गलत आदमी भी कितना सही, और मूर्ख आदमी भी कितना ताकतवर हो सकता है इसका अंदाजा किसे था, लेकिन अच्छे दिन की लालच ने सब कुछ उलट दिया था। नरसंहार के इस भयावह दौर के बाद भी यदि सत्ता की जिम्मेदारी से इतर लोग धर्म और राष्ट्रवाद के चक्कर में पड़े थे। तो इसका मतलब साफ है कि पिछले कई दशकों से नफरत का जो बीज बोया जा रहा था वह फलने फूलने लगा है।
इतिहास गवाह है कि जिस भी राष्ट्र ने धर्म और राष्ट्रवाद को ज्यादा महत्व दिया वे न केवल पिछड़ गये बल्कि बर्बादी की राह को अग्रसर हुए। ऐसे में कोरोना की महामारी ने जो तांडव मचाया है उसे दूसरे देशों की तुलना करना सिर्फ लोगों को भ्रम में डालना है। हैरानी तो इस बात की है कि सत्ता अब भी लोगों की भावनाओं के साथ खेलने में लगी है, देश का आर्थिक ढांचा पूरी तरह से गड़बड़ा गया है। और आर्थिक ढांचे के गड़बड़ाने की वजह से महंगाई और बेरोजगारी अपने चरम पर है। लोगों का जीना दूभर होता जा रहा है लेकिन सत्ता को अपनी रईसी बरकरार रखने आज भी सेन्ट्रल विस्टा की जरूरत हैं और अपनी छवि चमकाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम ही चाहिए।
यह ठीक है कि कोरोना वैश्विक महामारी है लेकिन वैश्विक चेतावनी को नजर अंदाज करना, क्या सत्ता की लापरवाही नहीं है, कोरोना से मौत के आंकड़े को छुपाने की कोशिश क्यों की गई। क्या सरकार के पास इस बात का जवाब है कि इस देश में कोरोना की बदइंजामी के चलते आक्सीजन के अभाव में कितने लोगों की मौत हुई, दवाई के अभाव में कितने लोग मर गए, सरकार की नासमझी के लाकडाउन के चलते कितने मजदूर सड़कों में मर गए, भूख और आर्थिक बदहाली के चलते कितने परिवार बरबार हो गए, कितने बच्चे अनाथ हो गए और किसी भी महामारी या आपदा से निपटने के लिए क्या योजना है?
हम जब कहते हैं कि गलत आदमी भी कितना सही, और मूर्ख आदमी भी कितना ताकतवर हो सकता है तो इसका मतलब साफ है कि भावनाएं और आस्था के विभत्स खेल ने देश में असुर प्रवृत्ति को ही बढ़ावा दिया है। जिसका दुष्परिणाम नरसंहार के रुप में देश भुगत रहा है। क्या इस देश की सत्ता की आंख तब भी नहीं खुलती है जब हमारे बाद पैदा हुआ बंग्लादेश हमें हर मामले में पीछे छोड़ देता है। भूखमरी और खुशहाली के इंडेक्स में हम यदि पाकिस्तान से भी पीछे चले जाते हैं तो फिर जीत किसी हो रही है।
और यह सब सत्ता की नासमझी की वजह से हो रही है क्योंकि सत्ता को आज भी इस बात की समझ नहीं है कि सरदार पटेल की बड़ी मूर्ति बना देने से नेहरु का कद छोटा नहीं हो जाता। आधुनिक भारत के निर्माण में जिन लोगों ने अपना सबकुछ होम कर दिया उनकी आलोचना ही नासमझी और मूर्खता है तब अच्छे दिन कैसे आ सकता है। चुनाव जीतना अलग बात और देश चलाना बिल्कुल अलग बात है साहेब।
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