किसान आंदोलन को लेकर सरकार के साथ अगली बैठक की तारीख भले ही 15 जनवरी बताई जा रही हो लेकिन सच तो यही है कि अब देश को उस 26 जनवरी का इंतजार करना चाहिए जिस दिन किसान राजपथ पर होंगे।
जिस तरह से 8 जनवरी की बैठक का नतीजा कुछ नहीं निकला और किसानों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से इंकार कर दिया उससे एक बात तो साफ है कि किसान कृषि बिल को वापस लिये बिना मानने वाले नहीं है और न ही उन्हें न्यायालय पर भी वर्तमान दौर में भरोसा रह गया है या यह कहे कि न्यायालयीन व्यवस्था पर भी इस सरकार के रहते बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा हो गया है।
दरअसल झूठ और सिर्फ झूठ बोलकर सत्ता हासिल करने और नफरत की राजनीति के बीच जब देश का प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का ध्यान सरकार चलाने की बजाय पार्टी को जीताने में ज्यादा रूचि लेने लगे तो संवैधानिक संस्थाओं को राजनैतिक होने से कैसे रोका जा सकता है और न ही सत्ता को मनमर्जी करने से ही कोई रोक सकता है।
बीते 6 सालों में मोदी सत्ता ने देश की हालत को जिस तरह से बनाया है उसके बाद विरोध का मतलब तब और कुछ नहीं रह जाता जब वह चुनाव दर चुनाव जीत ही रहा है। ऐसे में 70 के दशक को याद करना होगा जब आंदोलनों ने तब के विरोध को दबाने आपातकाल का सहारा लेते हुए विरोधियों को जेलों में ढूंस दिया था। और तब विरोधियों ने चुनावी राजनीति का हिस्सा बन सत्ता को चुनौती दी थी। इसी तरह से आंदोलन की वजह को जब सत्ता ने गलत करार दिया था तब आम आदमी पार्टी का उदय हुआ था।
इसका मतलब क्या वर्तमान में भी इसी तरह के हालात बनने लगे हैं। आप भले ही इससे सहमत न हो लेकिन सच तो यही है कि जिस तरह से किसान आंदोलन को लेकर सरकार ने अडिय़ल रूख अख्तियार किया है उसके बाद जय किसान- टैक्टर निशान के हालात बनते जा रहे हैं।
जिन लोगों को अब भी लगता है कि किसान आंदोलन गलत है वे जान ले कि पिछले 6 साल में सत्ता ने देश का वह हाल कर दिया है कि उसके लिए कृषि बिल को वापस लेने का मतलब आर्थिक बदहाली की ओर एक कदम और बढ़ाना रह गया है। कृषि बिल वापस होता है तो सत्ता की रईसी पर असर पड़ेगा और नहीं लेती है तो किसान मर जायेंगे।
आखिर इस हालात के लिए जिम्मेदार कौन है। ऐसे में यदि जिन लोगों को लगता है कि 15 जनवरी को सब कुछ ठीक हो जायेगा उन्हें 15 नहीं 26 जनवरी का इंतजार करना चाहिए क्योंकि किसानों ने यदि यह सब तय कर लिया है और सत्ता अड़ी हुई है तो जो कुछ 26 जनवरी को होगा वह इस देश के इतिहास में दर्ज होने वाला है।
किस पर भरोसा करें और किस पर नहीं, बड़ा मुश्किल है आज के हालातों को देखकर
जवाब देंहटाएंअब और ज्यादा देर हुई तो परिणाम दूरगामी देखने को मिलेंगे, जो देश के लिए किसी भी दृष्टिकोण से अच्छे नहीं हो सकेंगे