गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

आंदोलन से उपजे सवाल

 

मोदी सरकार सत्ता में आते के लिए जब किसानों की आय 2022 तक दो गुनी करने का दावा कर रही थी, तब उसी समय कार्पोरेट की आय कई गुना करने की नीति पर काम चल रहा था, यही वजह है कि इस कानून के आने के पहले ही एक तरफ जहां अडानी पूरे देश में गोदाम बनाने में जुट गया था तो अंबानी के द्वारा शहर दर शहर रिटेल शॉप खोल रहा था।

सवाल यह नहीं है कि अडानी-अंबानी क्या कर रहे हैं, सवाल यह है कि सरकार की मंशा क्या सचमुच किसानों की आय दो गुनी करने की है? यह सवाल इसलिए भी उठाये जा रहे हैं क्योंकि किसानों ने सरकार के हर प्रस्ताव को नकार दिया है और तो और कानून को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए है।

आंदोलन का रुख क्या होगा? क्या आंदोलन दिल्ली बार्डर पर ही सिमट कर रह जायेगा? या इसका विस्तार देशभर में फैलेगा? ये तमाम सवाल इसलिए गैर जरूरी है क्योंकि किसान कड़कड़ाती ठंड में भी एक पग पीछे हटने तैयार नहीं है ऐसे में आंदोलन का असर देश भर में होने लगा है।

क्या बगैर समर्थन मूल्य पर खरीदी से किसानों की आय दो गुना हो सकती है, बिल्कुल नहीं हो सकती इसलिए सरकार यदि किसानों की आमदनी बढ़ाना चाहती है तो वह समर्थन मूल्य से कम खरीदी पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाती? इस पर कानून बना दे कि समर्थन मूल्य के नीचे खरीदी पर जेल होगी? किसानों का दावा है कि सिर्फ इस एक कानून से न केवल किसानों की हालत सुधर जायेगी बल्कि आमदनी भी बढ़ जाएगी।

लेकिन मोदी सत्ता जिस तरह से तीनों कानून को लेकर अड़ी हुई है वह उसकी नियत ही नहीं अहंकार को भी प्रदर्शित करता है। क्योंकि चुनाव जीतने में माहिर हो चुकी इस सत्ता को इस बात की परवाह ही नहीं है कि विरोध कितना जायज है। इसलिए वह आंदोलन को तोडऩे हर संभव कोशिश में लगी है।

आंदोलन के दौरान एक तरफ जब किसान चर्चा कर रहे थे तो दूसरी तरफ सत्ता इस कानून को सही बताने में लगी रही ऐसे में चर्चा का नतीजा क्या होना है स्पष्ट था।

अब भी सत्ता और उसकी पूरी टीम कानून को जायज ठहराने में लगी है जबकि सच तो यह है कि इस कानून से केवल कार्पोरेट की आय बढऩी है। आंदोलन को तोडऩे की साजिश पर भी सवाल उठने लगे है ऐसे में आंदोलन का विस्तार देशभर में होने लगा है।

कल ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दो टूक कह दिया है कि बगैर एमएसपी के किसानों की आय दो गुना हो ही नहीं सकती। भूपेश बघेल किसान हैं वे किसानों का दर्द समझते हैं इसलिए वे जानते हैं कि किसान किस तरह से अपनी उपज बेचने मजबूर होते हैं।

छत्तीसगढ़ में एक कहावत है करम फूटहा खेती करय, अकाल पडय़ नहीं त भाव गिरय। इस कहावत को भूपेश सरकार ने तोडऩे की कोशिश की है। मोदी सत्ता भी इस मॉडल को अपना ले।

2 टिप्‍पणियां:

  1. कौशल भैया किसान कभी भी सत्ता के केंद्र में या उसके आसपास कभी भी नहीं रहा यदि कोई किसानों का भला करेगा तो उसको उद्योग पतियों का गुस्सा तो सहना पड़ेगा किसान के बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़े जाएंगे किसान के बच्चे अच्छे कपड़े पहन जाएंगे किसान के बच्चे यदि बड़ी गाड़ियों में घूमेंगे बड़ी कारों में घूमेंगे तो किसान की दिन ही निवेश दिखेगी नहीं और 3 महीने में दिखेगी नहीं तो किसान कैसे मानेंगे क्योंकि किसान होना मतलब दीन होना है। याद करें 2 बीघा जमीन का किसान याद करें मदर इंडिया का किसान इससे अलग यदि कोई उनकी छवि होगी तो शिकारी नहीं होगी हमारे कुलीन वर्ग को इसलिए यह सब तमाशे हैं और वर्तमान सरकार जो है वह किसकी है किसके लिए काम कर रही है किसके चार्टर्ड प्लेन में घूमती है किसके सूट बूट पहनती है यह सब दुनिया जानती है पर सवाल यह है कि एक तरीका होता है चुनाव जीतने का जो इन ने सीख लिया है isliye Sab sahi hai chalta hai

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  2. आपके भोलेपन पर निसार जाने का मन होता है आपने कितने भोलेपन से कहा कि जब सरकार किसानों की आय को दोगुनी कर रही थी तब ऐसा लगता है कि कॉरपोरेट किया है कई गुनी करने के काम कर रही थी और एक प्रश्नवाचक चिन्ह भी लगाया है आप भी जानते हो हम भी जानते हैं दुनिया भी जानती है कि सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से खुशबू आ नहीं सकती कागज के फूलों से भारत की सभी सरकारें जो है भारत की सभी पार्टी है जो है यह सब कागज के फूल हैं यह सब लोकतंत्र के नाम पर मेरा आपका हम सबका बहुत मजाक उड़ाते हैं और मजे की बात यह है कि हम भी खुश रहते हैं इस बार को जानते हुए की हमारा मजाक उड़ाया जा रहा है इसे कहते हैं ना झूठ बोलना पाप है पर यदि बोलने वाला जानता है कि वह झूठ बोल रहा है और सुनने वाला जानता है कि बोलने वाला झूठ बोल रहा है तो फिर कोई बात नहीं होता इसलिए दिल बहलाने को कौशल भैया ख्याल अच्छा है

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