शनिवार, 29 मई 2021

देश को कहां ले जा रहे हो साहेब...

 

क्या सचमुच इस देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश की समझ नहीं है या यह जनसंख्या कम करने की कोई साजिश है? यह सवाल इसलिए उठाये जा रहे है ताकि लोगों को यह पता तो चले कि आखिर इस देश की सत्ता पर काबिज सरकार की हकीकत का पता चल सके।

दरअसल यह सवाल इसलिए भी उठाये जा रहे हैं क्योंकि केन्द्र में जब से मोदी सरकार आई है, देश के माहौल में जो नफरत की हवा बहने लगी है उसका दुष्परिणाम सबके सामने है। मोदी सरकार ने वैसे तो दो सौ योजनाओं की घोषणा की है लेकिन वे सारी घोषणाएं हकीकत की धरातल पर बुरी तरह असफल रही है। स्मार्ट सिटी से लेकर आयुष्मान भारत योजना हो चाहे स्टार्टअप से लेकर उज्जवला योजना हो धरातल पर कहीं दिखाई नहीं देता। यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गोद लिये गांव की हालत देख लिजिए। 

ऐसे में कुछ ऐसे फैसलों पर भी निगाह जाती है जो साबित करने के लिए काफी है कि इस सरकार को देश की समझ ही नहीं है। नोटबंदी में डेढ़ सौ लोगों की मौत के अलावा भी कुछ हासिल हुआ हो तो जरूरत बताईयेगा। जीएसटी की असंगत से आज भी मध्यम श्रेणी के व्यापारी परेशान है। और कोरोना की लापरवाही ने तो लाखों लोगों की जान ले ली। अचानक लिये गए लॉकडाउन से कितने मजदूर सड़कों पर आ गये ये आंकड़े भले ही सरकार के पास न होने का दावा करे पर इससे हकीकत नहीं बदलने वाली। कोरोना की लापरवाही का यह आलम है कि दुनिया भर के देश वैक्सीन खरीदने का जुगाड़ कर रहे थे और हमारे देश की सत्ता लापरवाही का शतक पूरा करने में लगी थी।

लाशों का मंजर तो असहाय था ही अस्पतालों में बदइंतजामी और दवाइयों तथा आक्सीजन की कालाबाजारी ने सारी हदें पार कर दी। इस पर यदि सरकार को दोष न भी दे तो भूख से व्याकुल जनता और वैक्सीन के अभाव में छटपटाते लोगों की लाइनें क्या सत्ता को दिखाई नहीं दे रहा है। खाद्य तेल से लेकर जीवन के लिए जरूरी खाद्यानों की कीमत भी दिखाई नहीं दे तो फिर सत्ता की समझ क्या है। पेट्रोल-डीजल और गैस की बढ़ती कीमत भी क्या सरकार को दिखाई नहीं दे रहा है और इसकी कीमत बढऩे से महंगाई बढऩे की समझ भी सरकार के पास नहीं है तो फिर सरकार की समझ पर शक होना लाजिमी है। क्या सत्ता पाने झूठ-छल-प्रपंच अफवाह और नफरत फैलाने की समझ ही रह गई है इससे सत्ता तो मिल ही गई और आगे भी मिल जायेगी लेकिन देश की समझ कैसे होगी?

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