प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच सत्ता संघर्ष किसी से छिपा नहीं है लेकिन अब कई मामलों में यह खुलकर सामने आने लगा है तो इसकी वजह ढाई-ढाई साल के फार्मूले का सच है या खुद को बीस साबित करने की रणनीति का हिस्सा है यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा बढ़ाने को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्णय पर जिस तरह से उनके ही स्वास्थ्य मंत्री टीएस बाबा ने असहमति जताते हुए सवाल खड़ा किया है वह किस बात का संकेत हैं।
हालांकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पास जिस तरह का बहुमत है उसने सारे अंदेशे को विराम दे दिया है लेकिन मुख्यमंत्री के पास जिस तरह का बहुमत है उसने सारे अंदेशे को विराम दे दिया है लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लेकर कुछ मंत्रियों की नाराजगी भी खुलकर सामने आने लगी है। मुख्यमंत्री बघेल पर जिस तरह से सबकुछ अपनी मर्जी चलाने का आरोप बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे मंत्रियों के बीच भी तल्खी बढऩे लगी है। यही नहीं संगठन के लोगों को सत्ता में भागीदारी देने में हो रहे विलंब की वजह से भी मुख्यमंत्री के प्रति आक्रोश अब कांग्रेस के भीतर साफ तौर पर महसूस की जा सकती है।
ढाई-ढाई साल के कथित फार्मूले को लेकर जो बवाल काटे जा रहे थे वह भले ही टांय-टांय फिस्स हो गया हो लेकिन जिस तरह से समय-समय पर टीएस बाबा, मोहम्मद अकबर, रुद्र गुरु सहित कई मंत्री और विधायकों का रुख प्रकट होने लगा है उसके बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि आने वाला ढाई साल कैसा होगा।
सत्ता और संगठन में भले ही मतभेद सामने नहीं आया है लेकिन लाल बत्ती की चाह में घेरेबंदी और देर होने की वजह से सत्ता के प्रति नाराजगी भी अब जोर पकडऩे लगा है। हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने सत्ता के कार्यों पर संतोष भी जताया है लेकिन ये कौन नहीं जानता कि मोहन मरकाम पिछले दो साल से किस तरह से कार्य करते रहे हैं। और अब जब शराबबंदी से लेकर दूसरे वादों की बात हो या केन्द्र की मोदी सरकार की आलोचना की बात हो उनके तेवर का कहीं पता नहीं होता।
हैरानी की बात तो यह है कि संगठन से जुड़े लोगों की सत्ता में भागीदारी कब होगी इसका भी पता किसी को नहीं है। पिछले कई महीने से अब-तब की आस में बैठे कांग्रेसियों का सब्र भी जवाब देने लगा है जब सवाल यही है कि बघेल-बाबा के मतभेद की वजह से देर हो रही है या अकबर-रुद्रगुरु के तेवर की वजह से देर हो रही है। ऐसे में यदि संगठन कमजोर नेतृत्व के पास रहा तो सत्ता में बवाल उठना तय है और वर्तमान संगठन का हाल किसी से छिपा भी नहीं है।
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