छत्तीसगढ़ की बात -1
प्रदेश की सत्ता को बदले ढाई साल बीत गये लेकिन 'मोर रायपुरÓ का दुख यदि जस का तस मुंह चिढ़ा रहा हो तो फिर इसका मतलब क्या है? दरअसल सत्ता की अपनी सीमा है, उसकी अपनी प्राथमिकता है तब सवाल यही है कि क्या सत्ता बदलने से कुछ हो सकता है।
देश इन दिनों भाजपा के ध्यान भटकाने वाले मुद्दे में उलझा है। जनसंख्या नीति से लेकर हिन्दू मुस्लिम के भाजपाई खेल में आम लोगों की तकलीफें गुम हो जा रही है और लोग उफ भी नहीं कर पा रहे हैं तो उसकी राजनैतिक दलों की वह सफलता है जो युवाओं के गले में राजनीति का पट्टा दिखाई देने लगता है।
इस शहर ने राज्य बनने से पहले या युवाओं के राजनैतिक पट्टा पहनने से पहले आंदोलन का जो स्वरुप देखा है वह सिर्फ इतिहास की बात रह गई है, तब सवाल यही है कि क्या अव्यवस्था, महंगाई केवल राजनैतिक दलों के मुद्दे है? छात्र राजनीति के उस दौर में सिलाई की कीमत बढ़ जाने पर या सिनेमा टिकट की कीमत बढ़ जाने पर आंदोलन तोडफ़ोड़ और आगजनी तक पहुंच जाता था। निगम के जलकर बढ़ाने पर भी आंदोलन की उग्रता इस शहर ने देखा है। तब सवाल यही है कि क्या सिर्फ पट्टा पहन लेने मात्र से असल मुद्दे गायब हो जाते हैं तो यकीन मानिये राजनीतिक दलों ने बड़ी समझदारी से पट्टा पहनाकर लोगों के अधिकार छिन लिये है।
छात्र राजनीति को समाप्त करने की वजह से भी शायद यही रही कि वे जरूरी मुद्दे न उठाये, जेएनयू या दूसरे विश्वविद्यालय पर सरकारी हमले भी इसी राजनीति का हिस्सा रहा है, ताकि अपनी लूट को बेरोकटोक जारी रखा जा सके। हम बात छत्तीसगढ़ की राजधानी की कर रहे हैं। जहां की राजनीति ने लोगों को इतने आश्वासन दिये कि अब तो लोग इन आश्वासनों से पक गए हैं।
धूल और मच्छर तथा औद्योगिक प्रदूषण से त्रस्त इस शहर में राज्य बनने के बाद एक से एक धुरंधर महापौर तो दिये ही है, सत्ता में दमदार माने जाने वाले विधायकों की भी लंबी फेहरिश्त है, लेकिन 'मोर रायपुरÓ का दुख यदि जस का तस है तो इसकी वजह जननेताओं की प्राथमिकता है जो खुद को चमकाने की रूचि ज्यादा है। राजधानी बनने के पहले से ही रायपुर का नाम यदि महंगे शहरों में शुमार है तो इसका मतलब क्या है? खाना-पीना, तो यहां महंगा है ही ट्रैफिक सेंस भी बदत्तर है। अपराध के आकड़े भी बढ़ रहे हैं तो अवैध कालोनी भी बेहिसाब है, जुआ-सट्टा से लेकर शराब-शबाब के मामले भी आये दिन सुर्खियों में रहते हैं क्योंकि मोर रायपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी है।
ऐसे में चिकित्सा सेवा के नाम पर लूट और स्लाटर हाउस कहलाते अस्पताल की फेहरिश्त में कैसे कमी हो सकती है। चार-चार बडे सरकारी अस्पताल वाले इस शहर में यदि निजी अस्पतालों में भीड़ अधिक है तो इसकी वजह सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था है। यदि मेडिकल कालेज अस्पताल में चार माह से हार्ट की सर्जरी बंद है तो क्या यह निजी अस्पतालों की लूट को बढ़ावा देने की नीति नहीं है। मोर रायपुर का सबसे बड़ा दुख सड़क जाम, नाली जाम, बेतरतीब कचरा भी है इसे हम फिर भी विस्तार देंगे। क्या है शारदा चौक चौड़ीकरण का सच?
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