सोमवार, 17 जून 2024

शारदा, तुम बहुत याद आओगे !

 शारदा, तुम बहुत याद आओगे !



पहली बार उससे मेरी मुलाकात बबलू (संजय शुग्ला) ने कराई थी, हंसता हुआ चेहरा, उस चेहरे पर जमाने की समझ और संघर्ष की माथे पर लकीर । और उसके बाद कब हम हो गये थे पता हो नहीं चला।  कैमरा उसने बाद में पकड़ा लेकिन जीवन को कैमरे की नजर से देखने का हूनर तो उसके • पास पहले से ही था।


क्या उसने हम तीन तिलगों से पहले जाने की सोच ली थी,कह नहीं सकता लेकिन दैनिक भास्कर की नौकरी छोड्‌ने के बाद वह बहुत कुछ कर लेना चाहता था, अपने नहीं हम सबके लिए। लेकिन अचानक वह हम सबके बीच से चला गया |

बड़ा  मुन्नु यही तो नाम था उसका और वह यहाँ ही नहीं कहां हम सबने पहले जाकर बड़ा हो गया।

बड़ा मुन्नु यानी शार‌दा दत्त त्रिपाठी के अस्पताल में भर्ती  की खबर जब आई तो यह सोचा ही नहीं कि वह उसका अंतिम सफ़र का आख़री ठहराव है।

किसी की याद कितनी दूर तक स्मृति में पीछे की ओर जाती है, यह अहसास का नाम ही शारदा है।उसका साथ, उसका हँसाना , सब कुछ आँखों के सामने है, अरसा पहले अपने कहा था, नौकरी के चक्कर में बहुत कुछ छूटता जा रहा है। शायद हम पहले की तरह मिल नहीं पाते थे और यह अहसास उसे भी था।लेकिन  होठों पर मुस्कान, हाथों में कैमरा लिए शारदा को देखकर भी कोई नहीं कह सकता था कि वह भीतर ही भीतर टूट रहा है, कुछ या बहुत कुछ करने की चाह को मन में दबा रखा  है।

मुझे अब भी याद है अमृत संदेश में हम रिर्पोटिंग के लिए रवान (बलौदाबाजार) गये थे, सीमेंट कारख़ानों  की मनमानी की ऐसी तस्वीर उसने खिंच ली थी कि तस्वीर ही बोलने लगी थी, शब्द की ज़रूरत ही नहीं। ऐसी ही एक तस्वीर  शहर में हुत्तों के आतंक की उसने खिंची थी। जो उसने अपने  कैमरे से निकाले थे। सब आँखों के सामने तैरने लगे हैं।

कई बार तो तय करना मुश्किल होता था कि किस तस्वीर का इस्तेमाल खबर में करें।

भास्कर छोड़ने  के बाद उसने कहा था , वह प्रोफेशनल फोटोग्राफी करेगा। वह अपना मुक़ाम ख़ुद  हासिल करने का माद्‌दा रखता था । 

ऐसे में साहिर लुधियानवी का वह शेर खूब याद आता…

ले दे के अपने पास फक्त इक नज़र तो है !

क्यूँ देखें ज़िंदगी  को किसी की नजर से हम !!

हो सकता कि शार‌दा ने  मानवीय कमजोरियों को कभी न छुपाया हो, लेकिन कमजोरियों में भी प्रेम था, बिल्कुल निश्चल मित्र-प्रेम । कपट तो उसने कभी जाना ही नहीं और तकलीफों के दिनों में भी हसता रहा, बेहद, सहज, सरल रूप से मिलता, इसलिए भी वह हर किसी का अज़ीज़ हो जाता।

वह जब भी मिलता बाहे फैला देता, गले लगाने के लिए…

उस बाँह का अहसास अब भी अपनी पीठ पर महसूस कर सकता हूँ…



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