इतिहास में यह बात भी दर्ज होगा कि जब भीषण महामारी में देवभूमि के लोग दाना-दाना के लिए तरस रहे थे, गंगा में लाशें बह रही थी, श्मशान में चिताओं की लम्बी लाईनें थी, लोग आक्सीजन के अभाव में मर रहे थे, चारों तरफ सत्ता की लापरवाही से नरसंहार हो रहा था, तब देश की मौजूदा मोदी सरकार अपनी रईसी बरकरार रखने टैक्स पर टैक्स वसूल रही थी, राज्य वैक्सीन के लिए तरस रहे थे बल्कि प्रधानमंत्री सेन्ट्रल विस्टा में अपना महल बनाने में व्यस्त थे।
कोरोना के इस भीषण महामारी में जब आम आदमी बेरोजगारी और महंगाई की मार से नारकीय जीवन जीने मजबूर है तब सत्ता न केवल वैक्सीन पर टैक्स घटाने तैयार नहीं बल्कि सरकार का पैसा बचाने निजी अस्पतालों को फायदा पहुंचाने आम आदमी पर आर्थिक बोझ डाल रही है। पूरा देश इन दिनों वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है, सरकारी अस्पतालों में यदि वैक्सीन उपलब्ध नहीं है और निजी अस्पतालों में वैक्सीन उपलब्ध है तो इसका मतलब क्या है? इसका मतलब साफ है कि सरकार केवल अपने फायदे देख रही है, जनता आर्थिक बोझ से मरे तो मरे।
सरकार की करतूतों की वजह से सुप्रीम कोर्ट बेहद नाराज है और अब तो उसने मोदी सत्ता से सीधे पूछ लिया कि आखिर वैक्सीन के लिए रखे वह 35 करोड़ का क्या किया? हालांकि इसका जवाब न केन्द्र देने वाला है और न ही न्यायालय ही इस सरकार को चेतावनी देने या लानत भेजने के अलावा ही कुछ कर सकती है।
आयेगा तो मोदी ही, हौसला मत टूटने देना इस मोदी का ब्रम्हा लेकर छवि चमकाने वालों को भी इस भीषण महामारी में टैक्स और रईसी दिखाई नहीं देने वाला है। तब कांग्रेस की बड़ी नेता श्रीमती सोनिया गांधी का मोदी सत्ता को लेकर किया गया प्रहार को याद करना चाहिए कि सरकार चलाना बच्चों का खेल नहीं है। वैसे भी जिन लोगों ने जीवनभर झूठ, अफवाह और नफरत की राजनीति की हो उनसे आपदा के समय भी बेहतरी की उम्मीद बेमानी है। तब क्या हाथ पर हाथ बांधकर कर 2024 का इंतजार करना चाहिए।
क्योंकि इस सत्ता ने जिस तरह से संघीय ढांचे पर प्रहार कर संवैधानिक संस्थाओं की साख का बट्टा बिठा दिया है उसके बाद इस देश में क्या बचा रह सकता है। शिक्षा और स्वास्थ्य तो कैसे भी आम आदमी की पहुंच से दूर है, सत्ता की लापरवाही ने इस भीषण महामारी में लोगों का जीवन बर्बाद कर दिया है ऐसे में सरकारी अस्पतालों में वैक्सीन की अनुलब्धता क्या एक तरह का नरसंहार नहीं है, क्योंकि जब सारी दुनिया अपने-अपने देश के लिए वैक्सीन खरीद रही थी तब भी मोदी सत्ता अपनी रईसी और छवि बनाने में लगी थी।
तब एक ही नारा एक ही राग होना चाहिए 'गद्दी छोड़ो।Ó
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