ये इतना बड़ा सचा है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि कोई तीन दशक से बेवकूफ बन रहे हैं, ठगे जा रहे है और कोई इन्हें इन तीन दशकों से धोखा दे रहे हैं। हम बात यहां कश्मीरी पंडितों का कर रहे हैं जिनका राजनैतिक शोषण की एक ऐसी कहानी है जो दुनिया में अपनी तरह का अजूबा मामला है। और कहा जाए कि कश्मीरी पंडित अब भी धोखा खाने तैयार है तो गलत नहीं होगा।
यही वजह है कि जब कल कश्मीर को लेकर बैठक हो रही थी तब भी कश्मीरी पंडितों का कोई प्रतिनिधि नहीं था और न ही बैठक में सरकार ने कश्मीरी पंडितों के पुर्नवास के लिए कोई योजना का जिक्र भी नहीं किया लेकिन यदि कश्मीरी पंडितों से पूछा जाए तो वह अब भी भाजपा को ही अपना रहनुमा बतायेंगे तो हैरान होने की बात नहीं है, क्योंकि भाजपा ने कश्मीरी पंडितों के अत्याचार का मुद्दा 1991 से लगातार देश-विदेश के हर मंच से किया है। अपने हर चुनावी घोषणा पत्र में भाजपा ने कश्मीरी पंडितों के पुर्नवास का वादा किया है नौकरी से लेकर दूसरा पैकेज का वादा किया जाता रहा है। लेकिन साढ़े 12 साल की सत्ता में भाजपा ने सिवाय राजनैतिक शोषणा के कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ भी नहीं किया इसके बाद भी यदि कश्मीरी पंडितों को भाजपा से उम्मीद है तो इसका मतलब क्या हो सकता है।
कश्मीरी पंडितों के विस्थापन का इतिहास सिर्फ 31 साल पुराना है और तब केन्द्र में भाजपा के समर्थन में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी रातों रात एक लाख से अधिक कश्मीरी पंडितों को अपना सब कुछ छोड़़कर भागना पड़ा लेकिन भाजपा ने सत्ता नहीं छोड़ी, तब कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था और राज्यपाल जगमोहन थे जो भाजपा के पसंद के थे। इसके बाद भी कश्मीरी पंडितों के साथ अत्याचार होते रहा, लेकिन भाजपा तब कुछ नहीं बोली।
हैरानी की बात तो यह है कि इसके बाद जब सत्ता चली गई तब अचानक 1991 में भाजपा कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार का मुद्दा अपनी चुनावी घोषणा पत्र में लेकर आयी और चूंकि यह उसके हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति को सूट करती है इसलिए यह मुद्दा देश के हर राज्य में गूंजता रहा और कश्मीरी पंडित यह भूल गए कि यह सब अत्याचार किसके राज में हुआ तब से आज तक भाजपा कश्मीरी पंडितों का मुद्दा उठाते रही और कश्मीरी पंडित भाजपा को अपना रहनुमा मानते रहे।
2014 के बाद मोदी सत्ता ने भी कश्मीर पंडितों का मुद्दा उठाते रही लेकिन आप हैरान हो जायेंगे कि धारा 370 हटने के बाद भी भाजपा ने कश्मीरी पंडितों के लिए वादा के अलावा कुछ नहीं किया उसने कश्मीरी पंडितों के लिए उतनी भी नौकरी नहीं दी जितनी मनमोहन सरकार ने दी। मोदी सत्ता के आने के बाद भी कश्मीर में हालात नहीं सुधरे है और पिछले साल जिस तरह से घाटी में कश्मीर पंडितों की हत्या हुई है वह हैरान कर देने वाली है क्योंकि कश्मीर की पूरी सत्ता मोदी सत्ता के पास ही है।
तब सवाल यही उठता है कि क्या कश्मीरी पंडितों का मुद्दा भाजपा के लिए चुनावी फायदे का जरिया है। कश्मीरी पंडितों का राग अलाप वह पूरे देश में हिन्दू वोटों का ध्र्वीकरण करती है। सवाल तो कई है लेकिन देखना है कि अब कश्मीरी पंडितों की स्थिति क्या बनती है वे क्या सोचते है या क्या करते हैं। क्या वे अब भी खामोशी से अपनी पहचान के लिए तरसते रहेंगे!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें