श्रीराम के नाम पर ठेकेदारी करने वालों को प्रभु राम ने पूंजी-सत्ता सब सौंप दी है लेकिन उनकी नियत अब भी साफ नहीं है और अब तक श्रीराम मंदिर निर्माण के नाम पर जिस तरह की धोखाधड़ी, छल, चंदाखोरी और दूसरे मामले सामने आने लगे हैं उसके बाद तो यह कहना मुश्किल हो गया है कि श्री राम के नाम पर लूट की प्रतिस्पर्धा नहीं चल रही है।
ताजा मामला तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा खरीदी जा रही जमीनों की वैधानिक और राशि को लेकर मामला सामने आया है। पहले मामले में अयोध्या के मेयर शामिल है तो दूसरे मामले में मेयर का भांजा शामिल है। संघ के चंपत राय की भूमिका तो किसी से छिपी ही नहीं है। हालत यह है कि संघ, भाजपा से जुड़े लोग कम कीमत पर जमीन खरीद कर मंदिर ट्रस्ट को ज्यादा कीमत में जमीन धड़ल्ले से बेच रहे है और राम के नाम पर सत्ता में काबिज लोगों को इसमें कुछ भी गलत नहीं दिखता। तब यह पैसों का बंदरबांट नहीं तो और क्या है।
अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय के भांजे दीप नारायण ने दशरथ महल बड़ास्थान के महंत से जो जमीन बीस लाख में खरीदी उस जमीन को ट्रस्ट को ढाई करोड़ में बेच दी। दस्तावेज देखते ही पहली नजर में सब गड़बड़झाला दिख रहा है। राजस्व विभाग के अधिकारी भी इस रजिस्ट्री पर खुलेआम उंगली उठा रहे है लेकिन न ट्रस्ट की बेशर्मी रुक रही है और न ही सत्ता की बेशर्मी।
तब सवाल यही है कि जो संघ अपने को संस्कार, चरित्रनिर्माण और पता नहीं किस-किस तरह की नैतिकता सिखाने का दावा करता है वह क्या ऐसा ही संस्कार और चरित्र निर्माण करता है। हालांकि हमने पहले भी कहा है कि संघ ने जिस तरह से इस देश को धर्म के नाम पर नफरत में झोका है, राष्ट्रपिता की हत्या में शामिल होने क आरोपों के अलावा कितने ही आरोप संघ पर है और आजादी के बाद से अब तक संघ की गतिविधियों पर चार बार बंदिश भी लग चुका है तब सवाल यही है कि देश के लिए जरूरी क्या है।
श्रीराम जन्मभूमि के नाम पर चंदा हजम करने का आरोप न तो नया है और न ही भाजपा का झूठ ही नया नहीं है। पहले के चंदे का हिसाब आज तक नहीं हुआ और अब नये चंदे में जिस तरह के घपले सामने आ रहे है उसके बाद तो संघ के संस्कार पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
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