न कोरोना से मौते ही थम रही है और न ही सरकार अपनी गैर जिम्मेदाराना हरकत से ही बाज आ रही है! सरकार लाख दावा करे कि सब कुछ ठीक हो गया है, लेकिन जमीन में माजरा दिल दहला देने वाला है। कोर्ट ने सरकार को दो महत्वपूर्ण सुझाव दिये है पहला इस आपदा से निपटने राष्ट्रीय योजना बनाने की और दूसरा फ्री में वेक्सिन देने की लेकिन आज की तारीख तक सरकार ने इन दोनों ही सुझाव पर अमल नहीं किया है।
इसका मतलब साफ है कि मोदी सरकार लोगों की मौत को लेकर जरा भी चिंतित नहीं है, वह सिर्फ हवा में बात कर रही है। मोदी सत्ता का दावा जमीन में पूरी तरह असफल है, अब भी आक्सीजन की कमी है, वेक्सिन की कमी से जूझ रही राज्य सरकार के सामने कानून व्यवस्था की चुनौती खड़ी हो गई है।
इतनी निर्दयी सत्ता... कितनों ने देखी है। इस आपदा से परिवार के परिवार बरबाद होते जा रहा है, बच्चे अनाथ होते जा रहे है, लघु और मध्यम व्यापारियों के सामने जीवन और परिवार बचाने का संकट खड़ा हो गया है लेकिन सत्ता के पास किसी भी तरह की योजना नहीं है। हैरानी तो इस बात की है कि भाजपा की राज्य इकाई और राज्य सरकारें भी खामोशी से जलती चिता और बिलखते लोगों को तमाशाबीन बनी देख रही है। सत्ता की निष्ठुरता का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि उसने मान्य परम्पराओं तक को तिलांजलि दे दी है और बंगाल चुनाव में ममता बैनर्जी को प्रधानमंत्री ने बधाई तक नहीं दी। शायद वे कोरोना से हो रही मौत से दुखी होंगे। लेकिन जिस बेशर्मी से वह सब ठीक ठाक व्यवस्था यानी आक्सीजन सप्लाई की बात कर रही है वह हैरान कर देने वाला है।
यदि देखा जाये तो केन्द्र की यह सत्ता हर मोर्चे में बुरी तरह फेल हो चुकी है। इतिहास में अब तक के सबसे लूजर प्रधानमंत्री के रुप में यह दर्ज हो चुका है। और पूरी दुनिया में जिस तरह से प्रतिक्रिया आ रही है वह बेहद शर्मनाक है। इसके बाद भी कोई सत्ता में कैसे बना रह सकता है। लेकिन तमाम असफलता के बाद भी हम खामोश है, सवाल नहीं पूछ रहे हैं तो इसका मतलब है हम अपने भीतर की आदमियत को धीरे-धीरे मार रहे हैं और अपने दिलों दिमाग में राज करने वालों के हाथ में एक पट्टा गले में डाल कर दे चुके हैं। अंत में-
शरम!
तुम्हे क्या लगता है
वह पहली बार
बेशरम तब हुआ था
जब उसकी दस लाख
की सूट उतरवाई गई थी
नहीं।
उसकी बेशर्मी बहुत
पहले की है
शायद जब राष्ट्रधर्म
की नसीयत मिलने
से पहले ही वह
बेशरम हो चुका था
लेकिन वह कब
कहना कठिन है लेकिन
शायद बीस साल की
उम्र में अपनी पत्नी
को छोड़ देने से
बहुत पहले ही
उसने शरम छोड़ दी थी।
या उससे भी पहले...। (केटी)
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