमाम लापरवाही को गिना देते तो शायद उनके दुख पर सवाल नहीं उठता। लेकिन सत्ता के प्रमुख पदों पर बैठने वालों का अपना चरित्र होता है, फिर जिम्मेदारी को स्वीकार करने के लिए न केवल नैतिक साहस की जरूरत होती है बल्कि अपने भीतर के झूठ और छल को मारना पड़ता है। और यदि राजा जिम्मेदारी स्वीकार कर ले तो फिर वह कैसा राजा।
कोरोना के दौर में देश की सत्ता से लोगों की उम्मीद यदि बड़ी है तो इसके लिए प्रधानमंत्री को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। सत्ता की जब पूरी रईसी लोगों के टैक्स पर निर्भर है, सेन्ट्रल विस्टा के लिए पैसे या प्रधानमंत्री के महल के लिए पैसे जब टैक्स से ही आना है तो वैक्सीन को टैक्स फ्री कैसे किया जा सकता है। आखिर जनता पेट्रोल, रसोई गैस पर टैक्स दे ही रही है, दवा से लेकर घरेलु उपयोग की वस्तुओं की कालाबाजारी में अधिक पैसे दे ही रही है तब वैक्सीन में टैक्स देने से क्या परेशानी हो सकती है।
इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर टैक्स नहीं लेने का दबाव डालना ही गलत है, वैसे भी सत्ता चलाना आसान काम तो है नहीं। फिर आपदा के समय तो यह और भी मुश्किल भरा काम है। सलाह देने या आलोचना करने वालों का क्या है उनका कौन सा पैसा लगना है तब उनकी सलाह तो बेमानी ही हुई और फिर मुफ्त की सलाह की कोई कीमत भी तो नहीं होती। देश को प्रधानमंत्री को धन्यवाद करना चाहिए क्योंकि वे न केवल दुखी है बल्कि उन्होंने मृतकों को श्रद्धांजलि भी दे दी है और अब क्या किसी को सुली पर चढ़ाओगे?
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