प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सात साल का सफर पूरा कर लिया है लेकिन यकीन मानिये इन सात सालों में देश का सत्तर हाल हो गया है। विफलताओं का सारा रिकार्ड इन सात सालों में बना है लेकिन हिन्दू-मुस्लिम और राष्ट्रवाद का खेल अब भी जारी है और यही हाल रहा तो देश में आम नागरिकों का जीवन न केवल किसी बर्बाद हो चुके देश की तरह होगा, नारकीय होगा?
ये दावा हम उन आकड़ों के बल पर कर रहे हैं जो मोदी सत्ता की विफलता की कहानी तो कह रही है बल्कि गरीबों की संख्या में हो रही लगातार बढ़ोत्तरी है। मोदी सरकार जब 2014 में सत्ता में पहली बार आई तब वह अच्छे दिन आयेंगे के जुमले को लेकर आई थी, लोगों को इस सत्ता से उम्मीद भी बहुत रही लेकिन इन सात सालों में देश ने क्या खोया और क्या पाया इसकी समीक्षा नहीं की गई तो यह पता ही नहीं चलेगा कि यह देश किस तरह दुनिया के कमजोर देशों से भी नीचे जा रहा है।
आप बैकों के 8 लाख करोड़ रुपए के राइट ऑफ में गिनते जाईये। हालांकि मोदी समर्थक इस राइट ऑफ यानी कर्ज माफी को कहते हैं कि यह कर्ज माफी उन लोगों का हुआ है जो हिन्दू है और मोदी के रहते हिन्दुओं का कर्ज माफ नहीं होगा तो किसका होगा। हालांकि उनके पास कर्ज में डूबे किसानों की मौत मायने नहीं रखते क्योंकि किसान चंदा नहीं देते।
दूसरा सवाल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेचने का है। सत्तर साल में किसी प्रधानमंत्री ने 19 कंपनियों को नहीं बेचा। इसी तरह 70 साल में कोई भी प्रधानमंत्री ने रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड का उपयोग-दुरुपयोग इस स्तर पर कभी नहीं किया। सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वे काले धन को विदेशों से लाने प्रतिबद्ध हैं और इसके लिए जरूरी कानून भी बनाना पड़ा तो वह भी बनायेंगे लेकिन इस बारे में सवाल पूछना ही मना है।
देश में हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने के वादे का सच यह है कि केन्द्र सरकार ने सात साल में केवल 9 लाख लोगों को नौकरी दी और यदि राज्यों को भी जोड़ दें तो इन सात सालों में केवल 48 लाख लोगों को ही नौकरी मिल पाई है। जबकि नौकरी से हाथ धोने वालों की संख्या दो करोड़ से अधिक बताई जा रही है। महंगाई किसी से छिपी नहीं है। पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के अलावा रोजमर्रा के खानपान में भी दस फीसदी से अधिक महंगाई बढ़ी है।
नोटबंदी का सच तो पूरी दुनिया को मालूम है कि किस तरह से डेढ़ सौ लोग सड़कों में लाईन लगाकर मर गए। जबकि जीएसटी की विसंगति ने छोटे व्यापारियों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। आगे विफलता गिनाने से पहले जिसे वे सरकार की सफलता मानते है उस धारा 370 को हटाने का कोई फायदा आम लोगों को या देश को हुआ हो यह कहना मुश्किल है।
तब मध्यप्रदेश की सत्ता की चाह और नमस्ते ट्रम्प की लापरवाही से देश में कोरोना से त्राहिमाम् भी कोई कैसे छुपा सकता है। नासमझी में किये गये लॉकडाउन के चलते मजदूरों की सड़क में मरने की मजबूरी भी कोई कैसे भूल सकता है। सच तो यह है कि हम गरीबी भूखमरी तक में पाक और कल के बंग्लादेश से पीछे है। तब सत्ता की कौन सी उपलब्धि को सच माना जाए।
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