खबर यह नहीं है कि किसान आन्दोलन कर रहे है और न खबर यह भी है कि आन्दोलन के दौरान आधा दर्जन से अधिक किसानों की मौत हो गई, खबर यह भी नहीं है कि किसानों ने मोदी सत्ता के मर्म पर प्रहार करते हुए अडानी-अंबानी का बहिष्कार कर दिया है। खबर तो यही है कि सत्ता का अहंकार आसमान छूने लगा है।
कड़कड़ाती ठंड में भी आन्दोलन बेधड़क चल रहा है और सत्ता अब भी यह समझाने में लगी है कि उनके द्वारा बनाये गए तीनों कानून सही है। जबकि हकीकत तो यही है कि ये तीनों कानून किसानों के लिए नहीं उद्योगपतियों के लिए बनाई गई है। यदि कानून किसानों के लिए बनाई जाती तो समर्थन मूल्य में धान की खरीदी अनिवार्य होता। लेकिन सत्ता का मतलब ही जब रईसी हो तो वह मुनाफा से कैसे मुंह मोड़ सकती है।
करोना काल में जब समूची दुनिया की गतिविधियां ठप्प पड़ गई थी, अर्थव्यवस्था का बुरा हाल था और जीडीपी लगातार गिर रही थी तब इकलौता कृषि क्षेत्र ऐसा था जिसने अर्थव्यवस्था को संबल दिया। और सत्ता की निगाह अब इसी पर है। यही वजह है कि सरकार ने कृषि सुधार के नाम पर ऐसे कानून लाये जिससे किसानों से ज्यादा फायदा कार्पोरेट को हो, क्योंकि सत्ता की रईसी के लिए पैसा चाहिए और पैसा किसान नहीं कार्पोरेट देता है।
सत्ता की इस सोच ने ही समर्थन मूल्य से नीचे पर खरीदी को लेकर कानून नहीं बनाया है क्योंकि सिर्फ यही एक कानून किसानों को सुदृढ़ करने के लिए काफी है।
मोदी सरकार के 6 साल में कार्पोरेट घरानों को जो फायदा मिला है उसका दुष्परिणाम दिखने लगा है लेकिन जब सारा कुछ चुनावी जीत पर निर्भर हो तो बुरे फैसले पर सवाल उठाने का मतलब ही कहां बचता है। यही वजह है कि नोटबंदी से लेकर जीएसटी जैसे फैसले में मौत के आंकड़े हिला देने वाले होने के बावजूद सरकार के रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया।
किसानों ने आन्दोलन के दौरान जब तीनों कानून को लेकर दो टूक निर्णय लिया तब भी सत्ता को कोई फर्क नहीं पड़ा और वह आने वाले दिनों में बंगाल चुनाव की रणनीति पर व्यस्त है।
विपक्ष भी किसान आन्दोलन का समर्थन तो कर रहे हैं लेकिन किसान नेताओं के फैसले से दूरी बना रहे हैं। किसानों ने जब अडानी-अंबानी के बहिष्कार का निर्णय लिया तो विपक्ष भी इस पर कुछ नहीं बोल पाये क्योंकि राजनैतिक दलों के बाद पानी का सवाल है। यही वजह है कि किसान अपने ढंग से बहिष्कार में लगे है और यह बहिष्कार यदि देशभर के किसानों ने कर दिया तब अडानी-अंबानी का क्या होगा? अडानी-अंबानी को गरियाने वाले विपक्ष भी अब तक इस मामले में चुप है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें