शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

सरकार के अडऩे का अर्थ...

किसान आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के बाद भी यदि मोदी सत्ता अड़ी हुई है तो इसका मतलब साफ है कि उसे किसानों की कोई परवाह नहीं है। दरअसल मोदी सरकार के पास सत्ता में बने रहने का जो विकल्प है उससे जनआन्दोलन कोई मायने नहीं रखता? उसके पास सत्ता में बने रहने केलिए जो आवश्यक साधन चाहिए वह उसने जुटा लिये है। ऐसे में कोई भई मांग सिरे से खारिज किया जा सकता है।

सत्ता में बने रहने के लिए सबसे जरूरी साधन पैसा है और भारतीय जनता पार्टी इस देश में सबसे पैसे वाली पार्टी है, दूसरा साधन उसका हिन्दू-मुस्लिम है और तीसरा साधन विरोधी दलों का बिखराव और खरीद फरोख्त या दबाव की राजनीति है। इन सभी में साधन सम्पन्न सत्ता कब जनहित की परवाह करती है।

यही वजह है कि 2014 के चुनाव के बाद मोदी सत्ता ने ऐसे कई निर्णय लिये जो देश या आम लोगों के हितों के विपरित थी लेकिन 2019 के चुनाव परिणाम उसके पक्ष में गये, यही नहीं राज्य दर राज्य जीत, पंचायत से लेकर नगरीय निकायों में उसे सफलता मिलते रही। और उसका पूरा ध्यान इसी पर लगा रहा। 

नोटबंदी का परिणाम क्या हुआ? किसी से नहीं छिपा है। डेढ़ सौ के लगभग मौत क ेबाद भी न कालाधन खत्म हुआ और न ही आतंकवाद की कमर टूटी लेकिन मोदी सत्ता के इस दावे के बिखर जाने के बाद भी उसकी जीत चलते रही। जीएसटी लागू करने का परिणाम भी उसके पक्ष में रहा ऐसे में जब मोदी सत्ता ने सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने का काम शुरु किया तब भी वहां काम करने वालों की पीड़ा का कहीं असर नहीं दिखा, रेलवे से लेकर एयर पोर्ट और लालकिला तक गिरवी रखने के बाद भी वह चुनाव जीतते रही तब भला किसान आंदोलन से उसे क्या फर्क पडऩा है।

वह जानती है कि लोकतंत्र में चुनाव जीतना ही सभी अपराधों की माफी है और चुनाव जीतने के लिए पूंजी सबसे अहम हथियार है और पंूजी से औवेसी खड़ा किया जा सकता है। पूंजी से कट्टर हिन्दू की नींव रखी जा सकती है, पूंजी से जमीन ही नहीं आकाश-पाताल सब पर कब्जा किया जा सकता है और जब विरोध के स्वरों के अपने राजनैतिक स्वार्थ हो तो सत्ता की मनमानी को कोई कैसे रोक सकता है।

यही वजह है कि कड़कड़ाती ठंड में किसानों की मौत के बढ़ते आकड़े हमें अब नहीं झकझोरते है क्योंकि हमने तय कर लिया है कि बाबर से लेकर औरंगजेब ने जो अत्याचार किया है उससे मुक्ति यही सत्ता दिलायेगी।

अरे साहेब किसानों का हित सिर्फ समर्थन मूल्य पर धान खरीदी से है। इसे ही कानून बना दो किसानों को और कुछ नहीं चाहिए?

1 टिप्पणी:

  1. कोई भी सत्ता हो ना तो वह किसानों का भला चाहिए और ना ही वह गरीबों का भला चाहेगी किसानों का और गरीबों का भला हो गया या ने उनके पास संपन्नता अभी तो सबसे पहले भूख मिटेगी भूख मिट गई तो सोचने लगेंगे सोचने लगेंगे तो भला बुरा भी सोचेंगे और भला बुरा सोचने के दौरान उनको समझ में आ जाएगा कि उनके लिए अच्छा क्या है और बुरा क्या है बस यहीं पर दिक्कत है इसलिए ना तो गरीब को संपन्न बनने दो नाही किसान को संपन्न बनने दो यह मूल मंत्र है और इस मूलमंत्र का जो भी विरोध करेगा जो भी किसानों को संपन्न बनाएगा जो भी गरीबों को संपन्न बनाएगा निश्चित ही हो सकता से जाएगा यह देश में होता है होता रहा है होते रहेगा इसलिए किसानों को कोई भी छूट नहीं मिलने वाली यह आप याद रख लीजिए

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