कृषि कानून को लेकर सरकार और किसानों के बीच सातवें दौर की बैठक का जो नतीजा आया है वह पहले से तय था। क्योंकि सरकार न कृषि कानून को वापस लेने तैयार है और न ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही कानून बनाने तैयार है। मोदी सत्ता की मंशा स्पष्ट है इसके बावजूद जिन लोगों को लगता है कि तीनों कानून सही है तो वे जान ले कि यदि कानून सही होते तो सरकार स्वयं संशोधन की बात नहीं करती?
सरकार के द्वारा संशोधन की बात करना ही बताता है कि ये तीनों कानून किसानों के लिए नहीं कार्पोरेट जगत के लिए बनाये गए हैं। ऐसे में सरकार केवल वही कर रही है जिससे आंदोलनकारी थक कर वापस चला जाए और चुनाव के समय पूंजी और हिन्दू मुस्लिम के दम पर सत्ता हासिल तो हो ही जायेगी?
सरकार की इस रणनीति को किसान भी समझने लगे है। मोदी सत्ता के आने के बाद जिस तरह से एफसीआई को दिवालिया करने की कोशिश की गई है यह किसी से छिपा नहीं है। एक तरफ एफसीआई को दिवालिया घोषित कर दी जायेगी और दूसरी तरफ इन तीनों कानून से कार्पोरेट जगत को मनमानी की छूट मिल जायेगी।
यह सब कोई जानता है कि व्यापार में मुनाफा ही ईमानदारी है ऐसे में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कौन व्यापारी कहां उपज खरीदता है यह सब जानते हैं फिर भी खरीदी और स्टॉक को लेकर इस तरह का कानून बनाना बेईमानी के अलावा और कुछ नहीं है।
इसलिए जब आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करना बाजार में लूट की छूट देना है। लेकिन न सत्ता इसे स्वीकार करेगी और जब सत्ता स्वीकार नहीं करेगी तो हिन्दू-मुस्लिम के जहर से जहरीले हो चुके अंधभक्त कब इसे स्वीकार करेंगे।
इसी तरह दूसरा कानून कान्टेक्ट खेती का है। इसमें भी इतनी विसंगति है जो सीधे-सीधे व्यापारियों को ही फायदा पहुंचायेंगे।
हमने कल ही इसी जगह पर नगरनार संयंत्र को लेकर केन्द्र सरकार की नियत पर सवाल उठाये थे कि किस तरह सरकार किसानों की जमीन को अधिग्रहण कर पिछले दरवाजे से पूंजीपतियों की मदद करने आमदा है।
कल की बैठक को लेकर जो खबरें छनकर आ रही हैं उस पर वीरेन्द्र भाटिया लिखते हैं ये आंदोलन तीस दिन और चल गया तो न मोदी का एजेंडा चलेगा न आरएसएस का खेल। क्योंकि यह आंदोलन भाईचारा का सबसे बड़ा मिसाल है और नफरत की जितनी भी पढ़ाई कराई गई है वह सब खत्म हो जायेगी।
30 दिसम्बर की बैठक में मन्त्री जी ने किसान संगठनो से कहा कि आपने हमारा बहुत नुकसान कर दिया है। इस वाक्य के बाद मीटिंग में तल्खी आ गयी और काफ़ी देर तक गतिरोध बना रहा। गोकि सरकार का नुकसान 26 मौतों से ज्यादा है, गोकी 33 दिन से घर से दूर सड़क पर पड़े किसान देश की सरकार के लिए कोई मायने नही रखते। गोकी किसानों का करोड़ो रुपया जो आंदोलन पर लग रहा है और करोड़ो का उनका पीछे नुकसान हो रहा है उसकी कोई गणना सरकार की इस नुकसान की गणना में नही है।
किसान आंदोलन से सरकार बता रही है कि उनका ट्रांसपोर्ट ठप्प है, दिल्ली के आसपास की फैक्टरियाँ बन्द हैं, रोजगार ठप्प है आदि। क्या सच मे यह सरकार इन चीजों से चिंतित होती है? जवाब है कदापि नही। नोटबन्दी और लोकबंदी वाली सरकार पूरा देश बन्द करके भी किसी बन्द होने की परवाह नही करती। सरकार की चिंता दरअसल दूसरे नुक्सान की है।
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