आतंकवादी से खतरनाक है सड़कें
आतंकी सड़कों में पहचान की जद्दोजहद
एक शेर है ---
घर से निकलो तो पता जेब में रखकर निकलो।
हादसे चेहरों की पहचान मिटा देते हैं ।।
पहचान मिटने के गुनहगार तो हम सब हैं। सच को मानने का हौसला किसी के पास नहीं है। विकास की राह में कुछ ऐसा घालमेल हुआ है कि खिड़कियों को हमने खोलना बंद कर दिया है। रेल और हवाई जहाज और ६-८ लेन की सड़कों को देख हमने दुनिया नाप लेने का मन बना लिया है। परन्तु इन्ही सड़कों में अपनी पहचान गंवा रहे लोगों की तरफ मुंह मोड़ लिया है। चाँद और मंगल तक के सफर में हमने खूब सीने चौड़े किये हैं , परन्तु इसके प्रभाव की तहजीब हम आज भी नहीं सीख पा रहे हैं।
विकास की हमने नई परिभाषाएँ गढ़ ली है। एक तरफ पुराने को ढहाया जा रहा है,और दूसरी तरफ नए के जोश से हमारे होश गायब है। नई रफ़्तार के वाहनों का रेलमपेल हमने सड़कों पर तो उतार दी , सड़के भी चौड़ी कर दी , परन्तु इस रफ़्तार में पहचान खोने का भान ही नहीं रहा। हमने इस सवाल का उत्तर जानने की कोशिश ही नहीं की, कि रफ़्तार में पहचान कैसे बनाए रखे। चौड़ी सड़के , तेज रफ़्तार के इस विकास में हमें स्वयं की पहचान बनाए रखना कितना जरूरी है। यदि स्वयं की पहचान कायम नहीं रख पाए तो इन चौड़ी सड़कों का औचित्य ही क्या रह पाएगा।
नियम-कानून इसलिए बनाए जाते है,ताकि सब कुछ व्यवस्थित चले। समाज सुखी व् आनंद से रहे , हमने हजारों साल पहले एक यात्रा शुरू की थी। बच्चा पहले माडी के बल चलता है,फिर वह खड़ा होकर चलने की कोशिश करता है। इस कोशिश में वह माँ की ऊँगली का सहारा लेता है,फिर धीरे-धीरे वह चलता है,दौड़ता है। कुछ बड़े और कुछ स्वयं के तजुर्बों से वह सीखता है। वह दौड़ता है,परन्तु कितने लोग पूरा जीवन अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाते।
यही हल इन दिनों विकास की आंधी में अपने को घालमेल कर लेने वालों का है। रफ़्तार वाली गाड़ियां लेकर वे सड़कों पर निकल जाते हैं , उन्हें लगता है,हैंडल उसके हाथ में है,ब्रेक पांव में है। तब खतरा किस बात का। वे खतरों को जानना ही नहीं चाहते। वे मोटर यान अधिनियम के जरूरी मापदंडों को समझना ही नहीं चाहते। मोटर साइकल वालों को हेलमेट व्यर्थ का बोझ और चार पहिया वालों को सीट बेल्ट बेवजह का बंधन लगता है। परन्तु वे भूल जाते हैं कि सिर्फ इस बोझ और बंधन की वजह से सड़क दुर्घटना में २० से २५ फीसदी कमी आ सकती है , किसी अनहोनी में उनकी पहचान कायम रह सकती है।
पुरे देश में रफ़्तार की वजह से मरने वालों की संख्या हर साल लाख से उप्र है। छत्तीसगढ़ में ही यह आंकड़ें हर साल चार हजार से ऊपर पहुंच रही है। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2014 में बारह हजार से अधिक लोग मारे गए,जबकि इतने ही लोग अपाहिज हो गए। सिर्फ सड़के चौड़ी हो जाने से या रफ़्तार कम हो जाने से दुर्घटनाएं नहीं टलती , इसके लिए जरूरी है , मोटर यान अधिनियमों का पालन करना। हम हर बात पर सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकते। हेलमेट पहनना जरूरी है,यह स्वयं को समझना होगा। सीट बेल्ट बांधना है,यह स्वयं की तहजीब में शामिल होना चाहिए।
हम जिस तरह से नौकरी के लिए तयशुदा समय में पहुंचते हैं,उसी तरह से हमे अपनी सुरक्छा का तहजीब धर्म और कर्तव्य की तरह निभाना पड़ेगा। सामान्य तहजीब नहीं सिखने वालों की वजह से उनका परिवार तबाह हुआ है। कोई अपाहिज होकर बोझ बन रहा है , तो कोई किसी बच्चे को अनाथ और महिला को विधवा होने का संताप दे रहा है। संवेदना मशीनों के बीच खड़ी होकर फुर्र हो रही है। हम चीटीं का पेट नहीं बना सकते ,हम खरगोश के कान नहीं गढ़ सकते,तो फिर स्वयं को इस तरह मौत के मुंह में डालने की अनजानी कोशिश क्यों करनी चाहिए। जब हमने स्वयं को बनाया ही नहीं तो फिर मिटाने के लिए क्यों तुले हैं। हमने नक्सली हमले और आतंकी हमले में मरने वालों के आंकड़े इकठ्ठे किये। इस पर बवाल भी मचाया पर क्या किसी ने सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों को जानने की कोशिश की। सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या किसी भी नक्सली और आतंकी हमले से आहत लोगों की संख्या से अधिक है। हमने अपने इन करतूतों पर कभी बवाल नहीं मचाया। मोटर यान अधिनियम की अनदेखी ने सड़क को आतंकी के रूप में खड़ा कर दिया है,परन्तु इसकी चिंता कंही दिखाई नहीं देती।
यह सच है कि मृत्यु अवश्वम्भावी है पर तरह स्वयं होकर मृत्यु का आव्हान करना कितना तर्क संगत है। विश्व का सारा चिंतन मनन इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि मानव और मानवता से बड़ा कुछ नहीं है , फिर जो नियम बने हैं उसे हमारे द्वारा चुनी सरकारों ने ही बनाए हैं,तब भला इन नियमों के साथ चलने में असुविधा कैसी ? चलो हेलमेट के बोझ और सीट बेल्ट के बंधन अंगीकार कर अपनी पहचान बचा लो। सड़कों को आतंकवादी बनने से रोक लो।
आतंकी सड़कों में पहचान की जद्दोजहद
एक शेर है ---
घर से निकलो तो पता जेब में रखकर निकलो।
हादसे चेहरों की पहचान मिटा देते हैं ।।
पहचान मिटने के गुनहगार तो हम सब हैं। सच को मानने का हौसला किसी के पास नहीं है। विकास की राह में कुछ ऐसा घालमेल हुआ है कि खिड़कियों को हमने खोलना बंद कर दिया है। रेल और हवाई जहाज और ६-८ लेन की सड़कों को देख हमने दुनिया नाप लेने का मन बना लिया है। परन्तु इन्ही सड़कों में अपनी पहचान गंवा रहे लोगों की तरफ मुंह मोड़ लिया है। चाँद और मंगल तक के सफर में हमने खूब सीने चौड़े किये हैं , परन्तु इसके प्रभाव की तहजीब हम आज भी नहीं सीख पा रहे हैं।
विकास की हमने नई परिभाषाएँ गढ़ ली है। एक तरफ पुराने को ढहाया जा रहा है,और दूसरी तरफ नए के जोश से हमारे होश गायब है। नई रफ़्तार के वाहनों का रेलमपेल हमने सड़कों पर तो उतार दी , सड़के भी चौड़ी कर दी , परन्तु इस रफ़्तार में पहचान खोने का भान ही नहीं रहा। हमने इस सवाल का उत्तर जानने की कोशिश ही नहीं की, कि रफ़्तार में पहचान कैसे बनाए रखे। चौड़ी सड़के , तेज रफ़्तार के इस विकास में हमें स्वयं की पहचान बनाए रखना कितना जरूरी है। यदि स्वयं की पहचान कायम नहीं रख पाए तो इन चौड़ी सड़कों का औचित्य ही क्या रह पाएगा।
नियम-कानून इसलिए बनाए जाते है,ताकि सब कुछ व्यवस्थित चले। समाज सुखी व् आनंद से रहे , हमने हजारों साल पहले एक यात्रा शुरू की थी। बच्चा पहले माडी के बल चलता है,फिर वह खड़ा होकर चलने की कोशिश करता है। इस कोशिश में वह माँ की ऊँगली का सहारा लेता है,फिर धीरे-धीरे वह चलता है,दौड़ता है। कुछ बड़े और कुछ स्वयं के तजुर्बों से वह सीखता है। वह दौड़ता है,परन्तु कितने लोग पूरा जीवन अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाते।
यही हल इन दिनों विकास की आंधी में अपने को घालमेल कर लेने वालों का है। रफ़्तार वाली गाड़ियां लेकर वे सड़कों पर निकल जाते हैं , उन्हें लगता है,हैंडल उसके हाथ में है,ब्रेक पांव में है। तब खतरा किस बात का। वे खतरों को जानना ही नहीं चाहते। वे मोटर यान अधिनियम के जरूरी मापदंडों को समझना ही नहीं चाहते। मोटर साइकल वालों को हेलमेट व्यर्थ का बोझ और चार पहिया वालों को सीट बेल्ट बेवजह का बंधन लगता है। परन्तु वे भूल जाते हैं कि सिर्फ इस बोझ और बंधन की वजह से सड़क दुर्घटना में २० से २५ फीसदी कमी आ सकती है , किसी अनहोनी में उनकी पहचान कायम रह सकती है।
पुरे देश में रफ़्तार की वजह से मरने वालों की संख्या हर साल लाख से उप्र है। छत्तीसगढ़ में ही यह आंकड़ें हर साल चार हजार से ऊपर पहुंच रही है। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2014 में बारह हजार से अधिक लोग मारे गए,जबकि इतने ही लोग अपाहिज हो गए। सिर्फ सड़के चौड़ी हो जाने से या रफ़्तार कम हो जाने से दुर्घटनाएं नहीं टलती , इसके लिए जरूरी है , मोटर यान अधिनियमों का पालन करना। हम हर बात पर सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकते। हेलमेट पहनना जरूरी है,यह स्वयं को समझना होगा। सीट बेल्ट बांधना है,यह स्वयं की तहजीब में शामिल होना चाहिए।
हम जिस तरह से नौकरी के लिए तयशुदा समय में पहुंचते हैं,उसी तरह से हमे अपनी सुरक्छा का तहजीब धर्म और कर्तव्य की तरह निभाना पड़ेगा। सामान्य तहजीब नहीं सिखने वालों की वजह से उनका परिवार तबाह हुआ है। कोई अपाहिज होकर बोझ बन रहा है , तो कोई किसी बच्चे को अनाथ और महिला को विधवा होने का संताप दे रहा है। संवेदना मशीनों के बीच खड़ी होकर फुर्र हो रही है। हम चीटीं का पेट नहीं बना सकते ,हम खरगोश के कान नहीं गढ़ सकते,तो फिर स्वयं को इस तरह मौत के मुंह में डालने की अनजानी कोशिश क्यों करनी चाहिए। जब हमने स्वयं को बनाया ही नहीं तो फिर मिटाने के लिए क्यों तुले हैं। हमने नक्सली हमले और आतंकी हमले में मरने वालों के आंकड़े इकठ्ठे किये। इस पर बवाल भी मचाया पर क्या किसी ने सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों को जानने की कोशिश की। सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या किसी भी नक्सली और आतंकी हमले से आहत लोगों की संख्या से अधिक है। हमने अपने इन करतूतों पर कभी बवाल नहीं मचाया। मोटर यान अधिनियम की अनदेखी ने सड़क को आतंकी के रूप में खड़ा कर दिया है,परन्तु इसकी चिंता कंही दिखाई नहीं देती।
यह सच है कि मृत्यु अवश्वम्भावी है पर तरह स्वयं होकर मृत्यु का आव्हान करना कितना तर्क संगत है। विश्व का सारा चिंतन मनन इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि मानव और मानवता से बड़ा कुछ नहीं है , फिर जो नियम बने हैं उसे हमारे द्वारा चुनी सरकारों ने ही बनाए हैं,तब भला इन नियमों के साथ चलने में असुविधा कैसी ? चलो हेलमेट के बोझ और सीट बेल्ट के बंधन अंगीकार कर अपनी पहचान बचा लो। सड़कों को आतंकवादी बनने से रोक लो।
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