मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

किसानी पर अधिकार


 

किसानी पर अधिकार

यह सर्व सत्य है कि जिसके पास पैसा है उसी के पास धरती, आकाश और पाताल पर अधिकार है और सत्ता वह बात हर बार समझाते रही है लेकिन हम ही नहीं समझ पाये या इसे किसानों ने ही नहीं समझा तो गलती सत्ता की कैसे हुई।

याद किजीए जब गैट समझौते के उथल पुथल के बीच आर्थर डेकल का प्रस्ताव आया तो स्वदेशी को प्रमोट करने वाले संगठन, आरएसएस और भाजपा पूरे देश में विरोध के स्वर को हवा देने में लगी थी और तब की सत्ता कृषि सब्सिडी को लेकर अलग ही  राग अलाप रही थी। लेकिन तब भी कोई नहीं समझ पा रहा था कि मामला गड़बड़ है।

दरअसल सभ्यता का सारा विकास ही जमीनों पर कब्जे करने का इतिहास है। महाभारत से लेकर आज तक जितने भी युद्ध हुए हैं वह सब जमीनों के लिए है। आदिवासी क्षेत्रों में संघर्ष की बात हो या जाति संघर्ष, सभी ने मूल में जमीनों पर कब्जा जमाने का ही खेल रहा है।

यही वजह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब युद्ध आसान नहीं रह गया तो जमीनों पर कब्जों के लिए नया रास्ता अख्यितार किया गया। अमेरिका, चीन, सउदी अरब जैसों देशों ने अफ्रीका में खेती के नाम पर जमीनों पर कब्जा करना शुरु किया। कई देश आज विकसित देशों के कृषि उपनिवेश बने है। पैसों की जरूरत के लिए कई देश अपनी जमीन खेती के लिए दे रहे है। अमेरिका बायोफ्यूल के नाम पर मक्का की खेती करवा रहा है तो चीन की रूचि व्यवसायिक फसलों की तरफ है।

वह भी सत्य है कि जिन देशों में भूखमरी के हालात है, उन देशों की जमीनों पर खेती के नाम पर व्यवसायिक घरानों का कब्जा है और इस कब्जे के खेल में सरकार उन्हीं का साथ दे रही है। ऐसे में उत्पादन पर किसका हक हो रहा है यह समझना आसान है। और व्यवसाय में मुनाफा कमाना ही जब ईमानदारी हो तो फिर आम आदमी के हित की बात कोई व्यवसायी कैसे सोच सकता है। जबकि पूंजीवाद का सीधा तर्क है कि बच्चे को तभी तक हाथ पकड़कर चलाना चाहिए जब तक वह चलना न सीख ले। और चलना सीख ले तो हाथ छोड़ दो भले ही वह गड्ढे में क्यों न गिर जाए।

लेकिन हम कुछ समझना ही नहीं चाहते जबकि हमें तभी समझ लेना चाहिए था कि जब रिलायंस देश भर में स्टोर्स खोल रहा था, अडानी देश भर में गोदाम बना रहा था। आखिर लाभ के लिए सिर्फ मार्केटिंग की ही नहीं, उत्पादन की भी जरूरत होती है। और उत्पादन के लिए जमीन की जरूरत होती है।

इसलिए जब तीन कृषि कानून को लेकर किसान आंदोलन करने लगे तो सरकार यह सब कैसे बर्दाश्त करेगी। आंदोलन लंबा चले या न चले सरकार की मंशा स्पष्ट है। आज वह भले ही किसानों के दबाव में आ जाए लेकिन वह पिछले दरवाजे से यही करने वाली है। भविष्य के इस संकेत से सावधान रहना होगा, क्योंकि जमीन सिर्फ जमीन  नहीं है वह धरती, आकाश, पाताल भी है और धरती, आकाश पाताल को रखने का अधिकार भी उन्हीं को है जिनके पास पैसा है। और दुर्भाग्य से सत्ता भी इसी पर चलने लगी है।

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