दिल्ली से भी छुट्टी...
यह तो बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाय की कहावत को ही चरितार्थ करती है वरना कोरबा की सीट से लोकसभा का चुनाव हारने के बाद भाजपा नेत्री सरोज पांडे की यह स्थिति कभी नहीं बनती कि उनकी दिल्ली में भी न केवल पूछ-परख कम हो जाए बल्कि बड़े नेता मिलने का समय ही न दे।
महापौर , विधायक से लेकर संसद तक के सफर में सरोज पाण्डे को खूब पापड़ बेलना पड़ा। पार्टी ने भी तब उनके जोश को देखते हुए खूब तवज्जो दी। रमन सिंह के विरोध के बावजूद सौदान सिंह से लेकर दिल्ली दरबार हो भाजपा आईटी सेल सब जगह उनकी खूब चली। और यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें राज्यसभा तक पहुंचा दिया।
मिलाई से राजनैतिक सफर शुरू करने वाली सरोज पाण्डे पहली बार चर्चा में आई, जब छिदवाड़ा में लोकसभा का उपचुनाव हुआ था। वहां उनकी प्रचार शैली के चलते ही वे बड़े नेताकों की नजर में आई, और प्रेमप्रकाश पाण्डे के टक्कर में खड़ी भी हो गई।
लेकिन कहा जाता है कि अपने इसी प्रचार शैली के चलते वे राज्यसभा भी पहुंच गई और जब दुर्ग से टिकिट नहीं मिला तो चुनाव लड़ने कोरबा जा पहुंची और यही धोखा खा गई क्योंकि उन्हें यहां रमन समर्थकों ने घेर लिया बल्कि उनकी शैली से डरे सत्ता ने ऐसा प्रचार किया कि वह चुनाव बुरी तरह हार गई। जीतने पर नौकर बना देने के प्रचार ने पुरानी याद ताजा कर दी।
इधर चुनाव हरवाने का मामला तूल पकड़ता उससे पहले दिल्ली से आने वाली खबर ने सरोज पांडे की मुसिबत बढ़ा दी।
कहा जाता है कि वे भागे-दौड़े दिल्ली तो पहुंच गई लेकिन उनकी बात सुनने की बात तो दूर उनसे मिलने का समय नहीं दिया गया।
अब चर्चा तो कई तरह की है और हम चर्चा में इस बात का हल्ला ज्यादा है कि अब दिल्ली को हारे हुए लोगों की जरूरत नही है।
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