शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

नववर्ष का रंग!


वर्तमान में तय किये

जा रहे हैं जो रंग

बचपन में समझे अर्थों

से भिन्न है क्यों रंग

चाहता रहा फिजा में

बिखर जाये हर रंग

लेकिन बवाल के डर से

सिमट रहे हैं रंग

समय बदल रहा

रंगों की परिभाषा

और हम बेबस देख

रहे हैं आशा-निराशा

कोई कहता है ये नववर्ष

हमारा नहीं है

कोई कहता है ये रंग

तुम्हारा नहीं है

रंगों के इस दिगभ्रमित

जंाल में

रंगों को ही धूमिल

कर दिया है

और सतरंगी इन्द्रधनुष

की सत्यता पर

कोई नहीं बोलता

सबको चिंता है अपने

रंग को चटख करने की

गाढ़ा होता रंग

गहरा काला होता जा

रहा है

पर सत्ता के

लिए जरूरी है

रंगों का गहरा और काला

होना

खुद के रंग को चटखाने

की कोशिश में

बदरंग होते रंगों की

ओर किसका ध्यान है

जीवन में रंग आते

जाते रहेंगे

पर रंगों का जीवन

में ठहरना उचित नहीं।

किसी एक रंग का गुलाम

होना खुद को मारना है।

हर रंग को जो पकडऩे

की कोशिश करता है

वही जीवन ही नहीं

समाज में रंग भरता है

जो रंग भटकाने

निकल पड़े है

वह नफरत की दीवार

खड़ी करता है

और फिर आदमी

हो जाता है गुलाम

इसलिए मुझे सभी रंग

पसंद है

क्योंकि मैंने देश की

आजादी से जोड़

रखा है रंगों को।

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