एलोपैथी और आयुर्वेद को लेकर जिस तरह से लड़ाई छिड़ी है उससे हैरान होने की जरूरत नहीं है, असल में यह लड़ाई धंधे में वर्चस्व की लड़ाई है और कोरोना काल में बाबा रामदेव की कंपनी को हुए घाटे ने इस लड़ाई को तेज कर दिया है।
यह लड़ाई झूठ-नफरत, अफवाह और कुंठित राष्ट्रवाद की लड़ाई भी कही जा सकती है। क्योंकि जब आप किसी एक से बेहद नफरत करते रहते हैं और लगातार नफरत करते रहते हैं तो यह आपकी आदतों में शुमार हो जाता है फिर यदि आप नफरत के लिए नये नये लक्ष्य ढूंढते हैं। बाबा रामदेव ने एलोपैथी चिकित्सा पद्धति को जिस तरह से कोसा है, वह हैरान कर देने वाला है, और यह हैरानी तब और बढ़ जाती है जब वे अपनी बीमारी का ईलाज एलोपैथी से करवाते है।
इसका मतलब क्या है? इस लड़ाई की प्रमुख रुप से दो ही वजह है पहली वजह अपना बिजनेस चमकाना है तो दूसरी वजह नफरत फैलाना है। दोनों ही कारण बेहद स्पष्ट है और यह सब सरकार के संरक्षण में हो रहा है कहा जाय तो गलत नहीं है। एक तरफ जब पूरी दुनिया लाईलाज कोरोना महामारी से जूझ रही हो लाशें लगातार गिर रही हो तब चिकित्सा पद्धति को लेकर विवाद क्या लोगों का ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है या अपनी नफरत की रोटी को सेंकने का उपक्रम मात्र है।
कहना कठिन है, यह सच है कि आयुर्वेद पद्धति विशुद्ध रुप से भारतीय चिकित्सा पद्धति है और अनेक मौकों पर यह कारगर भी रही है, और यह भी सच है कि एलोपैथी ने जमकर लूट मचाई है और यह एक ढंग से पैसों वालों के लिए है। लेकिन तमाम दोष के बाद भी एलोपैथी को सिरे से नकारने का मतलब क्या है। हालांकि यह खेल मोदी सत्ता के आने के बाद ही ज्यादा खेला गया क्योंकि यह धर्म की राजनीति करने वालों के लिए सुविधा देता है। इसलिए कोरोना की लड़ाई में भाजपा खेमे से जुड़े लोगों के गोबर गौमूत्र से लेकर हवन, भाभी जी पापड़, कोरोनिल की आवाजें आती रही है।
ऐसे में बाबा रामदेव का इस लड़ाई में कूदने का मतलब जो हनीं समझ रहे हैं वह भी एक तरह की रणनीति है। कोरोना के मामले ही नहीं दूसरे सभी मामलों में बुरी तरह असफल हो चुकी मोदी सत्ता में असल मुद्दों से ध्यान भटकाने का खेल नया नहीं है। तबलीकी जमात से लेकर फर्जी टूलकिट के ऐसे कई मामले है जो मोदी सत्ता की मंशा को एक्सपोज किया है। अब देखना है कि बाबा रामदेव के बिगड़े बोल का क्या असर होता है।
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