हमने पहले ही बताया था कि किस तरह से मोदी सरकार की लापरवाही ने इस देश में तबाही और नरसंहार मचाई थी और लापरवाही की हद पार हो गई कब कहीं संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सरकार पर निशाना साधा। पहली लहर की लापरवाही से सबक सिखने की बजाय मोदी सत्ता ने तो दूसरी लहर की चेतावनी के बाद तो लापरवाही की सारी हदें पार कर दी।
पहली लहर को रोकने राज्य सरकारों ने खूब मेहनत की लेकिन कोरोना का प्रभाव थोड़ा सा ही कम हुआ कि प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ने न केवल अपनी पीठ थपथपाई बल्कि जनवरी में कोरोना ने जंग जीत लेने का अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी ऐलान कर दिया। दुनियाभर के एक्सपर्ट का मजाक भी उड़ाया। यही नहीं एक्सपर्ट कमेटी की न बैठक बुलाई गई और न ही बढ़ते केस पर प्रोटोकॉल में दी महिनों बदलाव किया गया। एक्सपर्ट कह रहे थे दूसरी लहर में ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ेगी लेकिन मोदी सरकार ने 9 मिलियन टन ऑक्सीजन विदेशों को बेच दी। एक्सपर्ट कह रहे थे दूसरी लहर भयावह होगी लेकिन कुंभ के आयोजन की अनुमति दी जाने लगी। बंगाल चुनाव में रैलियों के लिए सब कुछ खोल दिया। जबकि पूरे देश में कोरोना का कहर त्राहिमाम् मचा रहा था, कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल मोदी के बंगाल सत्ता का लोभ पर सवाल उठा रहे थे लेकिन पूरी भाजपा अपने विरोधियों का उपहास उड़ाने में लगी रही।
इस लापरवाही का भयानक परिणाम सबके सामने आने लगा। कोरोना से ज्यादा आक्सीजन और अस्पताल की बेइंतजामी में लोग मरने लगे। और सत्ता में बैठे लोग गौमूत्र, गोबर, कोरोनिल, हवन और पता नहीं क्या-क्या बोलने लगे। जबकि सरकार कुंभ के आयोजन को मना कर सकती थी, बंगाल चुनाव में प्रत्यक्ष रैली और प्रचार के लिए वर्चुअल या दूसरा तरीका अपना सकती थी, लेकिन सत्ता का दंभ और लोभ कब किसका सुनता है दंभ और लोभ हमेशा ही तबाही मचाता है लेकिन सत्ता आज भी यह मानने को तैयार नहीं है कि उसकी लापरवाही की वजह से इस देश में तबाही और नरसंहार का मंजर हुआ।
विदेशी मीडिया से लेकर अब तक संघ प्रमुख भी मोदी सरकार की आलोचना कर चुके है, न्यायालय ने तो जिस तरह से लानत भेजी वह डूब मरने वाली है लेकिन जब दंभ और लोभ हावी हो तो शरम कहां बचता है। कुंभ का दुष्परिणाम गंगा में बहती लाशों के रुप में सामने आई, मौत के तमाम आंकड़े छुपाने के बाद भी हम दुनिया के नक्शे में काला धब्बा की तरह दिखाई देने लगे हैं, कल्पना कीजिए की यदि आंकड़े न छुपाये तो दुनिया क्या कहेगी। हालांकि कई विशेषज्ञ अब तो मौत के आंकड़ों को दस लाख के पार बता रही है लेकिन सत्ता के पास कब शर्म रही गई।
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