फ़कत् ला-ला ने कर
दिया बेड़ा-गर्क
महापौर से लेकर विधायक बनने का सपना संजोने वाले भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संजय श्रीवास्तव को तो पार्टी ने वह सब कुछ दिया जिसने वे लायक थे या नहीं उसे लेकर पार्टी के भीतर भी सवाल उठते रहे हैं।
एलआई सी एजेंट से राजनीति में आये संजय श्रीवास्तव भी राजीव अग्रवाल की तरह हर चुनाव में टिकिट की लाईन में लग जाते हैं, पार्षद हो या कोई भी चुनाव । कहा जाता है कि उन्हें टिकिट चाहिए। यही वजह है कि अब पार्टी के नेता भी उन्हें गंभीरता से नहीं लेते।
गौरी की सीढ़ी चढ़कर भजायुमों की राजनीति करते करते ला-ला वाले खेल खेलने लगे और उनके खेल की चर्चा तो इतनी है कि ख़ुद भाजपा के नेता भी उनके निचोड़ने वाले गुण से नहीं बच पाये हैं, शंकरनगर के एक कॉम्प्लेक्स वाले ज़मीन को लेकर पार्टी के नेताओ से विवाद की चर्चा तो इतना तूल पकड़ा था कि महापौर की टिकिट की ईच्छा चकवाचूर हो गया।
रमन सिंह के असली गृहमंत्री से संबंध बनाते बनते संबंध प्रसाद तक जा पहुंचा लेकिन ला-ला प्रेम के चलते विधानसमा की टिकिट से वंचित होना पड़ा।यानी जो इन्हें जान गया वह टिकिट कभी नहीं देगा।
और कहा जाता है कि रायपुर दक्षिण की सीट खाली होते ही एक बार फिर जीभ लपलपाने लगा है। लेकिन सवाल तो वही है कि टिकिट दिलायेगा कौन? क्योंकि सीढ़ी को ही तोड़ने में माहिर संजय श्रीवास्तव की यह आदतें छूटती नहीं। और छूटे भी कैसे, इंदौरी चटोरापन कभी छूटता है क्या ?
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